फेसुबक पर मौजूद है गुमनाम सेवक, बांट रहा लोगों का दर्द

     आपका नाम क्या है? जवाब में हंसी मिली। काम क्या करते हैं? फिर से हंसी। लोगों की मदद करते हैं, पर सामने नहीं आते? अबकी बार जवाब आया। कहते हैं मदद ऐसी होनी चाहिए कि अगर दाएं हाथ से कुछ दिया है तो बाएं हाथ को पता भी न चले। फिर से नाम पूछा तो कहने लगे नाम में क्या रखा है। जो सही लगता है, वही कह दो। उनसे पूछा गया ‘सेवक’ कैसा रहेगा। जवाब में फिर हंसी मिली।
     यह उस शख्स का परिचय है, जो फेसबुक पर बीमार लोगों की मदद के लिए की गई पोस्ट पर सहायता के लिए तत्पर रहता है। उनको इस बात से फर्क नहीं पड़ता कि बीमार कहां से और किस जाति का है। वह अब तक हल्द्वानी और आस-पास के सात लोगों की मदद कर चुके हैं। वक्त ऐसा है कि लोग सड़क पर तड़पते व्यक्ति को छोड़ जाते हैं।
     किसी स्कूल को दो पंखे दान करने या फिर छोटी-छोटी मदद को ढिंढोरा पीटते हैं। नेता और मंत्री चौराहों पर भाषणों में अपने काम की तारीफ कर चिल्लाते नजर आते हैं कि हमने फलां की मदद की, लेकिन ऐसे बहुत कम लोग होते हैं, जो लाखों की रुपये की मदद गुमनामी में रहकर करते हैं। उन्हीं में से हैं मूल रूप से हिमाचल और वर्तमान में दिल्ली में रहने वाले यह शख्स। सेवक उनका असली नाम नहीं है।
    अपना नाम किसी को नहीं बताते। उनके काम को देखते हुए यह नाम आरटीआइ कार्यकर्ता गुरविंदर सिंह चड्ढा ने उन्हें दिया है। चड्ढा ने फेसबुक पर बागेश्वर के एक बच्चे के इलाज की मदद के लिए पोस्ट डाली थी। एक सप्ताह बाद फेसबुक आइडी पर दर्ज उनके नंबर पर फोन आया और बच्चे की मदद करने की इच्छा जाहिर की। बच्चा तो नहीं रहा, लेकिन सेवक ने उस बच्चे की दोनों बहनों की पढ़ाई का जिम्मा उठाने का प्रस्ताव रख दिया।
     रुद्रपुर की एक बच्ची रानी को चलने में तकलीफ है। उन्होंने बच्ची को डेढ़ लाख रुपये की बैटरी से चलने वाली रिक्शा का खर्च देने के लिए कहा। परिजनों ने कम दाम वाली मांगी तो उन्होंने 30 हजार कीमत का हाथ से चलने वाला रिक्शा घर भिजवा दिया। हल्द्वानी के ही एक डेढ़ वर्षीय बच्चे की मदद भी उन्होंने की थी। गुरविंदर चड्ढा बताते हैं कि वह कई अन्य लोगों की मदद भी कर चुके हैं। उनका फोन दिनभर बंद रहता है। रात नौ बजे के बाद बात करते हैं। कभी उन्होंने अपना नाम नहीं बताया । हां, जरूरतमंद की मदद के लिए आतुर रहते हैं।
     भवाली की 13 वर्षीय ज्योति की रीढ़ की हड्डी में संक्रमण है। गरीब माता-पिता इलाज कराने में असमर्थ हैं। इलाज एम्स में होना है, जिस पर तीन लाख 62 हजार रुपये का खर्च आना है। मदद करने वाले गुमनाम शख्स ने ज्योति का उपचार करने के लिए कहा है। कुछ जांचें भी उनकी दी हुई मदद से हो चुकी हैं।---




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