तप की पराकाष्ठा..... आचार्यश्री के चरणों में पड़े फफोले...
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तप की पराकाष्ठा..... आचार्यश्री के चरणों में पड़े फफोले...


      आजकल भारत भूमि पर धार्मिकता का वातावरण छाया हुआ है। धार्मिक आवरण धारण किए बड़े-बड़े तिलकधारी गुरुजन और दाढ़ी-टोपी वाले उलेमा अक्सर ख़बरिया चैनल्स पर धर्म की डिबेट करते देखे जा सकते हैं। सब अपने-अपने धर्म को सर्वश्रेष्ठ साबित करने में जी-जान लगा रहे हैं। ख़बरिया चैनल्स भी कम धर्ममय नहीं है। अद्भुत, अविश्वसनीय, अकल्पनीय जैसे कई प्रोग्राम दिखाए जा रहे हैं। मठ-मंदिर, मुक्तिधाम से लेकर क़ब्रिस्तान तक की काली रात में शूटिंग करके कुछ भी परोसा जा रहा है। चैनल्स पर उन धर्मगुरुओं को प्रमुखता से दिखाया जा रहा है जिनके बयानों से देश की कौमों के बीच सनसनी फैल जाए, यानी सनसनी, आक्रोश, उन्माद और तनाव फैलाने की कोशिश की जा रही। या फिर उन साधु-संतों को दिन भर दिखाया जाता है जो अनैतिकता में लिप्त हैं। परंतु उन्हें बिलकुल स्थान नहीं दिया जा रहा है जो आज भी कठिन तप में स्वयं को तपा रहे हैं।
     भारत की धरा पर एक महासंत वर्तमान में विद्यमान है। इस युग के तपस्वियों की परंपरा में अग्रण्य आचार्य विद्यासागर जी महाराज आज भी कठिन तपस्या कर रहे हैं।आचार्यश्री के तप की पराकाष्ठा तो देखिए उनके श्रीचरणों में बड़े-बड़े फफोले पड़ गए हैं फिर भी वे फफोलों के भयंकर दर्द को साक्षी भाव से लेते हुए अपने गंतव्य की ओर अग्रसर हैं। छत्तीसगढ़ के डोंगरगढ से क़रीब पचपन किलोमीटर पहले छुईखदान में आचार्यश्री का अल्प पड़ाव हुआ। जहाँ किसी ने उनके श्रीचरणों में पड़े फफोलों की फ़ोटो उतर ली और वायरल कर दी। आचार्यश्री भोपाल से गमन के बाद जबलपुर पहुँचे थे। गत 14 मार्च को यहाँ से गुरुदेव का विहार हो गया था। अब तक 255 किलोमीटर की पदयात्रा तय कर छुई खदान पहुँचे हैं। यह पूरी यात्रा तपते मार्गों पर हुई है लिहाज़ा उनके श्रीचरणों में फफोले पड़ गए हैं। बावजूद इसके उनके श्रीमुख पर शांति और मुस्कुराहट के भाव देखे जा सकते हैं। आधुनिक युग में तपस्या की इससे बड़ी मिसाल कहाँ मिलेगी फिर मीडिया ऐसे सिद्ध महासंत के तप से बेख़बर हैं। त्याग, अहिंसा, शांति और मानवता का संदेश देने वाले इस महान संत के फफोलों को देखकर न केवल जैन बल्कि हर धर्मपरायण का दिल टीस से भर गया। कई तो फफक कर रो पड़े। देश जिस दौर से गुज़र रहा है उस दौर में ऐसे महान संत के उपदेशों को तरजीह दी जाना चाहिए।

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