भीलवाड़ा।। पारस बैरवा अनपढ़ हैं। मजदूरी करके अपने परिवार का गुजारा करते थे पर इस अनपढ़ वैज्ञानिक ने एक-एक रुपया जमा कर 25 हजार के खर्चे से एक ऐसी मशीन बना डाली, जिसने न केवल इनके परिवार की किस्मत बदल दी बल्कि यह मशीन गांव के किसानों के भी बहुत काम आ रही है। भीलवाड़ा जिले के चाखेड गांव के पारस बैरवा और उनकी मशीन की अब चारों ओर चर्चा हो रही है। पारस बैरवा को गरीबी विरासत में मिली थी लेकिन पारस ने खेती के लिए एक मशीन बनाने का सपना देखा और फिर दिन-रात इसमें लग गए।
माण्डल विधानसभा क्षेत्र के 1100 की आबादी वाले ग्राम पंचायत चाखेड में रहने वाले अनपढ़ पारस बैरवा ने 15 साल तक गुजरात के राजकोट में मजदूरी की। 15 साल बाद नई सोच और बुलन्द हौसले के साथ पारस एक दिन अपने गांव लौट आए और खेती के लिए अपनी मशीन बनाने के मिशन में लग गए।
पारस ने बड़ी मशक्कत के बाद 25 हजार रुपए इकट्ठा किए। कुछ पैसा हाथ में आ जाने के बाद जी तोड़ मेहनत की और कबाड़ से लोहे के कुछ पाईप, एंगल और एक सस्ती सी मोटरसाईकिल खरीद कर एक ऐसी मशीन का निर्माण कर दिया, जिसे देख हर कोई चौंक गया। पारस ने 'मोटरसाईकिल वाले हल' का निर्माण कर डाला।
उनकी यह मशीन हर दिन करीब 15-20 मजदूरों के बराबर काम करती है। चाखेड के सरपंच विनेय पारिक का कहना है कि उनके गांव के इस अनपढ़ व्यक्ति ने जो कर दिखाया है, वो खूब पढ़े-लिखे लोगों के लिए भी करना मुश्किल है।
विनेय पारिक ने कहा कि वे प्रशासन के माध्यम से पारस की इस मशीन की जानकारी सरकार तक पहुंचाने का प्रयास करेंगे, ताकि पारस किसानों के लिए और कुछ कर सकें।
