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बेटियों को बचाने के लिए इस शिक्षिका ने लगा दिया अपना पूरा जीवन

     आज के इस दौर में जब अधिकांश शिक्षक स्कूल की चार दीवारी तक ही सीमित है तो ऐसे में कोटद्वार निवासी शिक्षिक मंजू कपरवाण ने ऐसा उदाहरण पेश किया है, जिसकी जितनी तारीफ की जाए वह कम ही है. दरअसल 90 के दशक से ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा की लौ जलकर बालिकाओं को स्कूल पहुंचाने का काम करने वाली शिक्षिका मंजू कपरवाण ने न केवल गरीब परिवारों की बालिकाओं की शिक्षा की नीव मजबूत की है बल्कि उन्हें उनके अधिकारियों के प्रति जागरुक कर समाज में सम्मान से जीने की उन्हें राह भी दिखाई है.
     'बेटी पढ़ाओ बेटी बचाओ' के तहत बालिका शिक्षा और उनके अधिकारों के लिए काम करने वाली मंजू कपरवाण की मेहनत का ही यह फल है कि आज गरीब परिवारों से ताल्लुक रखने वाली सैकड़ों बालिकाएं स्कूल पहुंचकर अपने सपने का साकार करने में लगी है. हालांकि बालिकाओं के लिए अपनी जिंदगी दांव पर लगाने वाली मंजू कपरवाण को स्थानीय और राज्य स्तर पर कई सम्मानों से सम्मानित किया जा चुका है, लेकिन मंजू कपरवाण की यदि मानें तो असली सम्मान उन बालिकाओं को मिला है जो अब अपने अधिकारों को जानने लगी है.
      कोटद्वार के जीजीआईसी कलालघाटी स्कूल में दिनभर बालिकाओं की शिक्षा और उनके अधिकारों के बारे में बातें करने वाली शिक्षिक मंजू कपरवाण स्कूल तक ही सीमित नही रहती बल्कि स्कूल की छुट्टी होने के बाद निकल पड़ती है. फिर उन गांवों में जहां बालिकाएं पारिवारिक अड़चनों के चलते स्कूल नही पहुंच पाती. 'बेटी बचाओ बेटी पढाओ' के नारे के साथ गांव-गांव घूमने वाली शिक्षिका मंजू कपरवाण की मेहनत का ही यह फल है कि वह जिस भी विद्यालय में गई वहां बेटियों ने खुद उनकी उगली पकड़कर विद्यालय की सीढ़ियां चढ़नी शुरू कर दी. आज शिक्षिका मंजू कपरवाण अपने स्कूल और गांवों में दिनभर घिरी रहती है. बेटियों से जिनको वह अक्षर ज्ञान तो देती ही है साथ ही उनको उनके अधिकारों की जानकारी भी देती है.
     बहरहाल, यदि सभी शिक्षक मंजू कपरवाण जैसे शिक्षिका से प्रेरणा ले तो न केवल बालिकाओं की शिक्षा पर फर्क पड़ेगा बल्कि देश की आधी आबादी अपनी योग्यता से देश को आगे बढ़ाने में सार्थक होगी. लिहाजा आज जरूरत है शिक्षा महकमे को ऐसे शिक्षकों को प्रेरणाश्रोत बनाने की ताकि दूसरे शिक्षक भी उनसे कुछ सिख सके और समाज को नई दिशा देने में अपना भी योगदान सुनिश्चित कर सकें.