
वहीं उनके परिवार ने भी इससे किनारा रखा। अपना दल का दावा है कि उन्होंने पूर्व में ही अनुप्रिया पटेल को पार्टी से निकाल दिया था फिर उन्हें मंत्रिमंडल में शामिल क्यों किया गया। सत्ता की इस लड़ाई में अब पटेल परिवार खुलकर एक दूसरे के विरोध में तो उतर आया ही है पार्टी की टूट का खतरा भी मंडराने लगा है।
पार्टी की मिर्जापुर से सांसद और अब मोदी सरकार में मंत्री अनुप्रिया पटेल और उनकी मां कृष्णा पटेल के बीच यह झगड़ा डेढ़ साल से चल रहा है। दोनों की इस लड़ाई को जानने के लिए थोड़ा फ्लैशबैक में जाना होगा।
2014 के लोकसभा चुनावों में पूर्वी उत्तर प्रदेश में मजबूत दखल रखने वाले पटेलों को अपने पक्ष में करने के लिए भाजपा ने अपना दल से गठबंधन कर लिया था। अपना दल की स्थापना बसपा के पूर्व नेता डा. सोनेलाल पटेल ने की थी। लेकिन साल 2009 में एक सड़क हादसे में मौत हो गई जिसके बाद उनकी पत्नी कृष्णा पटेल को अध्यक्ष बनाया गया।
पिता की मौत के बाद दिल्ली यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएशन करने वाली उनकी बेटी अनुप्रिया भी मां को सहारा देने के लिए वापस लौटकर राजनीति में जुट गई। साल 2012 के विधानसभा चुनावों में वह बनारस की रोहनिया सीट से पार्टी की इकलौती विधायक चुनी गईं।
2014 के लोकसभा चुनावों में भाजपा से गठबंधन में उन्हें दो सीटें मिलीं। जिसमें से मिर्जापुर से वह खुद और प्रतापगढ़ से हरबंस सिंह सांसद चुने गए। उनकी खाली हुई रोहनिया सीट पर पार्टी ने उनकी मां कृष्णा पटेल को उम्मीदवार बनाया लेकिन अत्प्रत्याशित रूप से उन्हें हार का मुंह देखना पड़ा।
इसी हार ने पार्टी और परिवार में कलह के बीज बो दिए। कृष्णा और उनके समर्थकों ने आरोप लगाया कि भाजपा कार्यकर्ताओं और नेताओं का अपेक्षित सहयोग न मिलने के कारण पार्टी को अपनी ही सीट पर हार का मुंह देखना पड़ा। आरोप अनुप्रिया पर भी लगे कि उन्होंने चुनावों को गंभीरता से नहीं लिया और प्रचार प्रसार में भी सहयोग नहीं किया।
इसके बाद से ही भाजपा और अपना दल के बीच खाई बढ़ती गई, हालांकि पार्टी की लाइन से इतर अनुप्रिया ने भाजपा नेताओं से दोस्ती जारी रखी। इसी बीच एक और उप चुनाव में प्रतापगढ़ की विश्वनाथगंज सीट से डा. आरके वर्मा अपना दल के टिकट पर विधायक चुने गए।
धीरे धीरे पार्टी दो फाड़ होने लगी और दूसरे सांसद जहां कृष्णा पटेल के साथ खड़े हो गए तो इकलौते विधायक आर के वर्मा अनुप्रिया पटेल के। असल में विवाद की वजह एक और भी थी भाजपा अपना दल का विलय पार्टी में कराना चाहती थी जिसका कृष्णा पटेल और सांसद हरबंस सिंह विरोध कर रहे थे।
कुछ दिन पूर्व ही इस मुद्दे पर अपना दल ने अनुप्रिया पटेल को पार्टी से निकालने का ऐलान भी कर दिया था, इसके विरोध में अनुप्रिया गुट ने उन्हें नया अध्यक्ष चुनते हुए खुद को ही असली अपना दल बताते हुए भाजपा से गठबंधन जारी रखने की घोषणा कर दी। इसके बाद से ही दोनों पक्षों में खींचतान लगातार जारी थी।
इसी खींचतान में अपना दल ने प्रधानमंत्री मोदी को भी अनुप्रिया पटेल को मंत्री न बनाने की चेतावनी दी थी, कृष्णा गुट के नेताओं को अंदेशा था कि अगर अनुप्रिया केंद्र में मंत्री बनती हैं तो उनका पार्टी और पटेल वोटरों में प्रभाव बढ़ेगा और एकमुश्त समर्थक उनके पक्ष में आ जाएंगे।
पार्टी में गुटबाजी की एक वजह ये भी थी कि अनुप्रिया के अलग होने के बाद उनकी बड़ी बहन पल्लवी पटेल ने मां का हाथ थाम लिया। जिसके बाद से पार्टी पूरी तरह दो खेमों में बंट गई। मां के साथ मिलकर पल्लवी पार्टी में अपना प्रभाव बढ़ाना चाहती हैं तो अनुप्रिया पटेल से उनकी एक नहीं बन रही।
इसी गुटबाजी के बीच पार्टी संस्थापक सोनेलाल पटेल के जन्मदिन पर 2 जुलाई को बनारस में रैली कर अनुप्रिया ने भाजपा अध्यक्ष अमित शाह को बुलाया तो कृष्णा पटेल ने भी इसी दिन इलाहाबाद में रैली कर अपनी ताकत का एहसास कराया।
वहीं मोदी ने अपना दल की चेतावनी को नजरअंदाज करते हुए अनुप्रिया को मंत्रिमंडल में शामिल कर लिया। जिसके बाद कृष्णा पटेल गुट ने भाजपा से गठबंधन तोड़ने की चेतावनी दे डाली है। हालांकि शपथ लेने के बाद अनुप्रिया ने इस लड़ाई पर पर्दा डालने का प्रयास करते हुए कहा कि वह आज जो कुछ भी हैं अपनी मां और पिता की वजह से हैं उनका पूरा परिवार उनके साथ है।