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जाने रक्षा सूत्र का इतिहास

    राक्षसों से इंद्रलोक को बचाने के लिए श्रावण शुक्ल पूर्णिमा को इंद्र की पत्नी इंद्राणी ने इंद्र के तिलक लगाकर उसके रक्षासूत्र बांधा था !
    प्राचीन काल में प्रतिवर्ष श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन ब्राह्मण अपने यजमानों के दाहिने हाथ पर एक सूत्र बांधते थे, जिसे रक्षासूत्र कहा जाता था। इसे ही आगे चलकर वर्तमान काल में राखी कहा जाने लगा।
    यह भी कहा जाता है कि यज्ञ में जो यज्ञसूत्र बांधा जाता था उसे आगे चलकर रक्षासूत्र कहा जाने लगा। रक्षाबंधन की सामाजिक लोकप्रियता कब प्रारंभ हुई, यह कहना कठिन है। कुछ पौराणिक कथाओं में इसका जिक्र है जिसके अनुसार भगवान विष्णु के वामनावतार ने भी राक्षस राजा बलि के रक्षासूत्र बांधा था और उनसे ३ पग धरती मांगी थी ! एक पग में पृथ्वी और दुसरे में स्वर्ग नाप देने पर अपना वचन पूरा करने के लिए धर्मराज बाली ने तीसरे पग हेतु अपना मस्तक झुका दिया था जिसे नाप वो राजा बाली के भी अधिकारी हो गए थे और उसके बाद ही उन्हें पाताल जाने का आदेश दिया था।
    आज भी रक्षासूत्र बांधते समय एक मंत्र बोला जाता है उसमें इसी घटना का जिक्र होता है। परंपरागत मान्यता के अनुसार रक्षाबंधन का संबंध एक पौराणिक कथा से माना जाता है, जो कृष्ण व युधिष्ठिर के संवाद के रूप में भविष्योत्तर पुराण में वर्णित बताई जाती है। इसमें राक्षसों से इंद्रलोक को बचाने के लिए गुरु बृहस्पति ने इंद्राणी को एक उपाय बतलाया था जिसमें श्रावण शुक्ल पूर्णिमा को इंद्र की पत्नी इंद्राणी ने इंद्र के तिलक लगाकर उसके रक्षासूत्र बांधा था ! इंद्र विजयी हुए और रक्षा हेतु ये सूत्र बंधा जाने लगा !
    वर्तमानकाल में परिवार में किसी या सभी पूज्य और आदरणीय लोगों को रक्षासूत्र बाँधने की परंपरा भी है। वृक्षों की रक्षा के लिए वृक्षों को रक्षासूत्र तथा परिवार की रक्षा के लिए माँ को रक्षासूत्र बाँधने के दृष्टांत भी मिलते हैं। धीरे धीरे छोटी बहन द्वारा रक्षासूत्र बांधने की परम्पराः कालांतर में पड़ी जिसके अनुसार भाई अपनी बहन की रक्षा के लिए सदा तत्पर रहता है और भाई की बुराइयों से रक्षा के लिए बहन उसे रक्षासूत्र बांधती है !
संस्कृत की एक उक्ति के अनुसार
जनेन विधिना यस्तु रक्षाबंधनमाचरेत। स सर्वदोष रहित, सुखी संवतसरे भवेत्।।
     अर्थात् इस प्रकार विधिपूर्वक जिसके रक्षाबंधन किया जाता है वह संपूर्ण दोषों से दूर रहकर संपूर्ण वर्ष सुखी रहता है। रक्षाबंधन में मूलत: दो भावनाएं काम करती रही हैं। प्रथम जिस व्यक्ति के रक्षाबंधन किया जाता है उसकी कल्याण कामना और दूसरे रक्षाबंधन करने वाले के प्रति स्नेह भावना। इस प्रकार रक्षाबंधन वास्तव में स्नेह, शांति और रक्षा का बंधन है। इसमें सबके सुख और कल्याण की भावना निहित है।[2] सूत्र का अर्थ धागा भी होता है और सिद्धांत या मंत्र भी। पुराणों में देवताओं या ऋषियों द्वारा जिस रक्षासूत्र बांधने की बात की गई हैं वह धागे की बजाय कोई मंत्र या गुप्त सूत्र भी हो सकता है। धागा केवल उसका प्रतीक है।[4] रक्षासूत्र बाँधते समय एक श्लोक और पढ़ा जाता है जो इस प्रकार है-
   ओम यदाबध्नन्दाक्षायणा हिरण्यं, शतानीकाय सुमनस्यमाना:। तन्मSआबध्नामि शतशारदाय, आयुष्मांजरदृष्टिर्यथासम्।।