भारत में आज भी ऐसे कई क्षेत्र है जहाँ बेटियों को बोझ समझा जाता है। लेकिन आज हम आपको बताते है ऐसी जगह के बारें में जहाँ बेटियों को बिलकुल भी बोझ नहीं समझा जाता बल्कि बेटी पैदा होने पर त्योहार मनाई जाती है।
हम बात कर रहे है राजस्थान के राजसमन्द जिले के पिपलान्त्री गाँव की। इस गाँव में बेटी के जन्म पर अलग ही तरह से ख़ुशी मनाई जाती है जो कि हमारे देश के लिए और हमारे पर्यावरण के लिए बहुत फायदेमंद साबित होते है। इस गाँव में बेटी पैदा होने पर पुरे गाँव वालें मिलकर इस गाँव में 111 पौधे लगाते हैं। पेड़ों को कीड़े लगने से बचाने के लिए गाँव वाले पेड़ों के चारों ओर घृतकुमारी के पौधें लगाते हैं। और उनके बढ़ने तक उनकी देखभाल भी करते है। इसी कारणवश गाँव के चारों ओर हरी चादर बिछी हुई नज़र आती है।
हम बात कर रहे है राजस्थान के राजसमन्द जिले के पिपलान्त्री गाँव की। इस गाँव में बेटी के जन्म पर अलग ही तरह से ख़ुशी मनाई जाती है जो कि हमारे देश के लिए और हमारे पर्यावरण के लिए बहुत फायदेमंद साबित होते है। इस गाँव में बेटी पैदा होने पर पुरे गाँव वालें मिलकर इस गाँव में 111 पौधे लगाते हैं। पेड़ों को कीड़े लगने से बचाने के लिए गाँव वाले पेड़ों के चारों ओर घृतकुमारी के पौधें लगाते हैं। और उनके बढ़ने तक उनकी देखभाल भी करते है। इसी कारणवश गाँव के चारों ओर हरी चादर बिछी हुई नज़र आती है।
पिछले सात साल में लगा चुके है 3.5 लाख से ज्यादा पेड़
इस अनूठी पहल के कारण अब यह कदम धीरे-धीरे पर्यावरण संरक्षण अभियान जैसा
बन चूका है। इस गाँव में साढ़े तीन लाख से ज्यादा तादाद में पेड़ लगायें जा
चुके है। और राखी के दिन गाँव की सभी बेटियाँ पेड़ों को राखी बांधती नज़र आती
है। इन गाँव वालों के इस बेहतरीन कदम उठाये जाने के कारण और इनके प्रयासों
के बलबूते पर लोगों में बेटियों के प्रति एक अलग ही भावना पैदा की है
जिसके चलते कन्या भ्रूणहत्या और बाल-विवाह जैसे श्राप को ख़त्म किया जा रहा
है।
पिपलान्त्री गाँव ने लड़कियों को देखने का नजरिया ही बदल के रख दिया है।
इस गाँव वाले सिर्फ वृक्षारोपण तक ही नहीं सीमित है बल्कि बेटियों के लिए भी बेहतर भविष्य भी बनाते है। गाँव वाले बेटी के जन्म पर उसके नाम 31 हजार रुपयें की राशि जमा करते हैं। और उसे बैंक में बेटी के नाम से जमा करा देते है। जिसमें 10 हजार रुपयें की राशि तो उसके घरवालों से ली जाती है। और बाकि की राशि गाँव वाले जमा करते है।
माता-पिता शपथ लेते है कि बेटी की शादी 18 वर्ष से पहले नहीं करेंगें
लड़की के माता-पिता एक शपथपत्र पर लिख कर देना होता है कि बेटी की पूरी शिक्षा की व्यवस्था की जाएगी। और बेटी का विवाह उसकी उम्र 18 वर्ष होने पर ही किया जायेगा। और घर का कोई भी सदस्य कन्या भ्रूणहत्या में हिस्सा नहीं लेगा। और जो पेड़-पौधे लगायें गए हैं उनकी देखरेख करनी होगीं।
इस परम्परा की शुरुआत 2006 में हुई थी
वर्ष 2006 में इस परम्परा की शुरुआत हुई थी। जब गाँव के सरपंच
श्यामसुन्दर पालीवाल कि बेटी का निधन बहुत कम अवस्था में हो गया था। इस
गाँव में अभी तक साढ़े तीन लाख से ज्यादा पेड़-पौधे लगायें जा चुके है। और इस
गाँव की एक खासियत और है यहाँ पिछले 7-8 सालों में एक भी मामला पुलिस चौकी
में दर्ज नहीं हुआ है। और इस गाँव को राष्ट्रपति पुरस्कार से भी सम्मानित
किया जा चूका है।


इस गाँव वाले सिर्फ वृक्षारोपण तक ही नहीं सीमित है बल्कि बेटियों के लिए भी बेहतर भविष्य भी बनाते है। गाँव वाले बेटी के जन्म पर उसके नाम 31 हजार रुपयें की राशि जमा करते हैं। और उसे बैंक में बेटी के नाम से जमा करा देते है। जिसमें 10 हजार रुपयें की राशि तो उसके घरवालों से ली जाती है। और बाकि की राशि गाँव वाले जमा करते है।

लड़की के माता-पिता एक शपथपत्र पर लिख कर देना होता है कि बेटी की पूरी शिक्षा की व्यवस्था की जाएगी। और बेटी का विवाह उसकी उम्र 18 वर्ष होने पर ही किया जायेगा। और घर का कोई भी सदस्य कन्या भ्रूणहत्या में हिस्सा नहीं लेगा। और जो पेड़-पौधे लगायें गए हैं उनकी देखरेख करनी होगीं।
इस परम्परा की शुरुआत 2006 में हुई थी
