मध्य प्रदेश बस दुर्घटना में 45 से अधिक लोगो की मौत, क्या मामा सरकार की नाकामी का परिणाम है ?
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मध्य प्रदेश बस दुर्घटना में 45 से अधिक लोगो की मौत, क्या मामा सरकार की नाकामी का परिणाम है ?

    
    मध्य प्रदेश के विकास और सुशासन का प्रचार अन्य राज्यों के दैनिक समाचार पत्रों में भरभर कर विज्ञापन करने वाले मामाजी का कुशासन उस समय देश के सामने आ गया जब मध्य प्रदेश में एक सार्वजनिक बस के नहर में गिरने से करीब पैतालीस लोग मारे गए. इनमें बत्तीस वे युवा हैं जो एन टी पी सी में नौकरी के लिए इम्तेहान देने जा रहे थे, असल में यह मध्य प्रदेश में गत दो दशकों के दौरान समाप्त हुई सरकारी सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था की देन है, मध्य प्रदेश में फायदे में चलने वाले राज्य परिवहन निगम को बंद कर दिया गया, आज प्रदेश की आधी आबादी अवैध जीप या डग्गामार गाड़ियों पर निर्भर है.     
    मध्य प्रदेश के सीधी जिले में यात्रियों से भरी बस अनियंत्रित होकर नहर में जा गिरी और गहरे पानी में समा गई है. सीधी से सतना के बीच चलने वाली बसें सुबह के समय खाली ही जाती हैं लेकिन मंगलवार को एनटीपीसी का एग्जाम था। रीवा और सतना में परीक्षा केंद्र बनाए गए थे। 32 सीटर बस में ज्यादा युवा ही थे, वह परीक्षा देने रीवा और सतना आ रहे थे। बस में करीब 54 यात्री थे। इनमें से करीब 45 के शव मिल चुके हैं।
     मरने वालों में 17 महिलाएं और 20 पुरुष और बच्चा शामिल है. इनमें से ज्यादातर लोग सीधी के रहने वाले थे. अभी तक वहीं 7 लोगों को जिंदा बचा लिया गया है. हालांकि इस हादसे में अभी मरने वालों की संख्या और बढ़ सकती है. क्योंकि बस नहर के अंदर पूरी तरह पानी में डूब गई.
    सीधी में नहर में गिरी जबलनाथ ट्रेवल्स की बस अगर अपना रूट नहीं बदलती तो लोगों की जान नहीं जाती। छुहिया घाटी से होकर बस रोजाना सतना के लिए जाती थी। मंगलवार की सुबह जाम लगने होने की वजह से ड्राइवर ने बस का रूट बदलकर नहर का रास्ता पकड़ा और यह हादसा हो गया। नेशनल हाईवे 39 स्थित छुहिया घाटी में जगह-जगह गड्ढे और पत्थर पड़ होने की वजह से हमेशा जाम की स्थिति बनी रहती है। यहां घंटों जाम में वाहन फंसे रहते हैं। यही वजह थी कि ड्राइवर बस को जल्दी ले जाने की चक्कर में रूट बदल दिया।
   जान लें मध्य प्रदेश में सडक दुर्घटनाएं आम हैं और अधिकांश हादसे ओवर लोडिंग, तेज गति और अवैध परिवहन से होते हैं, "शव राज" के ऐसे हालात का मूल कारण आज़ादी के बाद सरकार द्वारा गठित संस्थाओं को बेचने और उसकी कीमती संपत्ति को अपने चहेतों को ओउने पौने दाम में बेचने की लिप्सा का परिणाम है. मप्र राज्य परिवहन निगम की सारे प्रदेश में तहसील स्तर तक बेशकीमती जमीन थीं, अपनी बसें थी, स्टाफ था. एक झटके में सब कुछ बंद और सारा परिवहन निजी हाथों में -- यह किसी से छुपा नहीं है कि प्रदेश एन आर इ ओ में नियुक्ति साला करोड से कम के रेत पर नहीं होती.
   बहरहाल यह हादसा हमें सार्वजनिक परिवहन की सुरक्षा के सवाल पर सरकारों की बेपरवाही की और सोचने को मजबूर कर सकता है - बशर्ते आप धर्मोन्माद की अफीम से निवृत हो लें.

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