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आसमानी आफत से निपटने के लिए डेढ़ करोड़ की गन ले आए ग्रामीण

    सेब उत्पादन में अग्रणी देशों में शुमार न्यूजीलैंड में ओलों से बचाव के लिए एंटी हेल गन का प्रयोग किया जाता है। हिमाचल में भी ओलों से बचाव के लिए एंटी हेल गन का कंसेप्ट शुरू हुआ। पूर्व भाजपा सरकार के समय ऊपरी शिमला में एंटी हेल गन लगाने का प्रयास हुआ। बाद में वर्ष 2012 में कांग्रेस सरकार सत्ता में आई और उसने इस कंसेप्ट को हिमाचल के लिए मुफीद नहीं मानते हुए खारिज कर दिया।
     बागवानफिर से भगवान भरोसे हो गए। ओलों से बचाव का कोई कारगर उपाय नहीं सूझ रहा था। सरकारी स्तर भी कोई सहायता नहीं मिल रही थी। कोटखाई तहसील की बाघी और रतनाड़ी पंचायतों के बागवानों ने खुद पहल की और न्यूजीलैंड से डेढ़ करोड़ रुपए की लागत वाली एंटी हेल गन ले आए। बागवानों ने इसे अपने इलाके में स्थापित कर लिया है।

    एंटी हेल गन ओलों के गिरने की संभावना को खत्म करती है। मौसम का मिजाज देखते हुए जब ऐसा प्रतीत हो कि ओले गिर सकते हैं, तो गन चलाई जाती है। यह धमाके के साथ बादलों की इकट्ठा होने की प्रवृति को रोकती है। यदि बादल बरसने को तैयार हो रहा हो तो धमाके के बाद छंट जाता है।
    गन खरीदने से पहले दोनों पंचायतों के लोगों ने सोसायटी गठित की। पैसे जमा किए और गन खरीद ली। हालांकि सरकारी स्तर पर ये माना गया था कि हिमाचल में एंटी हेल गन कामयाब नहीं होगी, लेकिन बाघी और रतनाड़ी पंचायतों ने पहल कर ली है। इसे लगाने में कुल खर्च पौने दो करोड़ रुपए हुआ है। बागवानों ने मिलकर ये खर्च उठाया है। रतनाड़ी पंचायत ने एंटी हेल गन को चलाने के लिए दो लोगों को प्रशिक्षण दिया है।
रतनाड़ी पंचायत के सुरेंद्र चौहान, जिया, लाल, सुधीर कुमार, रोशन लाल, महेंद्र सिंह, मस्तराम शर्मा, संतलाल, प्रेम ठाकुर आदि के मुताबिक अब यह इलाका ओलों से सुरक्षित हो सकेगा। एंटी हेलगन बनाने वाले न्यूजीलैंड के माइक ईगर ने ही यहां आकर इसे स्थापित किया और बागवानों को इसे चलाने की ट्रेनिंग भी दी है। यहां बता दें कि बाघी और रतनाड़ी इलाका ओलावृष्टि के लिहाज से संवेदनशील है।
     पांच साल पहले यहां ओलों ने सेब की पूरी पैदावार तबाह कर दी थी। करोड़ों रुपए का नुकसान हुआ था। यहां एंटी हेल नेट भी अधिक कामयाब नहीं हुए। कारण यह रहा कि वर्ष 2013 में बर्फबारी अधिक हुई और नेट पर बर्फ टिकने के कारण वे बर्बाद हो गए। कोटखाई तहसील की रतनाड़ी पंचायत के पूर्व प्रधान ज्ञानसिंह ठाकुर के अनुसार प्रदेश सरकार बागवानों को केवल एंटी हेल नेट पर अनुदान दे रही है। बाघी और रतनाड़ी इलाके में भारी ओलावृष्टि होती है, जिसे केवल नेट के सहारे ही काबू नहीं पाया जा सकता।
    हिमाचल देश की एप्पल बाउल के नाम से जाना जाता है। यहां हर साल चार हजार करोड़ रुपए के सेब का उत्पादन होता है। हिमाचल में विदेशी स्पर किस्मों का सेब पैदा किया जाता है। साथ ही परंपरागत रॉयल किस्म भी उगाई जाती है। प्रदेश में सबसे अधिक सेब शिमला जिला में पैदा किया जाता है। इसके अलावा मंडी, कुल्लू, किन्नौर, चंबा जिला में भी सेब उगाया जाता है।