
महाराजा विक्रमादित्य और दिल्ली उच्च न्यायालय...
केस एक मगर फैसले दो....
महाराजा विक्रमादित्य आज से लगभग 2500 साल पहले उज्जैन के राजा हुआ करते थे। उनके राज दरबार में चीन का महान दार्शनिक फाहियान कई महीनो तक रहा था। राजा विक्रम का न्याय बहुत सटीक होता था।
एक बार दो स्त्रीया एक बच्चे को लेकर महाराजा विक्रम के पास आई और बच्चे पर अपना अपना दावा ठोंकने लगी। एक महिला ये कह रही थी की महाराज मैंने इस बच्चे को अपनी कोक से जन्म दिया है इसलिए ये मेरा है। और दूसरी महिला ये कह रही थी कि महाराज इस बच्चे को मैंने 5 सालो से पाला है दिन रात सेवा की है इसलिए ये बच्चा मेरा है... महाराजा विक्रमादित्य ने दोनों महिलाओ को सुना,सबूत और गवाहों को भी सुना। लेकिन वो निर्णय नहीं कर पा रहे थे। माँ हरिसिद्धि के उपासक राजा विक्रम 32 पुतलियो के सिद्ध सिंहासन पर बैठते थे। उनके ललाट से सूर्य के तेज का आभास होता था।
थोड़ी देर विचार करने के बाद राजा विक्रम ने सेनापति को बुलाकर कहा कि इस बच्चे के दो टुकड़े कर दिए जाये और आधा आधा दोनों माताओ में बाँट दिया जाए...
ये सुनकर जन्म देने वाली माँ बोली--हाँ महराज ये उचित रहेगा, किन्तु जिस माँ ने पालन किया था वो बोली-- नहीं महाराज ऐसा न करे,भले बच्चा इसकी माँ को सौप दीजिये मगर ये अधर्म मत कीजिये....
ये सुनकर राजा विक्रम जोर से हंसे और बच्चे को पालने वाली स्त्री से कहा कि ""ये बच्चा आपका ही है और आप ही के पास रहेगा, क्योंकि अगर इस बच्चे से इसकी पहली माँ को लगाव होता तो वो मेरे आदेश का विरोध करती मगर उसने ऐसा नहीं किया, उसने मेरे आदेश का समर्थन किया जो इस बात का साक्ष्य है कि उसको बच्चे से लगाव नहीं है बल्कि वो आपको परेशान करना चाहती है और बच्चे को आधार बनाकर आपसे धन लेने की इच्छा रखती है,आप बच्चे को 5 साल से पाल रही हो और बच्चा भी आप ही को माँ कहता है तो उस बच्चे को आपसे दूर करना एक तरह का अमानवीय कृत्य होगा इसीलिए बच्चा आपके पास ही रहेगा"
राजा विक्रम ने आगे कहा---जन्म देने से कोई स्त्री माँ नहीं बन जाती,माँ का असली कर्तव्य संतान के जन्म के बाद शुरू होता है जो किसी अग्नि परीक्षा की तरह होता है...इसीलिए इस बच्चे की असली हक़दार इसको पालने वाली माँ है.....
मित्रो ऐसा ही मिलता जुलता केस आज से लगभग 7 साल पहले दिल्ली हाई कोर्ट में आया था। जहाँ सब्जी बेचने वाले दंपत्ति एक बच्चे को पिछले 8 सालो से पाल रहे थे और बच्चे को जन्म देने वाली माँ ने बच्चे पर अपना दावा ठोंक दिया था। दिल्ली हाई कोर्ट ने जन्म देनेे वाली माँ के पक्ष में ही फैसला दे मारा था... जबकि राजा विक्रम ने पालने वाली माँ के पक्ष में फैसला दिया था....
सच में दोनों तरह के मामलो मे कितना फर्क है। एक न्याय है तो दूसरा फैसला....
ये सुनकर राजा विक्रम जोर से हंसे और बच्चे को पालने वाली स्त्री से कहा कि ""ये बच्चा आपका ही है और आप ही के पास रहेगा, क्योंकि अगर इस बच्चे से इसकी पहली माँ को लगाव होता तो वो मेरे आदेश का विरोध करती मगर उसने ऐसा नहीं किया, उसने मेरे आदेश का समर्थन किया जो इस बात का साक्ष्य है कि उसको बच्चे से लगाव नहीं है बल्कि वो आपको परेशान करना चाहती है और बच्चे को आधार बनाकर आपसे धन लेने की इच्छा रखती है,आप बच्चे को 5 साल से पाल रही हो और बच्चा भी आप ही को माँ कहता है तो उस बच्चे को आपसे दूर करना एक तरह का अमानवीय कृत्य होगा इसीलिए बच्चा आपके पास ही रहेगा"
राजा विक्रम ने आगे कहा---जन्म देने से कोई स्त्री माँ नहीं बन जाती,माँ का असली कर्तव्य संतान के जन्म के बाद शुरू होता है जो किसी अग्नि परीक्षा की तरह होता है...इसीलिए इस बच्चे की असली हक़दार इसको पालने वाली माँ है.....
मित्रो ऐसा ही मिलता जुलता केस आज से लगभग 7 साल पहले दिल्ली हाई कोर्ट में आया था। जहाँ सब्जी बेचने वाले दंपत्ति एक बच्चे को पिछले 8 सालो से पाल रहे थे और बच्चे को जन्म देने वाली माँ ने बच्चे पर अपना दावा ठोंक दिया था। दिल्ली हाई कोर्ट ने जन्म देनेे वाली माँ के पक्ष में ही फैसला दे मारा था... जबकि राजा विक्रम ने पालने वाली माँ के पक्ष में फैसला दिया था....
सच में दोनों तरह के मामलो मे कितना फर्क है। एक न्याय है तो दूसरा फैसला....