
दरअसल बात शनिवार की है जब टंडन दोपहर करीब डेढ़ बजे विवेक के घर पहुंचे थे जहां पहले से ही भारी भीड़ मौजूद थी। लखनऊ विश्वविद्यालय के छात्र और कांग्रेस के कार्यकर्ता नारेबाजी कर रहे थे। डीएम-एसएसपी को साथ लेकर टंडन एक कमरे में विवेक के परिजनों से मिले। बाहर आए तो विरोध शुरू हो गया। मीडिया ने परिजनों पर दबाव बनाए जाने के आरोप पर सवाल पूछा तो टंडन चुप रहे। गाड़ी की तरफ बढ़े मगर भीड़ के चलते टंडन आगे नहीं बढ़ पाए तो पुलिस ने लाठियां भांज लोगों को खदेड़ा।
विवेक का शव शनिवार सुबह घर लाया गया था। यहां पहले से ही भारी पुलिस बल मौजूद था। पड़ोसी और विवेक को जानने वाले बेहद गुस्से में थे। आरोपी पुलिसवालों को फांसी की बात पर जब वहां मौजूद पुलिसकर्मियों ने ड्यूटी के मानसिक तनाव की बात कही तो लोग भड़क गए। कहा गया कि अगर पुलिस तनाव में रहती है तो क्या राह चलते किसी को भी गोली मार देगी। पुलिसकर्मी माहौल समझ चुपचाप किनारे हो गए। तिवारी के घर पर भाजपा के कई स्थानीय नेता भी गए थे मगर चुप्पी साधे रहे। कई ने तो अपनी पहचान भी इस डर से नहीं बताई कि उन्हें विरोध का सामना न करना पड़ जाए।