
दूसरी ओर अहम बात यह थी कि मोनिका के पिता देवीदत्त भारद्वाज दिल्ली पुलिस में सब इंस्पेक्टर के पद पर तैनात थे। यानी सब इंस्पेक्टर की बेटी अब आइपीएस थी। पूरा गांव खुशी से झूम रहा था। अब तो मोनिका के नक्शेकदम पर चलकर गांव की एक नहीं अनेक लड़कियां आइएस, आइपीएस बनने की राह पर चल रही हैं। सच कहा जाए तो गांव की लड़कियों के लिए मोनिका की उपलब्धि आज प्रेरणा का श्रोत बन चुकी है। 2009 बैच की आइपीएस ऑफिसर मोनिका भारद्वाज आज बेशक सफलता की राह पर एक मुकाम हासिल कर चुकी हैं, लेकिन लिंगानुपात व भू्रण हत्या जैसी समस्याओं से जूझ रहे हरियाणा के एक छोटे से गांव की लड़की के लिए आइपीएस तक का सफर पूरा करना आसान नहीं था। इच्छाशक्ति व लगन के बूते इसने हर कठिनाई का सामना किया। बस का लंबा इंतजार और घंटों का सफर मोनिका ने पढ़ाई गांव में ही रहकर पूरी की। दसवीं तक सांपला और 12वीं की पढ़ाई रोहतक से करने के बाद बीएससी के लिए दिल्ली के किरोड़ीमल कॉलेज में दाखिल लिया, लेकिन गांव से यहां तक की दूरी कोई कम नहीं थी। रोज आना जाना होता था, लेकिन बस इतनी आसानी से नहीं मिलती थी। चाहे डीटीसी हो या हरियाणा रोडवेज की बस, लंबा इंतजार रोजाना की बात होती। कई बार तो गांव में स्टेंड नहीं होने के कारण बस हाथ देने पर भी नहीं रुकती। किसी तरह बस मिल भी जाती तो उसके बाद दिल्ली का जाम। एक घंटे का सफर कम से कम ढाई घंटे में पूरा होता था। कभी-कभी तो उससे भी अधिक। लौटते समय जब अधिक देर हो जाती तो गांव के बस स्टॉप पर दादी इंतजार करतीं। बावजूद कॉलेज की क्लास कभी मिस नहीं होती थी।
औरों के लिए अब प्रेरणा मोनिका अपने गांव की पहली ऐसी लड़की हैं जो इतने बड़े ओहदे तक पहुंची, लेकिन मोनिका के बाद अब गांव का हर व्यक्ति अपनी बेटी को मोनिका जैसा ही बनाना चाहता है। शुरुआत घर से हुई। पांच भाई बहनों में सबसे बड़ी मोनिका की दो छोटी बहनें सिविल सर्विसेज की तैयारी में जुटी हैं। इनके अलावा गांव की अन्य लड़कियां भी अब दिल्ली में रहकर सिविल सर्विसेज की तैयारी कर रही हैं। बतौर मोनिका अगर इनमें से कोई भी सफलता पा ले तो मेरे जिंदगी की सबसे बड़ी उपलब्धि वही होगी।