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आदिवासी को बेवकूफ बनाकर भूमाफिया बन रहे करोड़पति, सांसद का ईडी को पत्र

मैं लिखने जा रहा हूं नामजद 
जार प्रतिनिधिमण्डल के साथ उदयपुर सांसद अर्जुन लाल मीणा की खास मुलाकात
  उदयपुर/राजस्थान।। उदयपुर सांसद अर्जुनलाल मीणा ने कड़े शब्दों में ऐलान किया है कि वे ईडी को नामजद पत्र लिखने जा रहे हैं कि अरावली में बसे आदिवासियों की जमीनों की खरीद-फरोख्त की गहनता से जांच करे। इसके पीछे सांसद का तर्क है कि आदिवासियों को बेवकूफ बनाकर भूमाफिया करोड़पति बन रहे हैं। हालांकि, वे यह भी मानते हैं कि आदिवासियों की जमीन को खरीदते समय आड़ किसी आदिवासी की ही ली जाती है, जो कहीं सुदूर क्षेत्र का होता है और डमी होता है। कुछ औने-पौने दामों में वे आदिवासी अपने ही भाइयों को बड़ा नुकसान दे रहे हैं। उनकी दूसरी चिंता यह है कि अरावली का दोहन हो रहा है जो पूरे अंचल में पर्यावरणीय खतरे को बढ़ा रहा है।
  यह बात सांसद मीणा ने सोमवार को जर्नलिस्ट्स एसोसिएशन ऑफ राजस्थान (जार) के प्रतिनिधिमण्डल से मुलाकात के दौरान कही। जार के प्रदेश उपाध्यक्ष नानालाल आचार्य, प्रदेश वरिष्ठ उपाध्यक्ष कौशल मूंदड़ा, उदयपुर के जिलाध्यक्ष राकेश शर्मा राजदीप, महासचिव दिनेश भट्ट, कोषाध्यक्ष गोपाल लोहार, वरिष्ठ सदस्य रविप्रकाश नंदवाना आदि के साथ विशेष मुलाकात में सांसद मीणा ने व्यथित होते हुए कहा कि आदिवासी अंचल का सांसद और आदिवासी समाज से होने के कारण दिन में 10 आदिवासी भाई आकर बताते हैं कि उनकी जमीन औने-पौने दाम में बिक गई। यह नहीं है कि जमीन का बिकाव हो ही ना, लेकिन आदिवासी को उसका पूरा लाभ तो मिलना चाहिए और जहां पर्यावरण की बात है, यदि यही स्थिति बनी रही तो कुछ सालों में उदयपुर अपने प्राकृतिक सौन्दर्य को खो देगा।
  सांसद मीणा ने जार प्रतिनिधिमण्डल के मुद्दे को अंजाम तक पहुंचाने के सवाल पर यह भी विश्वास दिलाया कि इस कार्रवाई के लिए वे संकल्पबद्ध हैं क्योंकि इसमें नुकसान आदिवासी भाइयों का हो रहा है।
बांसवाड़ा रेल के लिए सप्लीमेंट्री बजट में ही प्रयास
  सांसद मीणा ने कहा कि डूंगरपुर-बांसवाड़ा-रतलाम रेल सिर्फ रेल नहीं, बल्कि इस पूरे क्षेत्र की अर्थव्यवस्था के सुनहरे भविष्य की पटरी है। इसके लिए सांसद कनकमल कटारा, सांसद सुभाष बहेड़िया, सांसद सीपी जोशी और सांसद दीया कुमारी को साथ लेकर वे सप्लीमेंट्री बजट में ही कुछ न कुछ लाने का प्रयास करेंगे। इससे डूंगरपुर जंक्शन बनेगा और रतलाम तो देश का बड़ा जंक्शन है ही। इस परियोजना में जो भी अटकाव है, उसे राज्य सरकार को साथ लेकर सुलझाने का प्रयास किया जाएगा। उन्होंने बताया कि बांसवाड़ा में न्यूक्लियर पावर प्लांट के लिए भूमि अधिग्रहण के बाद चारदीवारी का कार्य भी लगभग पूरा होने को है। ऐसे में बांसवाड़ा में रेल की आवश्यकता भी बढ़ गई है।
महुआ को हेरिटेज लिकर ब्रांड बनाने के लिए भी जारी हैं प्रयास
  सांसद मीणा ने एक सवाल के जवाब में कहा कि जब गोवा में काजू फैनी नीतिगत हो सकती है तो आदिवासी अंचल का प्राकृतिक पेय पदार्थ महुआ हेरिटेज लिकर के रूप में नीतिगत क्यों नहीं किया जा सकता। महुआ आदिवासी जीवन संस्कृति का हिस्सा है। इसके लिए वे प्रयास कर रहे हैं। उन्होंने महुआ के औषधीय गुण पर चर्चा करते हुए कहा कि पेड़ से टूटकर गिरा हुआ महुआ फल तुरंत खाने से लाभ मिलता है, साथ ही एक दिन के महुआ के रस को सामान्य तौर पर पिया जा सकता है, हालांकि, तीन दिन पुराने महुआ के रस की शराब बनती है। सांसद ने कहा कि वे महुआ से जूस और शराब बनाने की विधियों का पेटेंट कराने का भी सोच रहे हैं और इसका आईएसओ भी कराएंगे। आदिवासी अंचल में महुआ के लड्डू और महुआ के ढेकले जब पर्यटकों को परोसे जाएंगे तो वे इसका स्वाद कभी भूल नहीं पाएंगे। जहां तक महुआ की शराब की गंध की बात है तो पिनखजूर, सौंफ और इलायची के उपयोग से यह समस्या दूर हो जाती है। सांसद ने कहा कि महुआ में अन्य कोई केमिकल मिलाने पर वह नुकसानदेह हो जाता है।
प्रलोभन से धर्मांतरण आदिवासियों से मजाक
  आदिवासी समाज में धर्मान्तरण के सवाल पर सांसद मीणा ने कहा कि देश के सभी सांसदों का मत है कि धर्मान्तरण आदिवासियों के साथ मजाक है। यह प्रलोभन से किया जा रहा है। इसका नुकसान आदिवासी संस्कृति को ही है और उनके अधिकारो को भी। मामूली लालच में आदिवासी जब अपना धर्म ही बदल रहा है तब उसे सरकारी दोहरा लाभ क्यों मिले। दोहरा लाभ बंद किया जाना चाहिए। आदिवासी सनातन हिन्दू संस्कृति का अभिन्न अंग है, उसे प्रलोभन देकर भ्रमित किया जा रहा है। उन्होंने यह भी कहा कि इस आड़ में कुछ लोग राजनीतिक रोटियां भी सेक रहे हैं जो आदिवासी के बीच अन्य समाजों को बुरा-भला इस सोच से कहते हैं कि इससे आदिवासी उनसे जुड़ेंगे, लेकिन अब आदिवासी समाज भी इस मनभेद बढ़ाने वाली राजनीति को समझने लगा है।
मौताणे का झगड़ा थाने पर क्यों निपटता है?
  चर्चा के दौरान सांसद मीणा ने स्वयं सवाल उठाया कि मौताणे व आपसी विवाद के झगड़े थानों में निपटाने का चलन क्यों बन रहा है। सांसद ने स्पष्ट आरोप मढ़ा कि आदिवासी क्षेत्रों के थाने में एजेंट बैठे हैं, हर दो साल में जिनका स्थानांतरण हो जाना चाहिए वे 25-25 साल से समीपवर्ती चौकियों पर ही समय काट रहे हैं। यह ज्यादातर झाड़ोल-कोटड़ा क्षेत्र में है। आदिवासी भावनाओं में बह जाता है और इसका लाभ बिचौलिये उठाते हैं, जो समझौते का पैसा आता है वह पीड़ित के पास कितना पहुंचता है, इसे आदिवासी को समझना होगा। इसके लिए भी वे प्रयास कर रहे हैं कि हर दो साल में पूरा स्टाफ बदला जाए और इस विषय को लेकर आदिवासी समाज में भी जागरूकता लाई जा रही है।

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