बस्ती।। नोटबंदी के बाद समाज का एक बड़ा हिस्सा पाई पाई को मोहताज है, दो से पांच हजार रूपये की निकासी के लिये जनता बैंकों और एटीएम की लाइनों में खड़ी है, धर गृहस्थी, शादी ब्याह, रोजमर्रा की खरीददारी सब चैपट है, लेकिन इसका असर नेताओं पर बिलकुल नही दिख रहा है। भारतीय जनता पार्टी के नेता परिवर्तन यात्रा में पानी की तरह पैसा बहा रहे हैं जबकि आम जनता अपने ही खातों से जरूरत के मुताबिक निकासी नही कर पा रही है, उसके लिये लिमिट तय कर दी गयी है।
नोटबंदी के बाद देशवासियों को व्यवस्था दे पाने में बुरी तरह से असफल रही मोदी सरकार की नीति और नीयत पर अब जनता को ही शक होने लगा है। कहा गया था कि 50 दिन का वक्त चाहिये, सबकुछ सामान्य हो जायेगा। नोटबंदी के लागू हुये पांच हफ्ते हो गये हैं, एटीएम पर भीड़ कम नही हुई है। नेता व्यापारी अफसर सभी जब भयंकर ठण्ड में गरम बिस्तरों अथवा वातानुकूलित कमरों में रहते हैं उस समय जनता पहले पैसा निकालने के चक्कर में महज दो से पांच हजार रूपये के लिये जनता लाइनों में लग जाती है। पूरा दिन गंवाने के बाद पैसे मिल जायें यह भी जरूरी नही, बैंकों में पर्याप्त करेंसी न होने के कारण निराश होना पड़ रहा है। अपने ही खातों से पैसा निकालने के लिये जनता को सड़क जाम करना पड़ेगा, पुलिस की प्रताड़ना सहन करनी होगी, शायद किसी ने कल्पना भी नही की होगी कि आजाद भारत में कभी ऐसे दिन भी देखने को मिलेंगे।
फिलहाल सत्ता में आने से पहले नरेन्द्र मोदी ने देशवासियों को कुछ खास दिनों के सपने दिखाये थे, जनता भ्रम में है, कहीं ये वही दिन तो नही जिसके लिये मोदी मोदी के नारे लगाये जा रहे थे। क्या जनता की दुश्वारियां प्रधान सेवक या उनके भक्तों को नही को नही दिख रही हैं, एक ओर सैकड़ों की संख्या में लोग अपने ही पैसों की निकासी के लिये सारे जरूरी काम छोड़कर लाइनों में लगे है दूसरी ओर भाजपा नेता परिर्तन यात्रा में सैकड़ों गाडि़यों का काफिला लेकर चल रहे हैं उनके ऊपर नोटबंदी का कोई असर नही दख रहा है।
बस्ती में परिवर्तन यात्रा के आने पर भाजपा नेता और कप्तानगंज विधानसभा से टिकट के प्रबल उम्मीदवार वृन्दावन चन्द्रभान पाण्डेय की करीब चार सौ लग्जरी गाडि़यां सड़कों पर फर्राटे मार रही थीं, सूत्रों की मानें तो विपरीत मौसम में उन्होने भीड़ भी जुटाया, अपनी हैसियत के दम पर जनता के बीच कोई जनाधार न होते हुये भी जमकर शक्ति प्रदर्शन किया। यही हाल हरैया विधानसभा से टिकट की दोवदारी कर रही भाजपा नेत्री ममता पाण्डेय का था। दोनो नेताओं का पैसा बोल रहा था। लोगों ने प्रदेश नेतृत्व की नजर में आने के लिये पैसा पानी की तरह बहाया जिससे नेतृत्व उन्हे पार्टी से टिकट दे और उनका भी नाम माननीयों की सूची में शुमार हो जाये।
आपको बता दें कि श्री पाण्डेय कुछ ही दिनों पहले समाजवादी पार्टी के झण्डाबरदार रहे, चुनाव निकट आते ही उनकी दलीय निष्ठा भरभरा कर गिर गयी। यही हाल ममता पाण्डेय का भी है। उन्होने इससे पहले 2012 में बसपा के टिकट पर हरैया से चुनाव लड़ी और दूसरे नम्बर थीं। ऐसा नही कि केवल भाजपा नेताओं के ऊपर ही नोटबंदी या करेंसी की कमी बेअसर है। रूधौली विधानसभा से सपा का टिकट पाने के बाद पूर्व कैबिनेट मंत्री के अनुज बृजकिशोर सिंह भी किसी से पीछे नही रहे। सैकड़ों गाडि़यों का काफिला उनके पीछे सड़क पर निकला तो लोगों का मुह खुला का खुला रह गया। सारे मामलों में ऐसा लगता है कि नेताओं को जनता और उसकी दुश्वारियों से कोई लेना देना नही है और न ही किसी ने हालातों को बेहतर बनाने के प्रयास किये हैं। कहीं ऐसा न हो कि प्रधानसेवक ने जनता से जो 50 दिनों का समय लिया है उसके बाद भी हालात सामान्य न हों और जनता सड़कों पर उतर आये। नेताओं ने तो बस जनसेवक होने का स्वांग रचा रखा है।
नोटबंदी के बाद देशवासियों को व्यवस्था दे पाने में बुरी तरह से असफल रही मोदी सरकार की नीति और नीयत पर अब जनता को ही शक होने लगा है। कहा गया था कि 50 दिन का वक्त चाहिये, सबकुछ सामान्य हो जायेगा। नोटबंदी के लागू हुये पांच हफ्ते हो गये हैं, एटीएम पर भीड़ कम नही हुई है। नेता व्यापारी अफसर सभी जब भयंकर ठण्ड में गरम बिस्तरों अथवा वातानुकूलित कमरों में रहते हैं उस समय जनता पहले पैसा निकालने के चक्कर में महज दो से पांच हजार रूपये के लिये जनता लाइनों में लग जाती है। पूरा दिन गंवाने के बाद पैसे मिल जायें यह भी जरूरी नही, बैंकों में पर्याप्त करेंसी न होने के कारण निराश होना पड़ रहा है। अपने ही खातों से पैसा निकालने के लिये जनता को सड़क जाम करना पड़ेगा, पुलिस की प्रताड़ना सहन करनी होगी, शायद किसी ने कल्पना भी नही की होगी कि आजाद भारत में कभी ऐसे दिन भी देखने को मिलेंगे।
फिलहाल सत्ता में आने से पहले नरेन्द्र मोदी ने देशवासियों को कुछ खास दिनों के सपने दिखाये थे, जनता भ्रम में है, कहीं ये वही दिन तो नही जिसके लिये मोदी मोदी के नारे लगाये जा रहे थे। क्या जनता की दुश्वारियां प्रधान सेवक या उनके भक्तों को नही को नही दिख रही हैं, एक ओर सैकड़ों की संख्या में लोग अपने ही पैसों की निकासी के लिये सारे जरूरी काम छोड़कर लाइनों में लगे है दूसरी ओर भाजपा नेता परिर्तन यात्रा में सैकड़ों गाडि़यों का काफिला लेकर चल रहे हैं उनके ऊपर नोटबंदी का कोई असर नही दख रहा है।
बस्ती में परिवर्तन यात्रा के आने पर भाजपा नेता और कप्तानगंज विधानसभा से टिकट के प्रबल उम्मीदवार वृन्दावन चन्द्रभान पाण्डेय की करीब चार सौ लग्जरी गाडि़यां सड़कों पर फर्राटे मार रही थीं, सूत्रों की मानें तो विपरीत मौसम में उन्होने भीड़ भी जुटाया, अपनी हैसियत के दम पर जनता के बीच कोई जनाधार न होते हुये भी जमकर शक्ति प्रदर्शन किया। यही हाल हरैया विधानसभा से टिकट की दोवदारी कर रही भाजपा नेत्री ममता पाण्डेय का था। दोनो नेताओं का पैसा बोल रहा था। लोगों ने प्रदेश नेतृत्व की नजर में आने के लिये पैसा पानी की तरह बहाया जिससे नेतृत्व उन्हे पार्टी से टिकट दे और उनका भी नाम माननीयों की सूची में शुमार हो जाये।
आपको बता दें कि श्री पाण्डेय कुछ ही दिनों पहले समाजवादी पार्टी के झण्डाबरदार रहे, चुनाव निकट आते ही उनकी दलीय निष्ठा भरभरा कर गिर गयी। यही हाल ममता पाण्डेय का भी है। उन्होने इससे पहले 2012 में बसपा के टिकट पर हरैया से चुनाव लड़ी और दूसरे नम्बर थीं। ऐसा नही कि केवल भाजपा नेताओं के ऊपर ही नोटबंदी या करेंसी की कमी बेअसर है। रूधौली विधानसभा से सपा का टिकट पाने के बाद पूर्व कैबिनेट मंत्री के अनुज बृजकिशोर सिंह भी किसी से पीछे नही रहे। सैकड़ों गाडि़यों का काफिला उनके पीछे सड़क पर निकला तो लोगों का मुह खुला का खुला रह गया। सारे मामलों में ऐसा लगता है कि नेताओं को जनता और उसकी दुश्वारियों से कोई लेना देना नही है और न ही किसी ने हालातों को बेहतर बनाने के प्रयास किये हैं। कहीं ऐसा न हो कि प्रधानसेवक ने जनता से जो 50 दिनों का समय लिया है उसके बाद भी हालात सामान्य न हों और जनता सड़कों पर उतर आये। नेताओं ने तो बस जनसेवक होने का स्वांग रचा रखा है।