
दुनिया के सबसे विशाल लोकतंत्र में जब पहली बार चुनाव हुए थे, तब नये-नवेले आजाद हिंदुस्तान के इस लोकतांत्रिक उत्सव को पूरी दुनिया ने कौतुहल के साथ देखा था। जाहिर है आज जबकि देश की आजादी को 60 साल से ज्यादा बीत रहे हैं, ऐसे में यहां के चुनाव कई मायनों, राजनीतिक मुद्दों और सियासी सरगर्मियों के बीच चर्चा में रहे हैं, लेकिन बावजूद इसके भारत के चुनावी इतिहास में कभी भी किसी नेता की बीमारी चुनावी मुद्दा कभी नहीं बनीं, जिस तरह इन दिनों दुनिया के सबसे पुराने लोकतंत्र अमेरिका के चुनावों में डेमोक्रेटिक पार्टी की कैंडिडेट हिलेरी क्लिंटन की गिरती सेहत बन रही है।
दरअसल, अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव के भीतर हिलेरी क्लिंटन एक महत्वपूर्ण उम्मीदवार हैं और उन्हें ट्रंप के मुकाबले बेहद अहम भी माना जा रहा है, लेकिन बेरोजगारी, भ्रष्टाचार, हिंसा, आर्थिक मंदी और आईएसआईएस जैसे मुद्दो के बीच अहम मुद्दा हिलेरी की बीमारी ही बन गई है। रिपब्लिकन पार्टी के उम्मीदवार डोलान्ड ट्रंप ने डेमोक्रेट नेता हिलेरी क्लिंटन की बीमारी को बड़ा मुद्दा बनाया है।
दरअसल, वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर हुए आतंकी हमले की बरसी पर हिलेरी अचानक बीमार पड़ गई थीं। बाद में पता चला कि उन्हेंट निमोनिया हो गया है। ट्रंप ने इस मुद्दे को उठाते हुए कहा कि हिलेरी ने अपनी बीमारी की बात छुपाकर रखी है। दरअसल, अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव में हिस्सा लेने वाले उम्मीदवारों को अपने स्वास्थ से संबंधी हर जानकारी भी अहम भूमिका निभाती है, और उसे सार्वजनिक करना भी एक जरूरी बात माना जाता है, यही वजह है कि ट्रंप को हिलेरी की बीमारी के बहाने ही उनपर निशाना साधने का मौका मिल गया है। उन्होंने हिलेरी पर जनता से धोखा देने का आरोप तक लगा दिया है।
बहरहाल, हम भारतीयों को ये सुनकर थोड़ा अजीब लग रहा है कि भला किसी उम्मीदवार की बीमारी भी इतना बड़ा मुद्दा बन सकती है, जबकि हमारे देश में ज्यादातर बड़े नेताओं की उम्र 70 के करीब है ऐसे में उनका सेहतमंद होना थोड़ा मुश्किल ही है। हमारे देश में 55-60 साल के नेता युवा माने जाते हैं, जाहिर है ऐसे में उनकी सेहत का दुरुस्त होना इतना आसान नहीं हैं।
देश की सबसे पुरानी पार्टी को चला रही 69 साल की कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी अक्सर बीमार रहती हैं। कई बार वो अपने इलाज के लिए विदेश भी जा चुकी हैं। 2017 के विधानसभा चुनाव का बिगुल बजते ही वाराणसी में पहली ही रैली करने पहुंचीं कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी की तबीयत भी रैली में अचानक बिगड़ गई। सोनिया की सेहत इतनी खराब हो गई कि उन्हें कई दिनों तक अस्पताल में भर्ती रहना पड़ा।
इधर, देश में 10 सालों तक प्रधानमंत्री रहे मनमोहन सिंह की सेहत के बारे में तो सारी दुनिया जानती हैं। 83 साल के हो चुके मनमोहन की उम्र जब 73 साल की थी, तब वो प्रधानमंत्री बने थे। 2009 में उनकी बायपास सर्जरी भी हुई थीं। उनकी सेहत भी अक्सर खराब ही रहती थी। मनमोहन सिंह से पहले प्रधानमंत्री रहे अटल बिहारी वाजपेयी आज बिस्तर पर हैं और राजनीतिक जीवन से सन्यांस ले चुके हैं। वाजपेयी अपने प्रधानमंत्री काल में ही घुटनों के दर्द से अक्सर परेशान रहते थे, उनको छुट्टी लेकर घुटनों की सर्जरी भी करानी पड़ी थी। बाद में उनकी बिगड़ती सेहत की वजह से ही उनको राजनीति छोड़नी पड़ी और उनकी हालत ज्यादा ही बिगड़ गई। अटल कई सालों से बिस्तर पर हैं।
इधर, कांग्रेस की तरफ से 2017 के यूपी विधानसभा चुनाव में सीएम की उम्मीदवार घोषित की जा चुकी शीला दीक्षित 79 साल की हैं, वो अक्सर अस्वस्थ ही रहती हैं, लेकिन फिर भी कांग्रेस ने शीला पर दांव खेला। यूपी में पहली ही रैली करने पहुंचीं शीला की तबीयत अचानक खराब हो गई और उन्हें वापस दिल्ली लौटना पड़ा। वहीं अगर दिल्ली के युवा मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की बात करें, तो उनकी सेहत हमेशा ही नासाज रहती है। 48 साल के केजरीवाल जबसे मुख्यमंत्री बने हैं, बीमार ही रहते हैं।
डाइबिटिज के मरीज केजरीवाल आजकल अपने गले के ऑपरेशन के सिलसिले में बेंगलुरु में हैं और यहां दिल्ली की जनता भी बीमार पड़ी है। सपा सांसद अमर सिंह की सेहत की बात करें, तो खुद कई गंभीर बीमारियों से पीड़ित हैं, लेकिन राजनीति में आज भी सक्रिय हैं। अमर सिंह महीनों तक सिंगापुर के अस्पताल में भर्ती रहे, उनकी हालत देखकर यही लग रहा था कि वो अब राजनीति से सन्यास ले लेंगे, लेकिन अमर सिंह अपने पुराने साथी मुलायम सिंह के साथ एक बार फिर राजनीति की दूसरी पारी खेलने को तैयार हैं।
जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद ने बीमारी की हालत में ही सीएम का ताज पहना और एक साल तक सत्ता संभाले के बाद उनकी सेहत बिगड़ने लगी। हालत ज्यादा बिगड़ने पर उन्हें दिल्ली के एम्स अस्पताल में भर्ती करवाना पड़ा। कई दिनों तक अस्पताल में जिंदगी और मौत से जूझते हुए जनवरी 2016 में उनका निधन हो गया।
वैसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपनी सेहत को लेकर काफी सचेत रहते हैं। जिसकी वजह है उनकी खास दिनचर्या। वो अपनी फिटनेस पर काफी ध्यान देते हैं। शायद इसीलिए 65 साल की उम्र में भी वो 15 घंटे तक काम करते हैं, लेकिन मोदी कैबिनेट के कई मंत्री अपनी बीमारी से परेशान रहते हैं। वित्त मंत्री अरुण जेटली की सेहत अक्सर नासाज रहती है।
सवाल ये है कि क्या अमेरिका जैसे ही नेताओं की सेहत जनता के लिए एक मुद्दा बन सकता है? और मान लीजिए ऐसा हो जाए और अगर नेताओं को फिटनेस के आधार पर आंका जाने लगा तो चुनाव के लिए उम्मीदवार कहां से आएंगे? क्योंकि देश में ज्यादातर बड़े नेता लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, मुलायम सिंह यादव, लालू प्रसाद यादव, शरद यादव सबकी की उम्र 70 से ऊपर है, वे पूरी तरह से फिट नहीं हैं?
सवाल फिर ये भी उठता है कि एक ऐसे समय में जबकि पूरी दिल्ली डेंगु, चिकनगुनिया, मलेरिया जैसी बीमारियों की चपेट में है जबकि दिल्ली के मुखिया, यानी की सीएम केजरीवाल खुद भी अपनी बीमारी का इलाज कराने के लिए राज्य से बाहर गए हैं तो ऐसे में यह सवाल अहम तो हो ही जाता है कि सियासत में आने से पहले नेताओं को अपनी सेहत और स्वास्थ्य व गंभीर बीमारियों की जानकारी जनता से नहीं छिपानी चाहिए?
बहरहाल, यदि सेहत और फिटनेस को पैमाना मान भी लिया जाए तो ऐसे में पीएम मोदी की 75 की उम्र में सियासत से रिटायर होने की भारतीय राजनीति और यहां के दलों के लिए सटीक भी बैठती है, लेकिन सवाल यह है कि बुजुर्गों को आराम और युवाओं को लगाम, थमाने का चलन हमारी राजनीति में कब शुरू होगा..?