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टेलिकॉम वार में सरकार किसके साथ है? बीएसएनएल के साथ या रिलायंस जियों के साथ?

Image result for reliance jio bsnl and narendra modi    मुकेश अम्बानी के 45 मिनट के भाषण ने जिसमे वे रिलायंस जियो के launching की योजना, उसके विस्तार, विभिन्न डाटा प्लान्स, फ्री voice कॉल्स आदि के बारे में बोल रहे थे, शेयर बाज़ार में उथल पुथल मचा कर रख दिया. उस दौरान मार्किट के लीडिंग प्लेयर एयरटेल का मार्किट capitalization 12,000 करोड़ कम हो गया. आईडिया का मार्किट वैल्यू 2800 करोड़ घट गया. अनिल अम्बानी के रिलायंस कम्युनिकेशन का मार्किट वैल्यू भी गिर गया. कुल मिलाकर इन तीन टेलिकॉम कम्पनियों को 13,166 करोड़ रूपये का नुकसान उठाना पडा.
    रिलायंस जियो ने भारतीय टेलिकॉम प्लेयर्स की नींद उड़ा दी है. 5 सितम्बर से इसकी व्यवसायिक लांच की घोषणा कर दी गयी है.
     1,50,000 करोड़ के निवेश से शुरू रिलायंस जियो दुनिया की सबसे बड़ी स्टार्ट अप कंपनी है. कंपनी का दावा है कि ट्रायल के दौरान ही इसके सब्सक्राइबर्स की संख्या 2.5 करोड़ पहुच गयी है. गोल्डमन सैक्स का अनुमान है कि अगले दो बर्षो में इसके सब्सक्राइबर्स की संख्या 3.5 करोड़ तक पहुच जायेगी. आज के दौर में रिलायंस जियो का नेटवर्क 18,000 शहरों समेत 2 लाख गावों में फ़ैल चूका है.
    मुकेश अम्बानी का दावा है कि पचास रूपये में एक जीबी डाटा देने का प्लान दुनिया में सबसे सस्ता डाटा प्लान है. इसके अलावा कई आक्रामक ऑफर्स भी कस्टमर्स के लिए है जैसे अगले तीन महीने फ्री डाटा यूज, voice कॉल पर पैसे नहीं.
    ऐसे में देश की अन्य बड़ी टेलिकॉम कंपनियां जैसे एयरटेल, वोडाफोन, मुकेश अम्बानी का रिलायंस कम्युनिकेशन, बीएसएनएल, और आईडिया अपनी मार्किट स्ट्रेटेजी को रिव्यु करने को बाध्य हुई हैं. एयरटेल ने अपने डाटा प्लान्स में अस्सी प्रतिशत की कमी की घोषण की है.
    बीएसएनएल ने महज 49 रूपये में नए लैंडलाइन कनेक्शन देने की घोषणा की है. रविवार को किसी भी नेटवर्क पर भारत में कहीं भी बात करने का फ्रीडम दिया है.
    पिछले दिनों टाइम्स ऑफ़ इंडिया के फ्रंट पेज पर रिलायंस जियो का विज्ञापन आया है, जिसमे प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी की तस्वीर लगी है. ये महज़ एक विज्ञापन नहीं. ये अपने आप में एक राजनीतिक सन्देश है. ऐसा पहली बार हुआ है कि एक प्राइवेट कम्पनी के विज्ञापन में भारत के प्रधान मंत्री की तस्वीर का इस्तेमाल किया गया है, मानो वे अम्बानी की कम्पनी के ब्रांड एम्बेसडर हैं.
    ऐसे में सवाल उठाना स्वाभाविक है: इस टेलिकॉम वार में सरकार किसके साथ है? बीएसएनएल के साथ या रिलायंस जियो के साथ.
Image result for reliance jio bsnl and narendra modi    बीएसएनएल को सरकारी नियंत्रण ने स्लीपिंग टाइगर बनाकर रख दिया है. नवरत्न है, टेलिकॉम मार्किट के लगभग 60 प्रतिशत हिस्से पर कण्ट्रोल है, और जून 2015 तक के आंकड़ों के अनुसार लगभग 9 करोड़ यूजर्स बीएसएनएल का इस्तेमाल कर रहे हैं. दुर्भाग्य से बीएसएनएल का मार्किट शेयर तेजी से कम हो रहा है. मार्किट में टिकने और बेहतर करने के लिए जरुरी आक्रामकता इस संगठन ने नहीं दिखाई है. भारत में अभी टेलकॉम सेक्टर में काफी काम किये जाने की जरुरत है. खासकर लास्ट माईल कनेक्शन के क्षेत्र में बीएसएनएल की भूमिका अभी काफी ज्यादा है. क्योंकि मोबाइल इन्टरनेट की क्रांति के बावजूद भारत में 30 करोड़ जनता ही इन्टरनेट का इस्तेमाल कर रही है.
    जियो के चैलेंज के जवाब में फिलहाल बीएसएनएल सिर्फ सन्डे को अनलिमिटेड कॉल ( देशभरमें किसी भी नेटवर्क पर, पुरे दिन) और 49 रूपये में टेलीफोन कनेक्शन जैसे प्लान लेकर आया है जो कि पूरी तरह नाकाफी है.
    दूसरी तरह मुकेश अम्बानी की कम्पनी ने डाटा को इतना सस्ता कर दिया है, कि हर कोई जियो की चर्चा कर रहा है.
     पर हकीक़त को स्वीकार करना होगा कि बिज़नस परोपकार के सिद्धांत पर नहीं चलता. रिलायंस जियों कोई परोपकार की दूकान नहीं. अग्ग्रेसिव मार्केटिंग और प्राइसिंग स्ट्रेटेजी के जरिये मार्किट को कैप्चर करने की रणनीति है. मार्किट से दूसरी कम्पनियों को भगा कर मार्किट लीडरशिप हासिल करना , बल्कि उससे बढ़कर मोनोपोली स्थापित करने की रणनीति है.
     और हम जानते हैं कि मोनोपोली उपभोक्ताओं के फ्री चॉइस के लिए खतरनाक है. आज माइक्रोसॉफ्ट जैसी मोनोपोलिस्ट कंपनी ने सॉफ्टवेर के क्षेत्र में मोनोपोली स्थापित कर ली है, हर जायज़ और नाजायज़ तरीके से. और आज दुनिया उसके सॉफ्टवेर प्रोडक्ट्स के इस्तेमाल के लिए ऊँची कीमत देने पर विवश है. .
तो ऐसे में कई सवाल उठते हैं:
1. क्या भारत में टेलिकॉम का भविष्य उतना ही सुन्दर है, जितना कि प्रोजेक्ट किया जा रहा है? भारत में अभी 30 करोड़ लोग इन्टरनेट यूजर्स है, ऐसे में डिजिटल इंडिया का सपना पूरा करने के लिए काफी तेज गति से लोगों को इन्टरनेट की शक्ति से जोड़ना होगा. पर इसके लिए महानगरों और सेकंड टियर के शहरों से बाहर निकलकर दूर दराज के इलाकों में इन्टरनेट की सेवा पहुचानी होगी. लास्ट माईल तक पहुचना काफी खर्चीला है. इसमें बीएसएनएल की बड़ी भूमिका है. एक अनुमान के अनुसार, बीएसएनएल को सुदूर इलाकों में एक टेलीफोन लाइन मेन्टेन करने में औसतन 700 रूपये लगते हैं, जब कि उस एक टेलीफोन कनेक्शन से उसे 78 रूपये का revenue मिलता है. ऐसे में प्राइवेट कम्पनियां सुदूर पिछड़े इलाकों से इन्टरनेट सेवा देने से परहेज करती हैं.
2. मोदी अम्बानी की जुगलबंदी/ क्रोनी कैपिटलिज्म इसमें कैसी भूमिका निभा रही है? ये सवाल लगातार उठाये जा रहे हैं कि पिछले दो साल में कुछ ख़ास उद्योगपतियों पर केंद्र सरकार कुछ ज्यादा मेहरबान रही है. कुछ जानकार जियो की कम कीमत और तेल के दाम के बीच भी सम्बन्ध तलाशने में लगे हैं. ये रणनीति टेलिकॉम प्लेयर्स के लिए सही नहीं कही जा सकती. टेलिकॉम मार्किट में मोनोपोली ग्राहकों के लिए असहज करने वाली स्थिति है.
3. बीएसएनएल एक मूक दर्शक क्यों बना हुआ है? बीएसएनएल फाइनेंसियल ऑटोनोमी और ऑपरेशनल ऑटोनोमी दोनों से जूझ रहा है. ये एक नवरत्न कम्पनी है. और देश को सूचना क्रांति के नए दौर में ले जाने में पूरी तरह सक्षम है. बीएसएनएल की इन्टरनेट दरें वर्तमान में सबसे सस्ती हैं. तो ऐसे में केंद्र सरकार की नीति होनी चाहिए कि मार्किट में प्रतिस्पर्धा करने के लिए इसे आवश्यक ऑटोनोमी दे.
4. सरकार किसके साथ है? बीएसएनएल के साथ या जियों के साथ? ये एक बेहद अहम् सवाल है. बीएसएनएल सक्षम है. रिलायंस जियो का स्वागत किया जाए. पर जियो के विज्ञापन पर प्रधान मंत्री की तस्वीर कई सवाल खड़े करती है. डिजिटल इंडिया के सपने को साकार करने के लिए बीएसएनएल बेहद अहम् प्लेटफार्म है.