चायवाले तो बहुत हैं, कोई चायवाली क्यों नहीं?
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चायवाले तो बहुत हैं, कोई चायवाली क्यों नहीं?

इंतजार करने वालों को उतना ही मिलता है जितना प्रयास करने वालों से छूट जाता है
   सोशल मीडिया पर इन दिनों बिहार की एक 'चायवाली' के खूब चर्चे हो रहे हैं। अर्थशास्त्र में ग्रैजुएट प्रियंका गुप्ता को दो साल तक तलाश के बाद नौकरी नहीं मिली तो उन्होंने पटना में चाय बेचना शुरू कर दी है। सोशल मीडिया पर प्रियंका की तस्वीरें खूब वायरल होने के बाद उनकी दुकान पर ग्राहकों की संख्या भी बढ़ गई है। 
  पटना वीमेंस कॉलेज के पास स्टॉल लगाने वाली प्रियंका ने न्यूज एजेंसी एएनआई से बातचीत में कहा, ''मैंने 2019 में स्नातक किया, लेकिन पिछले दो साल में नौकरी नहीं पा सकी। मैंने प्रफुल्ल बिलोर से प्रेरणा ली। चायवाले तो बहुत हैं, कोई चायवाली क्यों नहीं हो सकती।'' 
    गौरतलब है कि प्रफुल्ल ने एमबीए की पढ़ाई बीच में छोड़कर चाय बेचना शुरू कर दिया और अब उनका 4 करोड़
रुपए का टर्नओवर है। एएनआई के ट्वीट पर प्रफुल्ल ने प्रियंका से संपर्क साधने को मदद मांगी।
ईश्वर उन्ही की मदद करता है जो स्वयं की मदद करता है
   काफी प्रेरणास्पद कहानी है और ऐसे प्रत्येक लोगों को उनके साहसिक कदम उठाने के लिए प्रशंसा करनी चाहिए और प्रोत्साहन देना चाहिए। वर्तमान में हम सभी सबसे बेहतरीन सदी में रह रहे है जहां अवसरों की भरमार है, बेरोजगार वही है जो घर बैठकर किसी चमत्कार की उम्मीद लगाए बैठा है और जो सिर्फ नौकरी (वो भी सरकारी) को ही रोजगार समझता है, अन्यथा जो जो घर से बाहर निकलकर कुछ पाने के लिए प्रयास करता है सफलता अवश्य मिलती है। वो कहते हैं न ईश्वर उन्ही की मदद करता है जो स्वयं की मदद करता है।
   वैसे देखा जाए तो बेरोजगारी के इस आलम में हमें छोटे-छोटे स्वरोजगारियों के बारे में जानने और उन्हें समझने में बहुत रुचि रखनी चाहिए। जैसे पानी पताशे, सब्जी वाले, कुल्फी वाले, स्वीगी वाले आदि आपके जितने संपर्क में आते है सभी से कुछ न कुछ जानकारी लेने का प्रयास करते रहना चाहिए। आप देखेंगे की कि ओला उबर या स्विगी डिलेवरी की बाइक लेकर चलने वाला एक लड़का भी सामान्य हालत में प्रतिदिन लगभग 500 रुपया औसतन कमा लेता है।
    हम में से प्रत्येक लोगों ने काम को छोटे और बड़े में विभाजित कर रखा है, ये काम मेरे लायक है, तो वो मेरे लायक नहीं है। मैने MA किया है, इतना पढ़ा लिखा हूं करूंगा तो नौकरी ही और वो भी बड़ी। आप ऐसे कई लोगो को जानते भी होंगे जो प्रारंभ में 5 हजार रूपये से भी नीचे की नौकरी करते थे लेकिन समयानुसार अपने आप को तराशते रहे और आज लाखों में कमाते है। घर बैठकर किसी बड़े और अच्छे के इंतजार करने वालों से काफी बेहतर स्थिति में होते है वो लोग छोटे ही सही लेकिन शुरुआत कर देते है। 
    एक चीज हमेशा याद रखना चाहिए कि संघर्ष जितना बड़ा होता है, रिवार्ड भी उतना ही बड़ा होता है। इन्ही में कुछ लोग संघर्ष करते हुए काफी बड़े बनते हैं। जीवन में बड़ी उपलब्धियां दो ही अवस्थाओं में मिलती है एक अभाव में मतलब जिसके पास कुछ नहीं होता लेकिन कुछ चाहते है। दूसरा प्रभाव में जिसका मतलब है जीवन में वो सब कुछ है जो एक अच्छे जीवन को चाहिए लेकिन उसे और बेहतर करना चाहते है। 

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