सदन में हंगामे के बाद मीटिंग के मायने
संसद के शीतकालीन सत्र को बर्बाद कर देने वाले कांग्रेसियों को आज लोक कल्याण मार्ग की याद आखिर अचानक क्यों आ गई। आखिर क्यों राहुल गांधी ने समूचे विपक्ष का अगुआ बनने का बड़ा मौका हाथ से जाने दिया। यह जानने के बावजूद कि कांग्रेस के इस कदम से विपक्ष की एकता नष्ट हो जाएगी, फ़िर भी ऐसा कदम क्यों उठाया गया। सपा और बसपा के साथ चुनाव लड़कर बिहार की तर्ज पर सत्ता में भागीदारी का ख्वाब देख रहे कांग्रेसियों के अरमानों पर उनके ही आलाकमान ने पानी क्यों फ़ेर दिया। वाम और सेकुलरों के साथ गद्दारी करने के एवज में उसे क्या मिला। नोटबंदी पर बने सरकार विरोधी माहौल को ठंढा करके कांग्रेसियों ने कौन सा किला मजबूत कर लिया। इस आत्मघाती कदम से उसे कौन सा सियासी लाभ मिलने वाला है। संसद का बेशकीमती वक्त और लोक संपत्ति को बर्बाद करने के बाद वार्ता कर समाधान निकालने की मजबूरी कांग्रेसियों तक के गले नहीं उतर रही है।
इसके कई कारण हो सकते हैं :
1. नोटबंदी पर पूरी सामर्थ्य से छाती पीटने और विधवा विलाप करने के बाद भी पूरा विपक्ष किसी गैर राजनीतिक आंदोलन को पैदा कर पाने में असफ़ल रहा। लाइन में खड़े राष्ट्रभक्त देशवासियों ने इनको ऐसा आईना दिखाया कि उसमें इन्हें ख़ुद के चेहरे पर धूल नज़र आने लगी। सारी तकलीफ़ों के बाद भी देशवासियों का भरोसा नोटबंदी और नरेंद्र मोदी दोनों पर कायम है।
2. राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी अब तक जीवित बची कांग्रेस में सबसे दूरदर्शी और अनुभवी नेता हैं। कांग्रेस की विपदा में कई बार वह संकटमोचक साबित हुए हैं। नोटबंदी को लेकर उनसे मिलने गए विपक्षी प्रतिनिधिमंडल को मिली प्रणब दा की सलाह का भी यह असर हो सकता है।
3. आगस्टा वेस्टलैंड हेलीकॉप्टर घोटाले में कांग्रेस अध्यक्षा से संसद में जवाब देने की मांग का असर भी इसे कहा जा सकता है। जिसमें सत्तापक्ष ने सोनिया गांधी को संसद में जवाब देने की चुनौती दी।
संसद के शीतकालीन सत्र को बर्बाद कर देने वाले कांग्रेसियों को आज लोक कल्याण मार्ग की याद आखिर अचानक क्यों आ गई। आखिर क्यों राहुल गांधी ने समूचे विपक्ष का अगुआ बनने का बड़ा मौका हाथ से जाने दिया। यह जानने के बावजूद कि कांग्रेस के इस कदम से विपक्ष की एकता नष्ट हो जाएगी, फ़िर भी ऐसा कदम क्यों उठाया गया। सपा और बसपा के साथ चुनाव लड़कर बिहार की तर्ज पर सत्ता में भागीदारी का ख्वाब देख रहे कांग्रेसियों के अरमानों पर उनके ही आलाकमान ने पानी क्यों फ़ेर दिया। वाम और सेकुलरों के साथ गद्दारी करने के एवज में उसे क्या मिला। नोटबंदी पर बने सरकार विरोधी माहौल को ठंढा करके कांग्रेसियों ने कौन सा किला मजबूत कर लिया। इस आत्मघाती कदम से उसे कौन सा सियासी लाभ मिलने वाला है। संसद का बेशकीमती वक्त और लोक संपत्ति को बर्बाद करने के बाद वार्ता कर समाधान निकालने की मजबूरी कांग्रेसियों तक के गले नहीं उतर रही है।
इसके कई कारण हो सकते हैं :
1. नोटबंदी पर पूरी सामर्थ्य से छाती पीटने और विधवा विलाप करने के बाद भी पूरा विपक्ष किसी गैर राजनीतिक आंदोलन को पैदा कर पाने में असफ़ल रहा। लाइन में खड़े राष्ट्रभक्त देशवासियों ने इनको ऐसा आईना दिखाया कि उसमें इन्हें ख़ुद के चेहरे पर धूल नज़र आने लगी। सारी तकलीफ़ों के बाद भी देशवासियों का भरोसा नोटबंदी और नरेंद्र मोदी दोनों पर कायम है।
2. राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी अब तक जीवित बची कांग्रेस में सबसे दूरदर्शी और अनुभवी नेता हैं। कांग्रेस की विपदा में कई बार वह संकटमोचक साबित हुए हैं। नोटबंदी को लेकर उनसे मिलने गए विपक्षी प्रतिनिधिमंडल को मिली प्रणब दा की सलाह का भी यह असर हो सकता है।
3. आगस्टा वेस्टलैंड हेलीकॉप्टर घोटाले में कांग्रेस अध्यक्षा से संसद में जवाब देने की मांग का असर भी इसे कहा जा सकता है। जिसमें सत्तापक्ष ने सोनिया गांधी को संसद में जवाब देने की चुनौती दी।