1. 2002 में हुई थी ‘सुपर 30’ की शुरुआत
आनंद गणित में बेहद तेज थे, घर की हालत नाजुक थी इसलिए उन्होंने ‘रामानुजम स्कूल ऑफ मैथेमेटिक्स’ खोला. इस स्कूल में हर तरह की प्रवेश परीक्षा की तैयारी करने वाले छात्रों को कोचिंग कराई जाने लगी. लेकिन उन्हें धक्का तब लगा जब कई बच्चे 500 रूपये की फीस चुका ना पाने के कारण कोचिंग छोड़कर जाने लगे. तब आनंद ने कुछ पैसै जोड़कर एक कमरा लिया और वहीं पर ‘सुपर 30’की नींव रखी.
2. जरूरतमंदोंं को देते हैंं नि:शुल्क आईआईटी की कोचिंग
2002 मेंं जब आनंद ने इसकी शुरुआत की थी तो उन्हें भी इस बात का अंदाजा नहीं था कि उनके 30 में से 18 बच्चे आईआईटी प्रवेश परीक्षा में अव्वल आएंगे. उसके बाद 2004 में 30 में से 22 बच्चों और 2005 में 26 बच्चों को सफलता मिली. उनकी इस सफलता का डंका पूरे देश मेंं बजा और लोगों ने उनके जज्बे को खूब सराहा.
3. गरीब छात्रों को ही पढ़ाते हैं आनंद
आनंद ने हाल ही में घोषणा की है कि वह जल्द ही 10वीं कक्षा के छात्रों को भी नि:शुल्क शिक्षा देंगे ताकि वह अपना भविष्य संवार सकेंं. उन्होंने कहा, ‘वह गरीब बच्चों को इसलिए शिक्षा देते हैंं क्योंकि वह गरीब हैंं.’ उनके पास इतने पैसे नहीं है कि वो शहरों में जाकर लाखों की फीस दे सकें. वह उनकी मेहनत और लगन को सहारा बनाते हैं और तभी ये ‘सुपर 30’ इस मुकाम पर पहुंचा है.
2002 मेंं जब आनंद ने इसकी शुरुआत की थी तो उन्हें भी इस बात का अंदाजा नहीं था कि उनके 30 में से 18 बच्चे आईआईटी प्रवेश परीक्षा में अव्वल आएंगे. उसके बाद 2004 में 30 में से 22 बच्चों और 2005 में 26 बच्चों को सफलता मिली. उनकी इस सफलता का डंका पूरे देश मेंं बजा और लोगों ने उनके जज्बे को खूब सराहा.
3. गरीब छात्रों को ही पढ़ाते हैं आनंद
आनंद ने हाल ही में घोषणा की है कि वह जल्द ही 10वीं कक्षा के छात्रों को भी नि:शुल्क शिक्षा देंगे ताकि वह अपना भविष्य संवार सकेंं. उन्होंने कहा, ‘वह गरीब बच्चों को इसलिए शिक्षा देते हैंं क्योंकि वह गरीब हैंं.’ उनके पास इतने पैसे नहीं है कि वो शहरों में जाकर लाखों की फीस दे सकें. वह उनकी मेहनत और लगन को सहारा बनाते हैं और तभी ये ‘सुपर 30’ इस मुकाम पर पहुंचा है.
‘सुपर 30’ की अपार सफलता के बाद कई लोगों ने उन्हें अपना सहयोग देने की बात कही लेकिन आनंद ने कहा कि, ‘वह अगर ऐसा करेंगे तो शायद उनकी शिक्षा का स्तर गिर जाएगा वह शिक्षा को व्यवसाय नहीं बनाना चाहते इसलिए वह जैसा काम कर रहे हैं वैसा ही करते रहेंगे.’
5. विदेशी भी मान चुके हैं ‘सुपर 30’ का लोहा
डिस्कवरी चैनल ने ‘सुपर 30′ पर एक घंटे की फिल्म बनाई थी, जबकि ‘टाइम्स’ पत्रिका ने ‘सुपर 30′ को एशिया का सबसे बेहतर स्कूल कहा है. आनंद को देश और विदेश में कई पुरस्कारों से नवाजा जा चुका है. कई विदेशी विद्वान उनका इंस्टीट्यूट देखने आते हैं और आनंद कुमार की सफलता को समझने की कोशिश करते हैं.
6. खुद का खोलना चाहते हैं एक विद्यालय
आनंद कहते हैं उनकी मेहनत ने कई गरीब बच्चों का सपना पूरा किया है अब वह अपनी इस सफलता को और बढ़ाना चाहते हैं. अब उनका सपना एक विद्यालय खोलने का है. उनका कहना है कि ‘गरीबी के कारण कई बच्चे पढ़ाई छोड़ देते हैं और आजीविका कमाने में लग जाते हैं. इसलिए वह ऐसा स्कूल खोलेंगे जहां हर विषय की पढ़ाई होगी.’
आनंद कुमार ने जिस तरह से अपनी किस्मत से लड़कर दुसरों का भविष्य सुधारा है उससे हमें प्रेरणा लेनी चाहिए. खुद के लिए तो हर कोई जीता है लेकिन आनंद दूसरों के सपनों के लिए जी रहे हैं।
