गंभीर रूप से बीमार सरकारी स्वाथ्य सेवाएं!

Image result for poor indian government health service cartoon     ताजा आंकड़ों के निष्कर्ष को अगर वाक्य में कहना हो, तो वह ये होगा कि भारत में सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाएं न केवल बदहाल हैं, लेकिन बल्कि उनकी हालत लगातार बदतर हो रही है। 2013-14 के सर्वे पर आधारित नेशनल हेल्थ एकाउंट्स (एनएचए) के इन आंकड़ों को केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने जारी किया है। पिछली बार ये सर्वे एक दशक पहले हुआ था। ताजा आंकड़ों से जाहिर हुआ है कि भारत में निजी अस्पतालों में इलाज कराने वाले लोग सरकारी अस्पतालों की तुलना में आठ गुना ज्यादा खर्च करते हैँ। देश में सरकारी अस्पतालों में इलाज जितना खर्च इलाज पर होता है, उसका दो गुना व्यय मरीजों को अस्पताल पहुंचाने पर हो जाता है। 2013-14 में प्राइवेट अस्पतालों में इलाज पर परिवारों ने 64,628 करोड़ रुपए खर्च किए। सरकारी अस्पतालों पर हुआ कुल व्यय 8,193 करोड़ रुपए रहा।
     १८,149 करोड़ रुपए एंबुलेंस जैसी सेवाओं पर खर्च करने पड़े। सरकारी अनुदान सहित निजी अस्पतालों में हुआ कुल निवेश 88,552 करोड़ रुपए रहा, जबकि सरकारी अस्पतालों पर उसके आधे से भी कम यानी 41,797 करोड़ रुपए ही खर्च हुए। भारत में स्वास्थ्य देखभाल पर 4.5 लाख करोड़ रुपए खर्च हुए, जिनमें से 3.06 लाख करोड़ लोगों ने अपनी जेब से किए। यानी स्वास्थ्य पर सरकारी खर्च बेहद कम है। यह हेल्थकेयर पर हुए कुल खर्च का महज करीब 29 फीसदी है, जबकि भारत के सकल घरेलू उत्पाद का यह महज एक प्रतिशत हिस्सा है।
इस स्थिति को भी सुधार माना है, क्योंकि 2004-05 में (जब पिछले सर्वे हुआ था) स्वास्थ्य देखभाल पर सरकारी खर्च का हिस्सा 22 फीसदी ही था। एक और आंकड़ा विशेष रूप से उल्लेखनीय है। निवारक स्वास्थ्य सेवाओं पर खर्च कुल स्वास्थ्य खर्च का सिर्फ 9.6 प्रतिशत हिस्सा है। यानी बाकी सारा खर्च उपचार पर होता है। साफ है, अपने देश में इस कथन की घोर उपेक्षा हो रही है कि इलाज से बेहतर रोकथाम है। कुल सूरत यह उभरती है कि मानव विकास के संभवतः सबसे महत्त्वपूर्ण क्षेत्र की अपनी सरकारों ने घोर उपेक्षा की है। इसलिए इसमें कोई हैरत नहीं कि आज के दौर में भी अपने देश में लाखों बच्चे डायरिया या आम बुखार से मर जाते हैँ। आम इलाज जब लोगों से इतना दूर है, तो तंदरुस्त पीढ़ी के निर्माण का सपना निराधार है। इन्हीं स्थितियों के कारण अब ये धारणा बनने लगी है कि युवा जनसंख्या का पूरा लाभ उठाने से भारत वंचित रह जाएगा।

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