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जाने भारतीय सैना में “मुस्लिम रेजिमेंट” क्यों नहीं है, ऐसा क्या किया था मुसलमानो ने?

Image result for muslim regiment in indian army 1965कहानी तो बहुत लंबी है लेकिन संक्षिप्त में बया की जा रही है
    जब 1965 के युद्ध मे अमेरीका के दिये हुये अजेय समझे जाने वाले पैटन टेंको के छक्के अब्दुल हमीद ने नही छुडाये थे, वे कहते थे डा० भाभा ने उस समय अणु से कुछ ऐसे बम बनाये थे उन्ही से अन्य सैनिको ने अमेरिकी पैटन टेंको को तोडा था, पाकिस्तान को हुयी उस अपार क्षति से अमेरीका भी विचलित हो गया था तथा भारत के मुस्लिमो मे गुस्सा भडक गया था, उस गुस्से को शांत करने के लिये अब्दुल हमीद का नाम आगे कर दिया गया था।
      सच तो यही है कि पंजाब रेजिमेंट, मद्रास रेजिमेंट, मराठा रेजिमेंट, राजपूत रेजिमेंट, जट रेजिमेंट, सिख रेजिमेंट, असाम रेजिमेंट, नागा रेजिमेंट इत्यादि तो मौजूद हैं मगर मुस्लिम रेजिमेंट नहीं है? क्या भारतीय मुस्लिम देश के प्रति अपनी जान देने का जज्बा नहीं रखते? या वह भरोसे के लायक ही नहीं हैं?
    वजह चाहे जो भी हो मगर इस बात से कई प्रकार के सवाल उत्पन्न होते हैं जो बहुत कुछ सोचने पर विवश कर देते हैं!!!
मुस्लिम रेजिमेंट या मुस्लिम राईफल्स नाम क्यूँ नहीं है????
     ऐसी बात नहीं है की इंडियन आर्मी में मुस्लिम नहीं है। भारतीय मुस्लिम इंडियन आर्मी जरूर है लेकिन ‘मुस्लिम रेजिमेंट’ आज भी नहीं है। ये अलग बात है की सन 1965 तक ‘मुस्लिम रेजिमेंट’ होता था, मगर जब सन 1965 में भारत-पाकिस्तान की पहली जंग हुई थी तो इस रेजिमेंट ने पाकिस्तान के खिलाफ जंग लड़ने से साफ इंकार कर दिया था जबकि इंडियन आर्मी ने मुस्लिम राईफल्स और मुस्लिम रेजिमेंट के ऊपर बहुत ज्यादा यकीन कर के इनको सबसे आगे भेजा गया था। लगभग बीस हजार मुस्लिम सेना ने पाकिस्तान के सामने अपने हथियार डाल दिए थे जिस वजह से उस वक्त भारत को काफी मुश्किलों सामना करना पड़ा था! इस वजह से इनकी पूरी की पूरी रेजिमेंट पर ही बैन लगा दिया गया।
     और पूरे रेजिमेंट को ही खत्म कर दिया गया, क्योंकि भारत की असली जंग तो हमेशा ही पाकिस्तान के साथ होती है, और फिर यदि जंग के अहम मौके पर आकर कोई रेजिमेंट जंग लड़ने से मना कर देगी फिर पाकिस्तान से जंग कैसे जीती जाएगी ?
      हो सकता है आपको हमारी इस बात पर विश्वास ना हुआ हो! यदि आपके घर में कोई बड़े-बुजुर्ग हों जो 1965 के आस-पास सेना में रहें हों या सन 1965 की जंग में भाग लिया हो, तो आप उनसे जाकर पूछ सकते हैं.. यकीन मानिए ये जानकर जनता को बहुत बड़ा धक्का लगा था, कि ऐसे भी हमारी कोई रेजिमेंट कर सकती है क्या? पर वो किसी ने कहा है ना कि दुनिया में नामुकिन जैसी कोई चीज़ नहीं है, वो भी तब यदि मामला ”पाकिस्तान” से जुड़ा हो! क्योंकि भारत की असली जंग तो हमेशा ही पाकिस्तान के साथ होती है, और फिर यदि जंग के अहम मौके पर आकर कोई रेजिमेंट जंग लड़ने से मना कर देगी फिर उसे रखने से क्या फायदा?
       1971 में पाकिस्तान के साथ फिर युद्ध हुआ उस वक्त सेना में एक भी ‘मुस्लिम’ (बताने की जरुरत नहीं है क्यों?) नहीं था उस वक्त भारत ने पाकिस्तान की नब्बे हज़ार सेना से हथियार डलवा कर उनको बंदी बना लिया था और लिखित तौर पर आत्मसमर्पण करवाया था!
     अब आप ही बताइए क्या देश भक्ति ऐसी होती है?? फिर क्यों जब भी किसी मुस्लिम को आतंकवादी कहा जाता है तो सारे मुस्लिम समुदाय को बेचेनी होती है??