आज कंगना रानौत फिल्मी दुनिया की जिन विषाक्त सच्चाईयों से देश और दुनिया को जिस साहस और बेबाकी के साथ परिचित करा रहीं हैं. ठीक ऐसी ही बेबाकी और साहस के साथ यही सच बताने का प्रयास लगभग 30-35 वर्ष पूर्व 80 के दशक की सुपरस्टार, उस समय की सर्वाधिक चर्चित एवं लोकप्रिय अभिनेत्री परवीन बॉबी ने भी किया था. परवीन बॉबी के उस रहस्योदघाटन के केन्द्र में महेश भट्ट और सदी के महानायक महोदय अमिताभ बच्चन समेत कई नामचीन चेहरे आ गए थे. लेकिन इसका परिणाम यह हुआ था कि गुलाम मीडिया ने परवीन बॉबी को पागल घोषित कर दिया था और बॉलिवुड के साथ ही साथ परवीन बॉबी का नाम मीडिया से भी गायब हो गया था.
बहुत कम लोगों को यह ज्ञात होगा कि परवीन बॉबी ने 1993 के मुम्बई बम कांड की सुनवाई के दौरान न्यायालय में बाकायदा हलफनामा देकर यह कहा था कि मेरे पास संजय दत्त के खिलाफ़ कुछ ठोस सबूत हैं और मैं गवाही देना चाहती हूं. परवीन बॉबी को यह अनुमति मिल भी गयी थी लेकिन बाद में परवीन बॉबी गवाही देने अदालत नहीं गयी. इसका कारण भी परवीन बॉबी ने बताया था कि मुझे जान से मार देने की धमकियां मिल रहीं हैं. सच क्या था यह कभी पता नहीं चला. क्योंकि जिस मीडिया को यह सच तलाशना था उस मीडिया के निशाने पर उस सच की तलाश के बजाय परवीन बॉबी थी और संजय दत्त के उस देशघाती कुकर्म पर पर्दा डालने के लिए संजय दत्त की नादानी मासूमियत भोलेपन की कहानियों से देश के अखबार और पत्रिकाओं के पन्ने रंगे रहते थे.
कोढ़ में खाज वाली स्थिति 1998 में तब हो गयी थी जब परवीन बॉबी ने मुस्लिम धर्म त्याग कर ईसाई धर्म अपना लिया था. और सार्वजनिक रूप से ऐलानिया यह बताया था कि मुझे PORK ( सूअंर का गोश्त) के बने व्यंजन सर्वाधिक पसन्द हैं.
लगभग 13-14 वर्ष तक गुमनामी का जीवन गुजारने के बाद जनवरी 2005 में परवीन बॉबी की मृत्य हो गयी थी. परवीन बॉबी की जब मृत्यु हुई उस समय उसके पास धन की कोई कमी नहीं थी. परवीन बॉबी पागल थी या नहीं.? इसका उत्तर एक समान्य तथ्य से समझ लीजिए कि मुम्बई के जिस पॉश इलाके के अपने फ्लैट में परवीन बॉबी ने अपनी जिंदगी के आखिरी 13-14 वर्ष गुमनामी और अकेलेपन में गुजारे उस अपार्टमेंट में रहने वाले लोगों ने परवीन बॉबी के आचरण या व्यवहार को लेकर कभी कोई शिकायत नहीं की थी. उन सबका यही कहना था कि परवीन बॉबी किसी से घुलती मिलती नहीं थीं और अपनी खुद की दुनिया में सिमटी रहती थीं.
आप स्वयं सोचिए कि क्या कोई पागल ऐसा व्यवहार करता है.?
बस तब और अब में इतना अन्तर हो चुका है कि परवीन बॉबी के पास सोशल मीडिया नहीं था. जबकि कंगना के पास आज सोशल मीडिया का वो ब्रह्मास्त्र है जो कुछ ही क्षणों में उस मीडियाई षड्यंत्र की चमड़ी उधेड़ देता है जो आज से 30 साल पहले किसी परवीन बॉबी को सफ़लतापूर्वक पागल घोषित कर दिया करता था.
लगभग 13-14 वर्ष तक गुमनामी का जीवन गुजारने के बाद जनवरी 2005 में परवीन बॉबी की मृत्य हो गयी थी. परवीन बॉबी की जब मृत्यु हुई उस समय उसके पास धन की कोई कमी नहीं थी. परवीन बॉबी पागल थी या नहीं.? इसका उत्तर एक समान्य तथ्य से समझ लीजिए कि मुम्बई के जिस पॉश इलाके के अपने फ्लैट में परवीन बॉबी ने अपनी जिंदगी के आखिरी 13-14 वर्ष गुमनामी और अकेलेपन में गुजारे उस अपार्टमेंट में रहने वाले लोगों ने परवीन बॉबी के आचरण या व्यवहार को लेकर कभी कोई शिकायत नहीं की थी. उन सबका यही कहना था कि परवीन बॉबी किसी से घुलती मिलती नहीं थीं और अपनी खुद की दुनिया में सिमटी रहती थीं.
आप स्वयं सोचिए कि क्या कोई पागल ऐसा व्यवहार करता है.?
बस तब और अब में इतना अन्तर हो चुका है कि परवीन बॉबी के पास सोशल मीडिया नहीं था. जबकि कंगना के पास आज सोशल मीडिया का वो ब्रह्मास्त्र है जो कुछ ही क्षणों में उस मीडियाई षड्यंत्र की चमड़ी उधेड़ देता है जो आज से 30 साल पहले किसी परवीन बॉबी को सफ़लतापूर्वक पागल घोषित कर दिया करता था.