जिला मुख्यालय से 75 किलोमीटर दूर घनघोर पर्वतों के मध्य कतारी कोना असूर टोली मे आबाद विलुप्त प्रायः जनजातीय के 35 बच्चे बच्चियों को नि:शुल्क शिक्षा देने का काम कर रही है, जो कि काबिले तारीफ और दूसरे समाज के लिए प्रेरणादायक है. सुमित्रा असूर अपने परिवार के तीन भाई बहनों में सबसे छोटी है. बड़ा भाई शनिचरवा असूर कतारी कोना स्कूल मे पारा टीचर है.
दिव्यांग युवती अपने निर्धारित रुटीन के मुताबिक सुबह शाम व छुट्टी के दिनों मे भी गांव के नौनिहालों के बीच शिक्षा रूपी दीप का अलख जगा रही है.
इतना कुछ करने के बावजूद सरकार व प्रशासन की नजर अब तक उस पर नही पड़ी है. इसके अलावा समाज के अन्य कार्यों में भी बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेती है. अपने समाज के दबे कुचले पिछड़े लोगों के बीच प्रेरणास्रोत बनकर आत्मविश्वास का संचार कर रही है.
इस संबंध में सुमित्रा असूर ने बताया कि शिक्षा रूपी हथियार से ही अदिम जनजाति समाज अपनी सभी समस्याओं से लड़कर ऊपर उठ सकता है. इसी उद्देश्य से अपने समाज के लोगों को शिक्षित करने मे लगी हूं. गांव के एतवा असूर, फागू असूर, चरवा असूर, सहित अन्य लोगों ने सरकार से सुमित्रा असूर को विषेश प्रोत्साहन देने की माग की है. सरकार ने मैट्रिक पास आदिमजन जातिये युवक युवतीयों को सरकारी नौकरी मे सीधी नियुक्तियों मे सीधा भर्ती करने की घोषणा कर रखी है.
इसके बावजूद चैनपुर प्रखण्ड के कतारी कोना असूर टोली की सुमित्रा असूर ने 2007 में मैट्रिक पास कर पैसे के अभाव मे अपनी पढ़ाई छोड़ कर अपने गांव मे पढ़ी हुई है.
