सरकारी स्कूल में बच्चे पढ़ने जाते हैं या चपरासी गिरी करने ?

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डीईओ मानते हैं चपरासियों की कमी के कारण करवाते हैं काम
     एक तरफ सरकार जहां शिक्षा की गुणवत्ता सुधार कर सरकारी स्कूलों की छवि सुधारने में लगी हुई है वहीं दुसरी तरफ सरकारी स्कूल के संस्था प्रधान और शिक्षा अधिकारी ही इसकी साख को बट्टा लगा रहे हैं। सरकारी स्कूल में आने वाले बच्चे यहां पढ़ने के लिए आते हैं लेकिन शिक्षक इन्हें चपरासी का काम सिखा रहे हैं।
     जयपुर रोड स्थित राजकीय उच्च अध्ययन शिक्षण संस्थान (टीटी काॅलेज) में शुक्रवार को शहर के सभी संस्था प्रधान की बैठक हुई। बैठक में खातिरदारी के लिए श्री मंगलचंद सखलेचा राजकीय माध्यमिक विद्यालय के विद्यार्थियों को तैनात किया गया था। विद्यार्थी ही संस्था प्रधानों को चाय- पानी पिला रहे थे और नाश्ता करवा रहे थे। इसके बाद इनके झूठे बर्तन भी विद्यार्थी अपने हाथों से धोते नजर आए। यह नजारा देखकर यही सवाल उठता है कि बच्चे पढ़ने के लिए यहां आ रहे हैं या चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी का काम करने। इस संबंध में जब जिला शिक्षा अधिकारी सुशील कुमार गहलोत से पूछा गया तो उन्होंने कहा कि चपरासी कम होने के कारण बच्चों से काम करवाया जा रहा है। उन्होंने तो यहां तक कहा कि शहर में ही नहीं बल्कि गांवों में भी बच्चों से काम करवाया जाता है।
छवि होगी प्रभावित
     सरकारी स्कूल में जब बच्चों से चपरासी का काम करवाने की जानकारी परिजनों को मिलेगी तो उन्हें अवश्य ही धक्का लगेगा। इसमें कोई संशय नहीं है कि सरकार ने जो प्रयास किए हैं, उससे सरकारी स्कूलों में नामांकन अवश्य बढ़े हैं लेकिन इस तरह के कार्य से तो स्कूलों की छवि पर अवश्य ही प्रभाव पड़ेगा। संस्था प्रधान और शिक्षा अधिकारियों को चाहिए कि वह सरकार की साख को बट्टा लगाने की बजाय इसकी छवि सुधारे जिससे कि प्राईवेट स्कूलों के प्रति बढ़ता लगाव कम हो सके।
शिक्षामंत्री कर सकते हैं कार्रवाई
    शिक्षा राज्यमंत्री वासुदेव देवनानी बच्चों से चपरासी का काम करवाने को संभवतया गंभीरता से लेंगे क्योंकि देवनानी अपने विधानसभा क्षेत्र में ऐसी हरकत को कतई बर्दाश्त नहीं करेंगे। वह कार्रवाई करके राज्य भर के संस्था प्रधान और शिक्षा अधिकारियों को सबक देंगे जिससे कि भविष्य में कोई भी बच्चों से चपरासी का काम ना करवाएं और बच्चों को स्कूल में केवल अध्यापन कार्य ही करवाएं।

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