रीओ अलिम्पिक में बैडमिनटन फ़ाइनल में मैच के बाद पी वी सिंधू ने विजेता कैरोलिन को गले लग कर बधाई दी। उसके बाद कैरोलिन बधाई देने सिंधू के कोच गोपीचंद की तरफ़ बढ़ीं। लेकिन उसके बाद जो हुआ उसने आँखें भिगो दीं और सीना गर्व से छ्प्प्न इंच का हो गया। पी वी सिंधू खेल के मैदान में आगे बढ़ीं और कैरोलिन का गिरा हुआ रैकेट ससम्मान उठाया। हार जीत का कड़वापन नहीं, खेल भावना का विराट औदात्य मैदान पर जीवन्त दिखा। खेलते समय हमने सिंधू का खेल देखा और फिर सबने सिंधू के भारतीय संस्कार देखे। खेल ने देश को मेडल दिया और संस्कार ने दुनिया को एक नैतिक आदर्श "Ethical Role Model"।
एक बुद्धिमान व्यक्ति अपने एक पाँव पर खड़ा होता है और दूसरा पाँव चलने के लिए आगे बढ़ाता है। स्थिर पाँव परम्पराओं से जोड़ता है और गतिमान पाँव प्रगति से। कुछ ऐसा लिखा है आचार्य हज़ारी प्रसाद द्विवेदी ने। भारत परम्पराओं में प्रगति का देश है, संक्रान्ति में क्रांति का देश है, प्रतिस्पर्धा में भी सहकार का देश है। हमारे जितने कालजयी नायक हैं सब इन्हीं लक्षणों से जाने जाते हैं। राम कृष्ण नानक रैदास राणा शिवाजी अशोक बुद्ध ध्यानचंद कलाम भाभा कितने ही नाम हैं। देश को एक शानदार समकालीन "रोल मॉडल" मिलने की बधाई। ये ओलम्पिक देश को इतना कुछ दे जा रहा है जो वर्तमान में देखना सब के बस का नहीं। और जो देख पा रहे हैं वो देख रहे हैं जागता हुआ हौसला, रोल मॉडल का उभरना, अगले ओलम्पिक में कम से कम दस गुना बेहतर प्रदर्शन तय है। धन्यवाद पी वी सिंधू, साक्षी मलिक के बाद देश को एक और जीत का अहसास करवाने के लिए, खेल भावना के उच्चतम स्तर का प्रदर्शन कर गौरव को हज़ार गुना बढ़ाने के लिए।
विश्व भूषण ...
