बालों का कम उम्र में सफेद होना किस हार्मोन की कमी को दर्शाता है ?
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बालों का कम उम्र में सफेद होना किस हार्मोन की कमी को दर्शाता है ?

    कम उम्र में बाल सफ़ेद होना एक बीमारी है, और इसे डॉक्टरी भाषा में इसे केनाइटिस कहते हैं। हमारे शरीर मे मेलानिन नामक एक पिगमेंट होता है और यह मिलानोसाइट सेल्स के द्वारा उत्पन्न होता है। जो हमारे बालो और त्वचा के रंग के लिए महत्वपूर्ण होता है। जब इस मेलानिन पिगमेंट में कमी आती है तो हमारे बालों का रंग सफेद होने लगता है। और इस मेलानिन पिगमेंट में कमी आने के मुख्य कारण कुछ इस तरह से है।
बाल सफेद होने के मुख्य कारण
आनुवंशिक कारक : माता-पिता या परिवार के किसी पीढ़ी में इस तरह की समस्या रही है तो यह आगे भी बनी रह सकती है।
हाइपोथायरायडिज्म : हाइपोथायरायडिज्म (शरीर में थायराइड हार्मोन के स्तर में कमी) की समस्या से ग्रस्त लोगों में समय से पहले बालों के सफेद होने की आशंका होती है।
प्रोटीन की कमी : क्रॉशिअकोर, नेफ्रोसिस, सीलिएक रोग, सहित कुछ अन्य विकारों के कारण शरीर में आई प्रोटीन की कमी के चलते कम उम्र में ही बाल सफेद होने शुरू हो जाते हैं।
मिनरल्स की कमी : आयरन और कॉपर जैसे मिनरल्स की कमी के कारण भी कम उम्र में ही बाल सफेद हो जाते हैं।
विटामिन की कमी : शरीर में विटामिन बी 12 की कमी के अधिकतर लोगों में कम उम्र में ही बाल सफेद होने की समस्या देखी गई है।
विटिलिगो : कुछ मामलों में शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली स्वयं के मेलानोसाइट्स पर हमला करना शुरू कर देती है, जिसके चलते भी बाल सफेद होते हैं।
वॉन रेकलिंगज़ोन रोग (न्यूरोफाइब्रोमैटोसिस) : यह एक आनुवंशिक बीमारी है, जिसमें ट्यूमर बनने लगता है, साथ ही हड्डियों और त्वचा का असामान्य विकास भी शुरू हो जाता है।
डाउन सिंड्रोम : डाउन सिंड्रोम एक आनुवंशिक विकार है। इसके चलते चेहरा और नाक चपटा हो जाता है, गर्दन छोटी हो जाती है, मानसिक विकलांगता और बालों का रंग सफेद होने लगता है।
वर्नर सिंड्रोम : यह एक आनुवंशिक बीमारी है, जिसमें प्रभावित व्यक्ति की त्वचा में परिवर्तन, किशोर मोतियाबिंद (बच्चों में मोतियाबिंद), छोटे कद और समय से पहले बूढ़े होने के लक्षण हो सकते हैं।
दवाएं : क्लोरोक्वीन (मलेरिया के लिए इस्तेमाल की जाने वाली दवा), ट्राइपरानॉल (कोलेस्ट्रॉल कम करने के लिए इस्तेमाल किया जाने वाली दवा), फेनिलथियोरिया (डीएनए परीक्षण में प्रयुक्त)और डिक्सीजरीन (कुछ मनोरोगों के इलाज के लिए) जैसी कुछ दवाओं के साइड इफेक्ट के रूप में भी बालों का रंग सफेद होने लगता है।
तनाव : अध्ययनों से पता चला है कि तनाव के वक्त बनने वाले हार्मोन (एड्रेनालाईन, कोर्टिसोल) मेलानोसाइट कोशिकाओं को प्रभावित करना शुरू कर देते हैं, परिणामस्वरूप बालों के रंग सफेद होने लगते हैं। अब हम इस बीमारी या समस्या के इलाज की बात करते है।
इससे निजात कैसे पाई जाए?
   इस सवाल के जवाब में डॉक्टर अमरेन्द्र कहते हैं, "इस बीमारी का इलाज मुश्किल है। एक बार बाल सफ़ेद होना शुरू हो जाएं तो जितना मुश्किल उनका वापस काला होना है उतना ही मुश्किल बाकी के बचे बालों का सफ़ेद होने से रोकना है।"
   केनाइटिस के लिए दवाइयां और शैम्पू भी बाज़ार में उपलब्ध हैं, लेकिन उनसे केवल 20 से 30 फ़ीसदी सफलता ही मिल सकती है।
   डॉ. दीपाली की माने तो कम उम्र में बाल सफ़ेद न हो इसके लिए खाने पीने पर शुरुआत से ही ध्यान देने की ज़रूरत है. खाने में बायोटिन (एक तरह का विटामिन होता है) का इस्तेमाल करें, बालों में किसी तरह का केमिकल न लगाएं. अक्सर एंटी डेंडरफ शैम्पू में बालों को नुकसान पहुंचाने वाले केमिकल का प्रयोग किया जाता है. ऐसे शैम्पू सप्ताह में सिर्फ दो बार ही लगाए. डॉ. दीपाली के मुताबिक बालों में तेल ज्यादा लगाने से इस बीमारी में कोई फ़र्क नहीं पड़ता। बाकी इलाज के लिए आप अलग अलग वेबसाइट पर देखेगे तो अलग अलग उपचार दिखाई देंगे। 

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