
राजस्थान के जोधपुर जिले में निवासरत राजू जांगिड़ जिन्होंने 8 वी तक पढ़े-लिखे होने के बाद भी पूरी दुनिया को विकिपीडिया के माध्यम से ज्ञान दे डाला जी हां राजू जांगिड़ वे शख्श है जिन्होंने वर्ष 2011 में आठवीं कक्षा के छात्र के रूप में दाखिला लिया था। जब वे एक दिन वह इंटरनेट पर बॉलीवुड अभिनेता मिथुन चक्रवर्ती के बारे में जानकारी खोज रहे थे। उनकी तलाश उन्हें अभिनेता के विकिपीडिया (Wikipedia) पेज पर ले आई। Wikipedia, जिसे दुनिया का सबसे बड़ा मुक्त विश्वकोश भी माना जाता है। इसके बाद उन्होंने नोटिस किया कि वह जो कुछ भी इंटरनेट पर ढूंढते हैं, तकरीबन हर खोज के लिए उन्हें एक Wikipedia पेज देखने को मिलता है।
उन्होंने बताया, “साइट पर मेरे द्वारा खोजे गए हर विषय के बारे में जानकारी थी। इस तरह जानकारीयां अर्जित करने में मेरी रुचि बढ़ती गई, और मैं उन्हें खोजने के क्रम में वेबसाइट ब्राउज़ करता रहा।”
अगले कुछ महीनों में, राजू ने Wikipedia के बारे में समझा तथा पेज बनाने वालों, योगदानकर्ताओं, संपादकों और इस संगठन के बारे में अधिक जानकारी एकत्रित की। अपनी कमजोर वित्तीय स्थिति के कारण, ठाडिया गाँव के इस युवा के पास स्मार्टफोन नहीं था। वह अपने सभी शोधों के लिए एक ‘कीपैड हैंडसेट’ का इस्तेमाल करते थे।
वह बताते हैं, “वेबसाइट पर मौजूद सदस्यों के बीच चर्चा होती थी तथा मैं अपने हर प्रश्न का उत्तर पाने के लिए उन सदस्यों से सम्पर्क करने लगा। मुझे पता चला कि, यह प्लेटफ़ॉर्म अपने योगदानकर्ताओं को पेमेंट नहीं देता है। इसके अतिरिक्त, कोई भी इस पेज पर कंटेंट को ‘लिख’ या ‘संपादित’ कर सकता है।”
हालाँकि राजू को अपने लेखों को मंजूर करवाने के लिए उतना ही संघर्ष करना पड़ा। शुरूआती दौर में ‘कीपैड हैंडसेट’ से लिखना आसान नहीं था लेकिन, उन्होंने हार नहीं मानी और आज, वह हिंदी Wikipedia के समीक्षकों में से एक हैं। उन्होंने 1,880 लेखों में अपना योगदान तथा 57,000 से अधिक लेखों का हिंदी में संपादन भी किया है।
मुश्किल थी शुरुआत:
राजू का मानना है कि उनका सफर व्यक्तिगत और प्रोफेशनल दोनों ही स्तर पर काफी संघर्ष भरा रहा है। उन्हें अपने किसान माता-पिता की मदद करने के लिए अपनी शिक्षा छोड़नी पड़ी। उनके परिवार के पास लगभग 7.5 एकड़ जमीन थी तथा खेती द्वारा, बड़ी मुश्किल से घर चल पाता था। इस कारणवश घरवालों ने उनसे कमाने का आग्रह किया।
उन्होंने बताया, “मैंने दसवीं कक्षा के बाद स्कूल छोड़ दिया, और गाँव में एक कारपेंटर के रूप में काम करना शुरू कर दिया। जिससे मुझे हर महीने 7,000 रुपये मिलते थे।”
इसके साथ-साथ Wikipedia में भी उनकी रुचि बनी रही। उन्होंने हिंदी लेखन के माध्यम से, Wikipedia को योगदान देने का निर्णय लिया। उन्होंने अपने और अपने भाई के लिए एक पेज बनाकर इसकी शुरुआत की, जिसमें अपने गाँव के बारे में भी कुछ जरुरी तथ्य लिखे। हालाँकि, अगले दिन ये सब गायब हो गया। तथ्यों का समर्थन करने हेतू, सम्बंधित ‘संदर्भ’ की अनुपस्थिति के कारण, संपादकों ने लेख को हटा दिया।
राजू ने द बेटर इंडिया को बताया, “मैंने लेखों को अपलोड करने के लिए दो वर्षों तक लगातार प्रयास किए लेकिन, असफल रहा। इस दौरान मुझे 2013 तथा 2014 में उनके द्वारा तीन बार ब्लॉक किया गया। इसके फलस्वरूप, मैंने सीखा कि सभी लेखों को निष्पक्ष और तटस्थ होने की काफी आवश्यकता होती है। साथ ही यह भी जाना कि, वे किसी व्यक्ति या सेलिब्रिटी का प्रचार नहीं कर सकते तथा लेखों की विश्वसनियता के लिए उद्धरणों और संदर्भों के समर्थन की आवश्यकता होती है।”
उन्होंने 2015 में एक नया अकाउंट बनाया और सभी सामुदायिक दिशा-निर्देशों का पालन करने का निर्णय लिया। वह आगे कहते हैं, “मैंने अपने गाँव और पड़ोसी क्षेत्रों के तथ्यों को लिखना शुरू किया। उन्हें मंजूरी मिलने के बाद, मैंने क्रिकेट के बारे में लिखा। क्योंकि खेल में मुझे काफी दिलचस्पी थी। आखिरकार, मैंने भूगोल, इतिहास और मनोरंजन पर लेख लिखने शुरू किये।’’
जहा राजू को तकनीकी बाधाओं का सामना करना पड़ा। उन्होंने बताया, “मेरे पास स्मार्टफोन नहीं था, इसलिए मैं 150-200 शब्दों से ज़्यादा कोई लेख नहीं लिख सकता था। इस हैंडसेट में सॉफ्टवेयर क्रैश हो जाता था, जिससे सभी तथ्य मिट जाते थे। मैंने आखिरकार एक स्मार्टफोन खरीदा, लेकिन यह समस्या बनी रही। नए डिवाइस से मुझे लगभग 400 शब्द के लंबे लेख लिखने में मदद मिली। लेकिन, मुझे संदर्भों और उद्धरणों के लिए टैब स्विच करना पड़ता था। जिससे संपादन पृष्ठ रिफ्रेश होते रहने के कारण पूर्व-लिखित तथ्य मिट जाया करते थे।
इस बीच, कारपेंटर के रूप में राजू का वेतन 14,000 रुपये हो गया था। वह अपने माता-पिता को 10,000 रुपये दे देते, और शेष व्यक्तिगत खर्चे के लिए रखते थे। इस आय से उन्हें बारहवीं कक्षा की परीक्षा देने में मदद मिली। उन्होंने कहा, “मैं हर दिन सुबह 9 से 12 घंटे की शिफ्ट में काम करता था और काम के बीच में अपने लेखन के लिए समय निकालता था। फिर देर रात तक भी लिखता था।”