अब मस्जिद में महिलाओं को नमाज पढ़ने की मिली आजादी
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अब मस्जिद में महिलाओं को नमाज पढ़ने की मिली आजादी

     नई दिल्ली।। ऑल इंडिया (एआईएमपीएलबी) ने को बताया है कि पुरुषों की तरह ही महिलाओं को भी मस्जिद में नमाज पढ़ने की इजाजत है। एक जनहित याचिका के जवाब में की ओर से यह बात कही गई। बता दें कि याचिकाकर्ता यास्मीन जुबेर अहमद पीरजादा ने मस्जिदों में महिलाओं के प्रवेश के लिए न्यायिक हस्तक्षेप की मांग की थी।
    अब इस मामले की सुनवाई नौ जजों की संवैधानिक बेंच द्वारा की जाएगी। इस बेंच की अगुआई चीफ जस्टिस शरद अरविंद बोबडे करेंगे। यह बेंच केरल के सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश संबंधी मामले के अलावा देशभर के कई धार्मिक प्रतिष्ठानों में महिलाओं से होने वाले भेदभाव से जुड़े मामलों के कानूनी और संवैधानिक पक्ष को देख रही है। 
‘मस्जिद में महिलाओं को नमाज पढ़ने की पूरी आजादी’
     एआईएमपीएलबी के सेक्रेटरी मोहम्मद फजलुर्रहीम ने अपने वकील एम आर शमशाद के माध्यम से फाइल किए गए ऐफिडेविट में कहा है, ‘इस्लाम के अनुयायियों के धार्मिक मत, सिद्धांत और धार्मिक साहित्य को ध्यान में रखते हुए, यह बताया जाता है कि मस्जिदों में महिलाओं के प्रवेश और उनके द्वारा नमाज पढ़ जाने की पूरी इजाजत है। ऐसे में हर मुस्लिम महिला मस्जिद में नमाज पढ़ने के लिए पूरी तरह से आजाद है। अपनी मर्जी के मुताबिक वह मस्जिद में उपलब्ध सुविधाओं का लाभ लेते हुए हर महिला नमाज पढ़ सकती है।’ 
    ऐफिडेविट में आगे कहा गया, ‘ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड इस संबंध में किसी विरोधाभासी धार्मिक विचार पर टिप्पणी नहीं करना चाहता।’ ऐफिडेविट के अनुसार, इस्लाम में मुस्लिम महिलाओं के लिए जमात के साथ नमाज पढ़ना अनिवार्य नहीं है और ना ही जमात के साथ जुमे की नमाज में शामिल होना उनके लिए अनिवार्य है, जोकि मुस्लिम पुरुषों के लिए अनिवार्य है। 
नौ जजों की संविधान पीठ कर रही है सुनवाई
    बोर्ड द्वारा दाखिल किए गए ऐफिडेविट में यह भी कहा गया, ‘मुस्लिम महिलाओं को अलग स्थान दिया गया है क्योंकि इस्लाम की शिक्षाओं के अनुसार, उन्हें मस्जिद या घर पर जहां चाहें, वहां नमाज पढ़ने पर उतना ही धार्मिक सवाब (पुण्य) मिलेगा।’ सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कहा था कि नौ जजों की संविधान पीठ 10 दिन के अंदर मस्जिदों में मुस्लिम महिलाओं के प्रवेश, दाऊदी बोहरा मुस्लिम समुदाय में महिलाओं का खतना आदि से संबंधित प्रश्नों पर सुनवाई करेगी। एआईएमपीएलबी की दलील थी कि धार्मिक आस्थाओं पर आधारित प्रथाओं के सवालों पर विचार करना शीर्ष अदालत के लिए उचित नहीं है। 
    ऐफिडेविट में यह भी कहा गया कि मस्जिदों में धार्मिक गतिविधियों का नियंत्रण निजी संगठनों के पास होता है और एक्सपर्ट बॉडी होने के नाते एआईएमपीएलबी ही इस्लाम से जुड़े मामलों में सलाह मशविरा दे सकता है। ऐसे में धार्मिक स्थलों के मामले में कोर्ट हस्तक्षेप नहीं कर सकता है। यह धार्मिक गतिविधियों के लिए निजी रूप से संचालित है।

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