सेना पर पत्थर चलाते उपद्रवियों को तीतर-बीतर करने और उन्हें घायल करने में पेलेट गन सबसे आगे हैं। इस पेलेट गन से आदमी मरता तो नहीं लेकिन उसके भयानक दर्द व प्रभाव वह कभी पत्थर फेंकने लायक भी नहीं बचता।
कश्मीर घाटी में हिजबुल मुजाहिदीन के आतंकी बुरहान वानी की मौत के बाद जारी बवाल में उपद्रवियों व सुरक्षाबलों से 400 से ज्यादा बार झड़प हो चुकी है। मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो अब तक करीब 50 उग्रवादी व आतंकी समर्थक मारे गए हैं। 1600 से अधिक घायल हैं।
उपद्रवियों को प्रदर्शनकारियों को तितर-बितर करने के लिए ऐसे हथियारों का इस्तेमाल करते हैं जो जानलेवा नहीं हैं। इनमें प्रमुख है पैलेट गन यानी छर्रे वाली बंदूक।
इस बन्दूक से कोई मरता नहीं पर उसके घावों के निशान कभी भरते भी नहीं। हालांकि, पेलेट गन से आँखों को क्षति पहुँचने का भारी खतरा रहता है। उपद्रवी लोगों को प्रभावहीन बनाने में पेलेट गन कारगर है पर यह एक दर्दनाक एवं अमानवीय प्रक्रिया है। लेकिन जिस तरह से एक आतंकी के समर्थन में लोग एकजुटता दिखा रहे हैं, सुरक्षाबलों पर हमला कर रहे हैं, पत्थर फेंक रहे हैं, उसे देखते हुए सेना के पास इसके अलावा कोई रास्ता भी नहीं है।
