
चीफ ऑफ पाक आर्मी स्टाफ जनरल मुहम्मद मूसा के मुताबिक, सात सितंबर 1965 को स्पेशल सर्विसेस ग्रुप के कमांडो पैराशूट के जरिए भारतीय इलाके में घुसे। करीब 135 कमांडो भारत के तीन एयरबेस (हलवारा, पठानकोट और आदमपुर) पर उतारे गए। हालांकि, पाक सेना को इस दुस्साहस की भारी कीमत चुकानी पड़ी थी।
पाक के केवल 22 कमांडो ही अपने देश लौट सके। 93 पाकिस्तानी सैनिकों को बंदी बना लिया गया। इनमें एक ऑपरेशन के कमांडर मेजर खालिद बट्ट भी शामिल थे। पाकिस्तानी सेना की इस नाकामी की वजह तैयारियों में कमी को बताया जाता है।
हालांकि, इतनी बड़ी नाकामी के बावजूद पाकिस्तानी सेना का दावा था कि उसके कमांडो मिशन से भारतीय सेना के कुछ ऑपरेशन प्रभावित हुए। भारतीय सेना की 14वीं इन्फ्रैंट्री डिवीजन को पैराट्रूपर्स को पकड़ने के लिए डायवर्ट किया गया, तो पाकिस्तानी वायु सेना ने भारतीय सैनिकों के कई वाहनों को निशाना बनाया।
इसी बीच, पाकिस्तान में यह खबर जंगल की आग की तरह फैली कि भारत ने पाकिस्तान के गुप्त ऑपरेशन का जवाब भी उसी की तर्ज पर दिया है और पाकिस्तानी जमीन पर कमांडो भेजे हैं। सात सितंबर को चीन में पाकिस्तानी राजदूत ने चीन के तत्कालीन राष्ट्रपति लियू शाओकी से मुलाकात की और अयूब खान की चिट्ठी दिखाते हुए उनसे चीन की मदद मांगी।
इसके अगले दिन ही भारत पर 'चिट्ठी बम' की बरसात शुरू हो गई। चीन ने भारत पर आरोप लगाया कि उसने अक्साई चीन और सिक्किम में असल नियंत्रण रेखा के चीनी इलाके में सैनिकों को भेज दिया है। 1962 की जंग के बाद पहली बार ऐसे कथित घुसपैठ को कश्मीर के हालात से जोड़ा गया।