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बांसवाड़ा/उदयपुर/राजस्थान।। कहते है अध्यापक यदि सजग और जागरूक रहे तो वह सरकार के जर्जर हो चुके विद्यालयों में भी जान फुक सकते है। इसी को देखते हुए आज मानसून पूर्व उदयपुर संभाग के बांसवाड़ा जिले के मोहन कॉलोनी स्थित राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय नूतन में भी वृक्षारोपण कार्यक्रम का आयोजन किया गया। यह कार्यक्रम वृक्षम फाउंडेशन के नीरज पाठक एवं विद्यालय के परिसर प्रभारी कमल पाठक जी एवं संस्था के बीएलओ अरविंद सारिया जी के मार्गदर्शन में आयोजित हुआ।
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आपको जानकर हैरानी होगी की इस विद्यालय से पूर्व में बीएड इंटर्नशिप कर चुकी अध्यापिकाओं जिनमे सुश्री जूही जैन, आकांशा जैन, वंदना जैन ने उक्त विद्यालय में स्थित गाँधी वाटिका के निर्माण में सहयोग हेतु स्वयं के हाथों से रंगरोगन का कार्य कर पौधरोपण किया गया।
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संस्था प्रधान का कहना है की उक्त इंटर्नशिप कर चुकी अध्यापिकाएं सदैव निवेदन पर विद्यालय के बच्चों को निःशुल्क अध्यापन करवाने में भी सहयोग करती रहती है। वही विद्यालय में उक्त वृक्षारोपण कार्य में महिला अध्यापिकाओं, आंगनवाड़ी सहायिकाओं एवं अन्य कार्मिकों का भी सहयोग रहा है।
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बरसों से जर्जर हालत में पहुंच चुके सरकारी विद्यालयों के प्रति सरकार की उदासीनता अब आम बात बन चुकी है। आप देखेंगे तो पाएंगे की राजस्थान के कई जिलों के शहरी क्षेत्रों में तो सरकारी विद्यालयों की दुर्दशा ऐसी हो चुकी है की वह कभी भी धराशाही भी हो सकते है। राजस्थान के जनजाति बाहुल्य क्षेत्र के बांसवाड़ा जिले के शहरी क्षेत्र में स्थित राजकीय नूतन विद्यालय के भी कुछ ऐसे ही हालात हो चुके है। उक्त विद्यालय 1 से 12 वी तक की कक्षाओं के लिए संचालित है। वर्तमान में यह विद्यालय तीन परिसरों में संचालित किया जा रहा है।
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1960 के दशक में बने इस विद्यालय के परिसरों को देखने से पता चलता है की इन विद्यालयों के परिसरों के नवनिर्माण की और सरकार ने कभी ध्यान ही नहीं दिया। उक्त विद्यालय के तीनों परिसरों में पढ़ने वाले विद्यार्थियों की संख्या वर्तमान 2000 से भी अधिक हो चुकी है, जो उदयपुर संभाग में किसी भी सरकारी विद्यालय में सबसे अधिक नामांकन होने का दावा भी कर रही है।
इस जिले के शहरी क्षेत्र की जनसँख्या आकड़ों के मुताबिक 2 लाख बताई जाती है। लेकिन इसके उपरांत भी सरकार इस विद्यालय के नव निर्माण की और ध्यान नहीं दे रही है। कुछ अभिभावकों का कहना है की इसका सबसे कारण यह है की इस जिले में कुछ राजनेताओं के निजी स्कूल भी संचालित है जो अपने निजी लाभ के चलते इस विद्यालय के निर्माण में अवरोध उत्पन्न करते रहते है।
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आपको बता दे की राजस्थान में सत्ता परिवर्तन के बाद जिले की नगरपरिषद का जिम्मा कांग्रेस के सक्रीय नेता जैनेन्द्र त्रिवेदी के द्वारा सँभालने के बाद से उक्त विद्यालय के आस-पास स्थित मुख्य मार्ग उदयपुर रोड पर फुटपाथ वे, लाइटिंग और रंगरोगन द्वारा तो चकाचौंध कर दिया गया है। लेकिन सरकार ने देश का भविष्य निर्माण करने वाले उक्त विद्यालय को अपने जर्जर हाल पर छोड़ दिया है। आप देखेगे तो पाएंगे की नौनिहालों के लिए टॉयलेट तक की सुविधा मौके पर मौजूद नहीं है।
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जानकारी अनुसार विद्यालय के जर्जर हालातों के बारें में कई बार समाजसेवी और पत्रकारों द्वारा इस सम्बन्ध सरकार के वरिष्ठ अधिकारियों को भी लिखा गया लेकिन इस विद्यालय को अपना असली नवनिर्माण का हक़ कब मिलेगा इसका ठोस आश्वासन आज तक किसी को नहीं मिला है।
कोरोनाकाल में विपरीत आर्थिक हालातों को चलते इस विद्यालय का नामांकन तेज़ी से बढ़ा है। कई अभिभावक उक्त विद्यालय की जर्जर संरचना को देख कर ही अपने बच्चों का यहाँ दाखिला नहीं करवाते है, इस वजह से प्रतिवर्ष 100 से भी अधिक बच्चे यहाँ अध्ययन करने से भी वंचित रह जाते है। कुछ अभिभावकों का तो यह भी कहना है की यदि उक्त जर्जर विद्यालय के सभी परिसरों का समय रहते नव निर्माण नहीं किया गया तो कई बच्चों की जान भी जा सकती है। वही राज्य सरकार किसी घटना के बाद जागे इससे तो कई अच्छा है कि सरकार इस स्कूल के नव निर्माण का तुरंत आदेश पारित कर संस्था को यथोचित बजट जारी करें।
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राजकीय नूतन सीनियर सेकेंडरी के मुख्य संस्था प्रधान एवं प्रधानाचार्य राजीव जुआ जी की कार्यशैली को देखते हुए कई अभिभावक प्रभावित होकर उक्त जर्जर हो चुके भवन में भी अपने नौनिहालों का दाखिला प्रतिवर्ष करवाते है। हाल ही में उदयपुर संभाग के एक निजी बैंक के रिकवरी मैनेजर, एक पत्रकार एवं एक वरिष्ठ अधिवक्ता ने भी उक्त विद्यालय में अपने बच्चो का दाखिला करवाया है। इन जागरूक अभिभावकों का कहना है की राज्य में कांग्रेस की सरकार के सत्ता में आने के बाद से राजस्थान के यशस्वी मुख्यमंत्री श्री अशोक गहलोत जी अवश्य ही उक्त विद्यालय के नव निर्माण में बहुत जल्द कोई सकारात्मक कदम उठाएंगे। वैसे आपको बता दे कि राजीव जी स्वयं एक संस्था प्रधान होने के उपरांत भी अपने निजी स्तर पर भामाशाओं से संपर्क कर बजट एकत्रित करने के साथ ही कई बार वे अपने तथा अपने सहकर्मी स्टाफ के निजी व्यय से भी विद्यालय का रखरखाव करवाते रहते है।
अभी हाल ही में कोरोना महामारी को देखते हुए सरकारी विद्यालयों में पढ़ने वाले बच्चों के ऑनलाइन अध्ययन के लिए सरकार ने वाट्सअप के मार्फ़त से बच्चों को विषय विशेष के ज्ञान हेतु क्विज में प्रश्न उत्तर पूछे जा रहे थे, लेकिन वह भी कुछ शिक्षक संघो के दबाव के चलते बेवजह ही रोक दिया गया।
यही नहीं भारतीय संविधान के अनुसार कक्षा 1 से 8 तक का अध्ययन क़ानूनी अनिवार्य एवं निःशुल्क शिक्षा के अधिकार के अंतर्गत सम्मिलित है लेकिन सरकार ने सिर्फ निजी स्कूलों को लाभ पहुंचाने के लिए उनके दबाव में सरकारी स्कूलों में भर्ती यानी की नए प्रवेश के लिए टीसी की अनिवार्यता को बिना सोचे समझे लागु कर दिया। वही दूसरी और निजी विद्यालय वाले बेरोकटोक बिना किसी टीसी के धड़ल्ले से अपने विद्यालय में नए प्रवेश दे रहे है। देखा जाएं तो सरकार खुद नहीं चाहती की सरकारी स्कूलों का स्तर सुधरे, इसका कारण खोखला हो चूका लोकतंत्र हो या उच्च पदों पर आसीन अनपढ़ सत्ताधारी हो या फिर मलाई चाटने की फ़िराक और अवसर की तलाश में बैठा कोई वरिष्ठ नौकरशाह हो। यह सब भारत की बर्बादी की पटकथा के मोहरों से ज्यादा कुछ नहीं है।
जनसँख्या नियंत्रण की दुहाई देने वाली सरकार यह भूल चुकी है कि जनसंख्या यदि वाकई में कोई विकराल समस्या होती तो विश्व की सर्वाधिक जनसंख्या वाला देश चाईना (चीन) आज विश्व में सबसे आगे नहीं होता और ना ही सबसे कम जनसंख्या वाले नेपाल, भूटान और बर्मा जैसे देश सबसे पीछे होते। असल में समस्या कही और है और समाधान कही और ढूंढा जा रहा है।
खैर यहाँ चर्चा का विषय थोड़ा लम्बा है, लेकिन हम हकीकत से मुँह नहीं मौड़ सकते है। विद्यालय के वर्तमान जर्जर हालातों को बताती नीचे दी गई कुछ खास तस्वीरें जिसकी जानकारी वर्तमान में प्रशासनिक अधिकारियों से लेकर सरकार तक को हो चुकी है जो शायद अब भी किसी दुर्घटना के इंतज़ार में मौन बैठे है।
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अब आप इन तस्वीरों को देख कर खुद ही बताइये की क्या यह विद्यालय जर्जर नहीं है? क्या इस विद्यालय में अचानक कोई बड़ा जानलेवा हादसा नहीं घट सकता है? क्या भविष्य में होने वाला कोई बड़ा हादसा क्या सरकार या सरकार के किसी प्रतिनिधि अधिकारी को बोल कर होगा? क्या सरकार अनहोनी घटना से पहले इसकी सुध नहीं ले रही है तो क्या वह घटना के बाद इसकी सुध लेगी? जनता और अभिभावकों के मन में ऐसे कई सवालात है जिनका जवाब सरकार को देना ही होगा।
यही नहीं यदि आप कभी गलती से भी इस जिले के शिक्षा विभाग के कार्यालय में पहुँच जाएंगे तो आप को लगेगा की सरकार ने भी गज़ब के मुफतखोर कई पदों पर बैठा रखे है जो कार्यालय में फिल्ड में जाने के नाम पर 11 बजे तक भी नहीं पहुंचते है। अगर आप कार्यालय के वरिष्ठ पदाधिकारियों की हरकतों पर गौर करें तो आप पाएंगे की कई सेवानिवृत हो चुके वयोवृद्ध भी भ्रष्टाचार के चलते इन सरकारी नुमाइंदों के बेबस शिकार हो चुके है। आप इस ऑडिओ को सुनेंगे तो आपको काफी कुछ समझ में आ जाएगा की कैसे एक सरकारी नौकरशाह रिश्वत के लिए किसी बेबस और मजबूर व्यक्ति को परेशान कर रिश्वत के रूपये हासिल करता है।