सपा बसपा और कांग्रेस से दूर होते मुस्लिम मतदाता पर ओवैसी की पैनी नज़र
उत्तर प्रदेश में मुस्लिम वोट बैंक की लड़ाई तीखी होती दिख रही है. सपा, बसपा और कांग्रेस लगातार मुसलमान वोटर पर डोरे डालने की कोशिश कर रहे हैं, इस बीच हैदराबाद के नेता असदुद्दीन ओवैसी की आॅल इंडिया मजलिस ए इत्तेहादुल मुस्लिमीन यानी एआईएमआईएम इन तीनों ही दलों को झटका देने की तैयारी में है.दलितों और मुसलमानों के वोट बैंक पर नजर के साथ एआईएमआईएम इस बार प्रदेश की मुस्लिम बाहुल्य करीब 125 सीटों पर प्रत्याशी उतारने की तैयारी में है. सपा बसपा और कांग्रेस से दूर होते मुस्लिम मतदाता पर एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी की पैनी नज़र है वैसे सत्ताधारी समाजवादी पार्टी पर नजर डालें तो एआईएमआईएम से सबसे ज्यादा चिंतित वही दिख रही है. इसी साल विधानसभा उपचुनाव में 16 फरवरी को घोषित नतीजों ने सपा को देवबंद और मुजफ्फरनगर में हार झेलनी पड़ी. ये मुस्लिम बाहुल्य इलाके माने जाते हैं. वहीं फैजाबाद के करीब बीकापुर सीट पर सपा भले ही जीत गई हो, लेकिन एआईएमआईएम ने यहां 11,587 वोटों के साथ चौथे नंबर पर रहकर सपा को झटका दिया. आनंदसेन भले ही बीकापुर सीट जीत गए, लेकिन सपा के लिए इस विजय का स्वाटद फीका ही रखा.पाटी के प्रदेश अध्यक्ष शौकत अली कहते हैं कि पता नहीं समाजवादी पार्टी हमारी पार्टी से डरी हुई है या क्या है. यही कारण है कि हमारी जहां भी सभाएं होती हैं, सत्तारूढ़ दल के दबाव में जिला प्रशासन अनुमति ही नहीं देता है. आज कानपुर में ही राष्ट्रीय अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी की सभा होने वाली थी लेकिन प्रशासन ने अनुमति नहीं दी. राजधानी लखनऊ में किसी तरह अनुमति मिली है.
उत्तर प्रदेश में मुस्लिम वोट बैंक की लड़ाई तीखी होती दिख रही है. सपा, बसपा और कांग्रेस लगातार मुसलमान वोटर पर डोरे डालने की कोशिश कर रहे हैं, इस बीच हैदराबाद के नेता असदुद्दीन ओवैसी की आॅल इंडिया मजलिस ए इत्तेहादुल मुस्लिमीन यानी एआईएमआईएम इन तीनों ही दलों को झटका देने की तैयारी में है.दलितों और मुसलमानों के वोट बैंक पर नजर के साथ एआईएमआईएम इस बार प्रदेश की मुस्लिम बाहुल्य करीब 125 सीटों पर प्रत्याशी उतारने की तैयारी में है. सपा बसपा और कांग्रेस से दूर होते मुस्लिम मतदाता पर एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी की पैनी नज़र है वैसे सत्ताधारी समाजवादी पार्टी पर नजर डालें तो एआईएमआईएम से सबसे ज्यादा चिंतित वही दिख रही है. इसी साल विधानसभा उपचुनाव में 16 फरवरी को घोषित नतीजों ने सपा को देवबंद और मुजफ्फरनगर में हार झेलनी पड़ी. ये मुस्लिम बाहुल्य इलाके माने जाते हैं. वहीं फैजाबाद के करीब बीकापुर सीट पर सपा भले ही जीत गई हो, लेकिन एआईएमआईएम ने यहां 11,587 वोटों के साथ चौथे नंबर पर रहकर सपा को झटका दिया. आनंदसेन भले ही बीकापुर सीट जीत गए, लेकिन सपा के लिए इस विजय का स्वाटद फीका ही रखा.पाटी के प्रदेश अध्यक्ष शौकत अली कहते हैं कि पता नहीं समाजवादी पार्टी हमारी पार्टी से डरी हुई है या क्या है. यही कारण है कि हमारी जहां भी सभाएं होती हैं, सत्तारूढ़ दल के दबाव में जिला प्रशासन अनुमति ही नहीं देता है. आज कानपुर में ही राष्ट्रीय अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी की सभा होने वाली थी लेकिन प्रशासन ने अनुमति नहीं दी. राजधानी लखनऊ में किसी तरह अनुमति मिली है.
शौकत अली बताते हैं कि यूपी में पिछले तीन से चार सालों से हम चुनाव की तैयारी कर रहे हैं. आज उसी का नतीजा है कि लगभग हर जिले में हमारा संगठन खड़ा हो गया है. यूपी से पार्टी की सदस्यता 10 लाख के आंकड़े को पार कर चुकी है. यही नहीं प्रदेश के 40 जिले करीब ऐसे हैं, जहां हमारी पकड़ बूथ स्तर तक हो चुकी है. बाकी के जिलों में भी इसी तरह का काम जारी है.उत्तर प्रदेश में करीब 120 विधानसभा सीटें मुस्लिम बाहुल्य मानी जाती हैं. इनमें पश्चिम उत्तर प्रदेश की मेरठ, सहारनपुर, संभल, मुरादाबाद, अलीगढ़, रामपुर जिले शामिल हैं. उत्तर प्रदेश में करीब 142 सीट ऐसी हैं जिस पर मुस्लिम वोटर ही निर्णायक भूमिका में होते हैं और जिस तरफ इनका झुकाव होगा, वही पार्टी जीत दर्ज कर लेगी. इनमें करीब 74 सीट पर मुसलमान 30 फीसदी या उससे भी ज्यादा हैं, जबकि 69 सीट के करीब सीटों पर मुस्लिम आबादी 20 और 30 प्रतिशत के बीच है. प्रदेश की 403 विधानसभा सीटों में से करीब 140 सीट पर मुस्लिम आबादी 10 से 20 फीसदी के बीच है.दिलचस्प बात ये है कि मुस्लिम वोटरों ने हमेशा से समाजवादी पार्टी का साथ दिया है लेकिन अब ये बसपा और कांग्रेस को भी तरजीह देने लगा है. 2002 विधानसभा चुनावों में समाजवादी पार्टी को करीब 55 प्रतिशत मुस्लिम वोट मिले थे. 2007 के विधानसभा चुनाव में यह आंकड़ा घटकर 45 फीसदी के करीब आ गया और 2012 में और भी घटकर 40 प्रतिशत ही रह गया. यानि मुसलमानों का मुलायम सिंह यादव से मोहभंग सा होता जा रहा है.
वहीं समाजवादी पार्टी की धुर विरोधी बहुजन समाज पार्टी की अगर बात करें तो 2002 से ही बसपा का मुस्लिम वोट बढ़ता जा रहा है. 2002 के चुनावों में बसपा को 8 प्रतिशत मुस्लिम वोट मिले, 2007 में यह आंकड़ा 17 प्रतिशत और 2012 में 21 फीसदी पर पहुंच गया. उधर कांग्रेस को 2002 विधानसभा चुनावों में 10 फीसदी मुसलमानों के वोट मिले थे, जो 2012 तक बढ़कर 19 प्रतिशत पर पहुंच गए.शौकत अली कहते हैं कि दरअसल चाहे वह सपा हो, बसपा या कांग्रेस सभी ने मुसलमानों को सिर्फ बेवकूफ ही बनाया. उनके हितों के लिए कुछ नहीं किया, बस वोट बैंक की तरह ही इस्तेमाल किया. सपा ने तो मुसलमानों के आरक्षण की बात की थी, उसका क्या हुआ, पता ही नहीं चला. शौकत के अनुसार प्रदेश की इन्हीं मुस्लिम बाहुल्य सीटों को ध्यान में रखकर वह चुनाव तैयारी कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि प्रत्याशियों का चयन अभी किया ही जा रहा है. पार्टी को भारी संख्या में टिकट के दावेदारों के आवेदन मिले हैं लेकिन हमारे कुछ मानक हैं, जिनके आधार पर प्रत्याशी चयन प्रक्रिया जारी है. इसमें उम्मीदवार का आपराधिक इतिहास नहीं होना चाहिए, प्रमुख है.शौकत अली ने बताया कि उनकी पार्टी जहां-जहां प्रत्याशी उतारेगी, वहां-वहां हाइटेक प्रचार रथ भेजने का फैसला किया है. जनवरी से ये अभियान शुरू हो जाएगा. इस प्रचार रथ में प्रोजैक्टर की व्यवस्था भी होगी, जिसमें पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी के भाषण सुनाए जाएंगे, साथ ही उत्तर प्रदेश को लेकर पार्टी की नीति, वादे आदि प्रचारित किए जाएंगे.बसपा से गठबंधन की बात पर शौकत कहते हैं कि हमारी पार्टी तो पहले ही साफ कर चुकी है कि हम बसपा से गठबंधन करने को तैयार हैं. उनकी तरफ से कई नेताओं से बात तो हुई है लेकिन बात आगे नहीं बढ़ी है।