35 वर्षीया मार्ता वंदुज़ेर-स्नो वर्ष 2012 में भारत आने से करीब एक दशक पहले बोस्टन में पलि-बढ़ी और न्यू यॉर्क जैसे बड़े शहर में रही। लेकिन भारत आ कर उन्होंने जो प्रशंसनीय कार्य किए हैं, वह निश्चित रूप से सराहनीय है।
मार्ता उत्तर प्रदेश के रायबरेली और अमेठी के दो गांवों में 82 शौचालय और 1 स्कूल बनवा चुकी हैं। यही नहीं, वह गांव को मुख्य सड़क से जोड़ने के लिए 10 फुट चौड़ी और 400 फुट लंबी सड़क का भी निर्माण करा चुकी हैं। इसके अलावा उन्होंने शिक्षा, स्वास्थ्य संबंधी के साथ बुनियादी ढांचे जैसे भोजन, पानी, बिजली, परिवहन के क्षेत्र में कई अन्य परियोजनाओं को भी अंजाम दिया है।
हैरानी की बात यह है कि इन परियोजनाओं में आए खर्चे उन्होने अपनी जेब से निर्वहन किया है। वह भी सरकारी परियोजनाओं की तुलना में एक तिहाई कम लागत में हैं। आइए जानते हैं कि आख़िर कौन हैं मार्ता वंदुज़ेर-स्नो।
मार्ता ने अपने इस परियोजना का नाम “बेहतर गांव, बेहतर दुनिया” दिया है। वह अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन और उनके कार्यों की प्रशंसक हैं। मार्ता से जब पूछा गया कि उन्होने भारत को ही क्यों चुना तो उनका जवाब कुछ ऐसा था।
“मैने एक मेज पर 20 साल की उम्र तक सामाजिक बदलाव के सोच और कार्य के लिए एक शोधकर्ता के रूप में बिताए हैं। इन पिछले कुछ वर्षों में जो कुछ भी मैने अपने हाथों से किया है वह अंततः खुद के लिए ही है। यह अविश्वसनीय रूप से एक खास तोहफा है। मैं पहली बार भारत 2004 में एक बुक प्रॉजेक्ट के सिलसिले में आई थी, यह मेरे लिए एक सम्मान की बात थी कि मैं भारत के बारे में जान सकूं। सालों बाद जब मुझे अपने विचार को और भी विकसित करना चाहती थी, तब मैंने सोचा कि भारत इसके लिए उपयुक्त जगह है। ”
हालांकि, मार्ता ने इस बात का खुलासा नहीं किया है कि वह इन परियोजनाओं पर अब तक कितनी धनराशि खर्च कर चुकी हैं। लेकिन जब उनके इस निःस्वार्थ कार्य के बारे में पूछा गया, तो वह कहती हैंः
“हमने वाष्पन उत्सर्जन युक्त शौचालय, सड़कों और सौर बिजली घरों के साथ कई अन्य परियोजनाओं का निर्माण किया है। हम शिक्षा स्वास्थ्य और बुनियादी ढांचे, जिसमें जैविक खेती, पानी, भोजन, परिवहन जैसे कई परियोजनाओं पर काम कर रहे हैं। इसके अलावा सामुदायिक पुस्तकालय, सामुदायिक-कला और खेल कार्यक्रम आदि पर भी अपना योगदान दे रहे हैं। “
आपको जान कर यह आश्चर्य होगा कि मार्ता की परियोजना द्वारा निर्मित वाष्पन उत्सर्जन वाले शौचालय की लागत मात्र 9,900 है। जबकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की महत्वाकांक्षी परियोजना स्वच्छ भारत अभियान के तहत बनने वाले बायो-टॉयलेट की लागत करीब 20000 रुपए आती है।
मार्ता के इस परियोजना के अंतर्गत दो स्ट्रीट लाइट और एक मोबाइल चार्जर केंद्र के साथ-साथ 27 सौर ऊर्जा पैनल स्थापित किए जा चुके हैं।
इतना ही नही मार्ता इस अभियान के तहत बारिश के पानी को एकत्रित करने की तकनीकी पर भी काम कर रही है। इसी वजह से उन्हे स्थानीय लोगों से काफ़ी प्रोत्साहन, प्रशंसा के साथ मदद मिल रही है।
मार्ता भविष्य में भारत के अन्य शहरों में भी बदलाव की यह बयार लाना चाहती हैं। उम्मीद है कि उनके इस अथक प्रयास से सरकार और आम आदमी कुछ सीख लेंगे, जिससे हम कल एक बेहतर भारत की तस्वीर देखने की कल्पना कर सकते हैं।
