


नए कानून के एक अनुच्छेद के मुताबिक अभिभावक और रिश्तेदार अपने बच्चों को स्कूल खत्म होने के बाद काम पर लगा सकते हैं, क्योंकि सरकार मानती है कि भारत की आर्थिक सच्चाईयों से भी मुंह नहीं मोड़ा जा सकता. श्रम मंत्री बंडारू दत्तात्रेय ने कहा कि यह कानून बच्चों से मजदूरी करवाने की नहीं, परिवारों को सिर्फ अपने बच्चों की मदद लेने की अनुमति देता है. हालांकि कागज़ों से बाहर निकलकर ज़मीनी स्तर पर हक़ीकत कुछ और ही है.
स्कूल भी काम भी
हम उत्तरी दिल्ली के नरेला में एक पुनर्वास बस्ती में पहुंचे जहां हमारी मुलाकात 10 साल के नसीर से हुई जो पान में इस्तेमाल किए जाने वाले चूने को बोतलों में भरने के काम में अपनी मां की मदद करता है. वहीं से कुछ दूरी पर 10 साल का संजय अपनी मां के साथ चाय का ठेला चलाता है. इस काम में वक्त काफी लगता है लेकिन कमाई कुछ खास नहीं होती. संजय की मां ने बताया कि हर दिन वह करीब 300-500 रुपए कमा लेते हैं.