नरहर दरगाह में जन्माष्टमी के अवसर पर तीन दिनों का उत्सव आयोजित किया
जाता है.सूत्रों के मुताबिक, इस दरगाह में यह जन्माष्टमी के दिन का उत्सव
पिछले 300-400 वर्षों से मनाया जा रहा है. इस उत्सव में हर समुदाय के लोग
आते हैं. इस समारोह का मुख्य उद्देश्य हिंदुओं और मुस्लिमों में भाई-चारे
को बढ़ावा देना है.
हालांकि स्थानीय लोगों को भी इस बात की जानकारी नहीं है कि यहां इस
त्योहार को मनाने की परंपरा कब और कैसे शुरू हुई, लेकिन इतना जरूर है कि
दरगाह में भगवान कृष्ण के जन्मोत्सव को उल्लास और धूमधाम से मनाया जाना
एकता की सच्ची तस्वीर पेश करता है. इस त्योहार को यहां हिंदू, मुस्लिम और
सिख साथ मिलकर मनाते हैं.
यहां पर आयोजित जन्माष्टमी उत्सव देखने लायक होता है. त्योहार से कुछ
दिन पहले से ही दरगाह के आस-पास की 400 से ज्यादा दुकानों को सजाया जाता
है. सिर्फ़ इतना ही नहीं, जन्माष्टमी की रात यहां अलग-अलग तरह के उत्सव भी
आयोजित किए जाते हैं. मान्यता है कि पहले यहां दरगाह की गुम्बद से शक्कर
बरसती थी. इसी कारण यह दरगाह शक्करबार बाबा के नाम से भी जानी जाती है.
शक्करबार शाह अजमेर के सूफी संत ख्वाजा मोइनुदीन चिश्ती के समकालीन थे तथा
उन्हीं की तरह सिद्ध पुरुष थे. शक्करबार शाह ने ख्वाजा साहब के 57 वर्ष बाद
देहत्याग किया था.
