सावन शिवरात्रि का क्या है महत्व?
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सावन शिवरात्रि का क्या है महत्व?

  सावन शिवरात्रि पर भगवान शिव का जलाभिषेक करने के साथ ही विधिवत पूजा का विधान है। शास्त्रों के अनुसार सावन शिवरात्रि के दिन हर किसी को शिव पूजन करना चाहिए। मान्यता है कि ऐसा करने से जातक को भगवान शंकर की कृपा से सुख-समृद्धि के साथ सुखद वैवाहिक जीवन का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
सावन की शिवरात्रि का महत्व
  सावन शिवरात्रि के दिन शिव की पूजा करने का विशेष महत्व है। ऐसा माना जाता है कि भगवान विष्णु सावन के महीने में योग निद्रा में जाते हैं, तो सृष्टि का संचालन करने के लिए भगवान शिव उत्तरदायित्व संभाल लेते हैं। इसीलिए सावन मे शिव की पूजा महत्वपूर्ण मानी जाती है। इस दिन भगवान शिव का जलाभिषेक करने से जीवन में सौभाग्य समृद्धि प्राप्त होती है। व्यक्ति की सभी मुश्किलें समाप्त हो जाती है। इस दिन व्रत रखने से, शिवलिंग पर जल चढ़ाने से और शिव की पूजा अर्चना विधि विधान के साथ करने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती है। भगवान शिव स्वास्थ्य का, सौभाग्य का, सुख शांति का आशीर्वाद देते हैं। कहा जाता है कि इस दिन व्रत रखने से सभी पापों से मुक्ति मिल जाती है और वैवाहिक जीवन की भी सभी समस्याएं दूर हो जाती है। कुंवारी कन्याओं को शिवलिंग पर बेलपत्र चढ़ाने से मनवांचित फल की प्राप्ति होती है।
वास्तु शास्त्री डॉ. सुमित्रा अग्रवाल
कब-कब करें जलाभिषेक
1. प्रदोष व्रत शिवरात्रि- १५ जुलाई, २०२३
2. प्रदोष व्रत रविवार – ३० जुलाई, २०२३
3. प्रदोष व्रत रविवार – १३ अगस्त, २०२३
4. शिवरात्रि सोमवार – १४ अगस्त, २०२३
5. प्रदोष व्रत सोमवार – २८ अगस्त, २०२३
सावन शिवरात्रि की व्रत कथा
  पुराने समय में चित्रभानु नाम का एक शिकारी था। चित्रभानु साहूकार का कर्जदार था। वह कर्ज में पूरी तरह डूबा हुआ था। परंतु समय पर कर्ज न चुका पाने के कारण साहूकार ने उसे शिव मठ में कैदी बना लिया। जिस दिन उसे बन्दी बनाया उस दिन शिवरात्रि थी। शिकारी ने मठ में कैद होने के कारण शिवरात्रि व्रत कथा सुनी। जब शाम हुई तो साहूकार ने उससे कहा की उसनें उसनें ऋण चुकाने के लिए कुछ और समय कि मोहलत दे दी है। वह भूखा था, तो वह वहां से निकल कर सबसे पहले शिकार ढूंढने गया। शिकार ढूंढते उसे रात हो गई। वह रात बिताने के लिए एक बेलपत्र पेड़ के उपर चढ़ गया। उस पेड़ के नीचे एक शिवलिंग पत्तों से ढका हुआ था, जिसके बारे में शिकारी को मालूम नहीं था। शिकारी भूखा प्यासा था और पेड़ पर चढ़ते हुए कुछ टहनियां टूट कर उस शिवलिंग पर गिर गई, जिससे शिवलिंग पर बेलपत्र भी चढ़ गए। रात के समय एक गर्भवती हिरणी तालाब के पास पानी पीने आई। शिकारी उसका शिकार करने ही वाला था कि हिरनी बोली मैं मां बनने वाली हूं, मैं वादा करती हूं मैं जल्द से जल्द बच्चे को जन्म देकर तुम्हारे समक्ष आ जाऊंगी। तुम फिर मुझे मार लेना। शिकारी ने हिरनी को जाने दिया। इस दौरान शिवलिंग पर फिर से बेलपत्र गिर गए और इस तरह से शिकारी से अनजाने में प्रथम प्रहर की पूजा संपन्न हो गई। इसके पश्चात एक अन्य हिरणी वहां से निकली। जैसे ही शिकारी ने शिकार करना चाहा तो हिरनी बोली कि मैं अभी कुछ समय पहले ही में ऋतु से छूटी हूं। कामासुर विरहिणी हूं। मैं अपने प्रिय की तलाश में हूं। अपने पति से मिलकर मैं तुम्हारे पास वापस आ जाऊंगी, तो शिकारी ने उसे भी जाने दिया। उस समय रात का आखिरी पहर था, तब भी कुछ बेलपत्र शिवलिंग पर जा गिरे और अनजाने में शिकारी ने अंतिम पहर की पूजा भी कर ली। इसके बाद एक हिरनी वहां पर अपने बच्चों के साथ आई। जब शिकारी ने शिकार करना चाहा, तो हिरनी के निवेदन करने पर शिकारी ने उसे भी जाने दिया। कुछ समय बाद शिकारी के सामने एक हिरण आया। शिकारी ने उसका शिकार करने का ठान लिया, परंतु फिर हिरण ने शिकारी से आग्रह किया कि उसे कुछ समय का जीवन दान चाहिए। शिकारी ने हिरण को पूरी रात की घटना सुना दी, फिर हिरण ने आग्रह किया कि जिस तरह से मेरी तीनों पत्नियां प्रतिज्ञाबद्ध होकर गई है, मेरी मृत्यु हो जाने पर वह अपनी प्रतिज्ञा और धर्म का पालन नहीं कर पाएगी, इसलिए मुझे जाने दीजिए। मैं स्वयं ही अपने परिवार के साथ आपके सामने उपस्थित होता हूं और शिकारी ने उसे जाने दिया। इस तरह से सुबह हो गई। भूखे प्यासे रहने के कारण उपवास, रात भर जागने और शिवलिंग पर बेलपत्र चढ़ाने से अनजाने में ही सही, परंतु शिकारी से शिवरात्रि की पूजा पूर्ण हो गई और उस पूजा का फल उसे तत्काल ही मिल गया। थोड़ी देर में हिरण अपने परिवार के साथ उसके सामने आया, तो शिकारी को जंगली पशुओं की ऐसी सत्यता और सात्विकता देखकर बहुत ग्लानि हुई और उसने सम्पूर्ण परिवार को छोड़ दिया। अनजाने में ही सही उस शिकारी ने भगवान शिव की विधिवत पूजा एवं व्रत किया। जिससे शिव भगवान बहुत प्रसन्न हुये और उसे दर्शन दिये। जिसके पश्चात उसे मोक्ष की प्राप्ति हुई। जब मृत्यु के समय उसे यमदूत लेने आए लेकिन शिव गणों ने उन्हें वापस लौटा दिया और चित्रभानु शिवलोक चले गए। इसके पश्चात शिव जी की कृपा से चित्रभानु श्रावण मास की शिवरात्रि की पूजा की महिमा को याद रखा और अपने पिछले जन्म में हुये कृत्यों का याद रखते हुये इस दिन के महत्व को जन-जन तक पहुंचाया।
क्या है पौराणिक तथ्य?
पहला तथ्य
  ऐसा माना जाता है कि जब अमृत की प्राप्ति के लिए देवताओं और दानवों ने मिलकर समुद्र मंथन किया, तब सावन का महीना था। समुद्र मंथन में सबसे पहले विष प्रकट हुआ था। विष निकलते ही धरती पर भूचाल आ गया। वातावरण प्रदूषित हो गया, पशु पक्षी मरने लगे, हर तरफ हाहाकार मच गई थी। तब भगवान शिव ने उस विष को अपने कंठ में ग्रहण कर लिया था, परंतु इससे उनके शरीर में बहुत ज्यादा गर्मी पैदा हो गई। उनका शरीर लाल पडने लगा। यह देखकर सभी देवताओं ने उन पर जल की वर्षा की अर्थात शिव को शांत करने के लिए उन पर जल चढ़ाया और शिव भगवान बहुत ज्यादा प्रसन्न हुए। तब से यह मान्यता है कि जल चढ़ाने से भगवान शिव प्रसन्न होते हैं।
दूसरा तथ्य
  ऐसा माना जाता है कि भगवान शिव सावन के महीने में पृथ्वी पर अवतरित हुए थे, इसीलिए भगवान शिव को जलाभिषेक करके प्रसन्न करने का सावन एक उत्तम महीना कहा गया है।
तीसरा तथ्य
  एक अन्य तथ्य के अनुसार भगवान शिव स्वयं ही जल है, इसीलिए जल से भगवान शिव का अभिषेक करना बहुत ही अच्छा और फलदायी माना गया है।

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