Rail Budget: 92 साल पुराने चलन पर लगेगा विराम, अगले वित्त वर्ष से कोई रेल बजट नहीं

   वित्त मंत्रालय द्वारा रेल बजट को आम बजट में मिलाए जाने के रेल मंत्री सुरेश प्रभु के प्रस्ताव को स्वीकार किए जाने के बाद अगले वित्त वर्ष से अलग से रेल बजट प्रस्तुत करने के 92 साल पुराने चलन पर विराम लगने वाला है.
      रेलवे के अनुसार वित्त मंत्रालय ने विलय के तौर तरीकों पर काम करने के लिए पांच सदस्यीय एक समिति गठित कर दी है जिसमें मंत्रालय और राष्ट्रीय परिवाहक के वरिष्ठ अधिकारी शामिल हैं. समिति से 31 अगस्त तक रिपोर्ट देने को कहा गया है.
     प्रभु ने कहा, ‘मैंने रेल बजट को आम बजट में मिलाने के लिए वित्त मंत्री अरूण जेटली को पत्र लिखा था. यह रेलवे के हित में होगा और राष्ट्र के भी हित में होगा. हम तौर तरीकों पर काम कर रहे हैं.’ रेलवे को सब्सिडी पर 32 हजार करोड़ रूपये के वार्षिक खर्च के साथ ही सातवें वेतन आयोग की सिफारिशों के लागू होने से करीब 40 हजार करोड़ रूपये का अतिरिक्त भार वहन करना पड़ेगा.
    इसके अतिरिक्त, परियोजनाओं के पूरा होने में विलंब का परिणाम लागत में 1.07 लाख करोड़ रूपये की बढ़ोतरी के रूप में निकला और चालू 442 रेल परियोजनाओं पर आगे काम के लिए 1.86 लाख करोड़ रूपये की जरूरत है.
     यदि विलय होता है तो भारतीय रेलवे को वाषिर्क रूप से लाभांश अदा करने से मुक्ति मिल जाएगी जो उसे हर साल सरकार की ओर से व्यापक बजट सहायता के बदले में देना पड़ता है. रेलवे के एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार अलग से रेल बजट के लगभग एक सदी पुराने चलन को खत्म करने का कदम मोदी सरकार के सुधार का एजेंडा है.
      विलय के साथ यात्री किराया बढ़ाने का फैसला करना वित्त मंत्री का काम होगा. प्रभु ने नौ अगस्त को राज्यसभा को भी बताया था कि उन्होंने वित्त मंत्री को लिखा है कि रेलवे और देश की अर्थव्यवस्था के भी दीर्घकालिक हित में रेल बजट का विलय आम बजट में किया जाए.
     अखिल भारतीय रेलकर्मी संघ के महासचिव गोपाल मिश्रा ने कहा कि विलय से रेल मंत्रालय की स्वायत्तता खत्म हो जाएगी. ‘लेकिन हमें देखना होगा कि किस तरह का विलय होगा.’

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