कहां गए नेताजी को मिले आभूषण?
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कहां गए नेताजी को मिले आभूषण?


     नेता जी सुभाष चंद्र बोस से जुड़े दस्तावेजों से बहुत कुछ निकल रहा है। पर सवाल यह है कि क्या दस्तावेजों को सार्वजनीक करने से ही मोदी सरकार की जिम्मेदारी खत्म हो जाती है, या दस्तावेजों से उभर रहे नए रहस्यों और आशंकाओं का निदान भी करना होगा। नेता जी की मौत का रहस्य तो जस का तस बना हुआ है, अब जब कि दस्तावेज जगजाहिर हो रहे हैं तो एक दस्तावेज उन आभूषणों से जुड़ा भी जाहिर हुआ है, जो उनकी आखिरी विमान यात्रा के समय उन के साथ था।
      सवाल खड़ा होता है कि करोड़ों रुपए के वे जवाहारात और आभूषण कहाँ गए, जो देश की आजादी के लिए भारत की जनता ने उन्हंे सौंपे थे। नेता जी की अपील पर देश भर में औरतों ने अपने पहने हुए आभूषण तक उतार कर दिए थे। यह बात पहले ही सामने आ चुकी है कि नेताजी जब विमान में सवार हुए थे तो आभूषणो से भरे कई सूटकेस उनके पास थे। जवाहर लाल नेहरू ने विमान के दुर्घटनाग्रस्त होने और उसमें नेता जी के कथित तौर पर स्वर्गवासी होने की बात फैलाई थी। हालांकि देश की जनता ने इस कहानी को कभी नहीं माना, क्योंकि विमान के दुर्घटनाग्रस्त होने तक की पुष्टि नहीं हुई थी। चलिए जवाहर लाल नेहरू का कहा मान भी ले तो वे आभूषण कहाँ हैं, जो 18400 केरेट के बताए जाते हैं।
      प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ओर से नेताजी के सम्बंध में पुराने सभी सरकारी दस्तावेज जगजाहिर करने की घोषणा के बाद से किस्त दर किस्त दस्तावेज जारी हो रहे हैं। उन दस्तावेजों में अब मीडिया की भी उतनी दिलचस्पी नहीं दिखती। इस की एक वजह यह है कि आजादी के बाद से नेताजी की भूमिका को दबाने,भूलाने की कोशिश की गई। जब जब नेताजी को ले कर कोई राजनीतिक माहौल बनता, मीडिया खोज खोज कर खबरे करता है, लेकिन उस के बाद फालो-अप नहीं होता। अभी हाल ही में आभूषणों के सम्बंध में 1958 का एक दस्तावेज सार्वजनिक हुआ है।
     नेताजी पर खोज कर रहे अनुज धर ने इस दस्तावेज के जरिए जवाहर लाल नेहरू को एक बार फिर कटघरे में खड़ा किया है। इस पत्र से खुलासा हुआ है कि अगस्त 1958 में केलिन तेकी नाम का एक जापानी व्यक्ति भारत के जापान दूतावास में आया था, जिस ने सुभाष चन्द्र बोस के उन आभूषणों के सम्बंध में भारत सरकार को मदद करने की पेशकश की थी। लेकिन अभी यह खुलासा नहीं हुआ कि जवाहर लाल नेहरू ने केलिन तेकी की पेशकश पर क्या निर्णय किया था?
      केलिन तेकी की इस पेशकश के सम्बंध में जापान स्थित भारतीय दूतावास से राजदूत जी.बी.झा ने भारत सरकार के अधिकारी आचार्य के माध्यम से प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू को संदेश भेज कर जानकारी दी थी। 28 सितम्बर 1958 के पत्र में झा ने लिखा था कि हाल ही में केलिन तेकी नाम का एक जापानी व्यक्ति भारतीय दूतावास में आया था और उस ने खुलासा किया था कि 18400 कैरेट के ये आभूषण ताजिम नाम के जिस व्यक्ति के कब्जे में हैं, उस ने इन आभूषणों को मित्सुई बैंक में जमा करवा दिया है। इस जापानी सज्जन ने भारतीय राजदूत को बताया था कि बैंक और ताजिम को समझाया जा सकता है कि वह आभूषणों का असली मालिक नहीं है। इसलिए ये आभूषण भारतीय दूतावास में जमा करवा देने चाहिए।
      केलिन तेकी ने यह भी कहा था कि उसे किसी तरह का आर्थिक लाभ नहीं चाहिए, क्योंकि उसने नेता जी सुभाष चंद्र बोस के साथ सम्पर्क अधिकारी के तौर पर काम किया है, इसलिए वह बिना किसी लाभ के भारत की मदद करना चाहता है। भारत सरकार को जीबी झा ने लिखा था कि 18400 कैरेट की बात अविश्वसनीय लगती है। अगर ये सच भी हो तो भी जिन्होंने इन्हें इक्कठा किया था उन्हंे, या दुनिया के आभूषण विक्रेताओं की इन में कोई दिलचस्पी नहीं होगी। पत्र में वह अधिकारी आगे लिखते हैं कि केलिन तेकी का यह दावा भी विश्वसनीय नहीं लगता कि उसने नेता जी सुभाष चंद्र बोस के साथ सम्पर्क अधिकारी के तौर पर काम किया होगा, क्योंकि केलिन तेकी को जापानी के सिवा कोई भाषा नहीं आती।
     झा के इस पत्र पर खुद उन पर आशंका पैदा होती है क्योंकि उन्होंने पंडित जवाहर लाल नेहरू को केलिन तेकी की ओर से दी गई जानकारी भेजने की बजाए अपनी राय भी लिखी है, जो किसी अधिकारी का काम नहीं था। झा ने इस पत्र में लिखा है कि केलिन तेकी ने दूतावास में इस सम्बंध में लिखित नोट छोड़ा है, इसलिए हम प्रधानमंत्री के ध्यान में लाना जरूरी समझते हैं क्योंकि 1951 में प्रधानमंत्री जी ने इस मामले में काफी दिलचस्पी दिखाई थी। उस समय जवाहर लाल नेहरू की ओर से यह माना गया था कि आभूषणों के मामले में जो जांच होगी, उस का प्रचार ज्यादा हो जाएगा, जबकि लाभ उतना नहीं होगा। अब सार्वजनिक हुआ यह पत्र नए सवाल खड़े कर रहा है।

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