मोदी सरकार की मेक इन इंडिया योजना ने इस बार एक बहुत बड़ी उपलब्धि हासिल की है। हमारे देश में कोयल संसाधन में कमी न हो, और डीजल पर खर्च होने वाले पैसे की बचत कर सके। इसलिए मोदी सरकार ने भारतीय रेलवे को एक बहुत बड़ा तोहफा दिया है। अब जल्द ही देश की पहली सोलर उर्जा से चलने वाली ट्रेन पटरियों पर दौड़ती हुई नज़र आएगी। रेलवे के जोधपुर फैक्ट्री में काम करने वाले इंजीनियरों ने इसको तैयार किया है। इसकी मंजूरी पहले मंत्रालय से मिलेगी, बाद में इसका ट्रायल होगा। फिर बाद में सफल परिक्षण के बाद सोलर उर्जा से चलने वाली ट्रेन पटरियों पर दौड़ती हुई नज़र आएगी।

यह सोलर पैनल फ्लेक्सिबल होंगे। अभी तक सोलर पैनल से ट्रेन के डिब्बे रोशन किये गए है। इन सोलर पैनल से डिब्बों का वजन भी नहीं बढ़ा है। और न ही डिब्बों की ऊंचाई। अभी कुछ समय पहले विज्ञान एवं प्रोद्योगिकी मन्त्री डॉ. हर्षवर्धन जब सेंट्रल इलेक्ट्रोनिक्स लिमिटेड के परिसर में पहुंचे तो उन्होंने सीईएल की टीम से कहा था कि, उनकी टीम ट्रेनों को चलाने के लिए सौर उर्जा पर प्रयास करें। सीईएल की टीम ने अभी तक ट्रेन के डिब्बों को रोशन करने के लिए सौर उर्जा से बनने वाली बिजली का मॉडल तैयार कर लिया है।

स ट्रेन को चलाने के लिए ट्रेन की छत पर सोलर पैनल लगाये गए है। ये
सोलर पैनल फ्लेक्सिबल होने के साथ ही वजन में भी बहुत हल्के बनाये गए है।
सामान्य सोलर पैनल 40 मिमी मोटाई के होते है, लेकिन इसको घटाकर 3 मिमी का
बनाया गया है। एक सोलर पैनल प्रति वर्ग मीटर साढ़े बारह किलोग्राम का बना
होता है। जबकि ट्रेन पर लगाये जाने वाले सोलर पैनल को घटाकर 1 किलोग्राम ही
किया गया है। और इन सोलर पैनल को चिपकाने के लिए ऐसे पदार्थों की तलाश की
गई है, जिससे सोलर पैनल कम से कम 25 साल तक चिपके रहे।

भारतीय रेलवे को अभी कई चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा। जिसमें से एक यह
भी कारण है कि. भारतीय रेलवे को इसका डर है कि, इनकी चोरी आसानी से की जा
सकती है। इसलिए एक निर्णय ये भी लिया गया है कि, ट्रेन को उस रास्ते से
नहीं भेजा जायेगा जहाँ पर यात्री छतों पर सफ़र करते हो। हालाँकि, इस ट्रेन
को चलाने के लिए मंत्रालय से अभी हरी झंडी नहीं मिली है। लेकिन भविष्य में
ऐसी ट्रेन हमारे देश में दौड़ती हुई नज़र आएगी।

भारतीय रेलवे के सूत्रों के अनुसार पहली ट्रेन का सफल परीक्षण के बाद,
जोधपुर रेल फैक्ट्री में ऐसी करीब 2 दर्जन ट्रेन का निर्माण और किया
जायेगा। सौर उर्जा से चलने वाली ट्रेन को रात में भी यह सफर करेगी। योजना
के अनुसार सौर उर्जा स्टोर की जाएगी। और सौर उर्जा से रेलवे स्टेशन भी रोशन
किये जायेंगे। आप की जानकारी के लिए यह बता दे कि, इससे पहले 2015 में
रेवाड़ी-सीतापुर पैसेंजर ट्रेन की एक नॉन एसी कोच में सोलर उर्जा का प्रयोग
किया गया था। लेकिन इस बार पूरी ट्रेन पर सोलर उर्जा से परिक्षण किया
जायेगा।

आईआईटी बेंगलुरु की रिसर्च के अनुसार 20 कोच वाली ट्रेन पर एक साल में
करीब 90 हजार लीटर डीजल की जरूरत पड़ती है। और इस डीजल पर करीब 50 लाख से
ज्यादा का खर्च आ जाता है। और इन ट्रेनों से काफी मात्रा में कोयला खनीज
संसाधन की भी बचत की जा सकेगी।