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720 साल पहले अनपढ़ शासक अलाउद्दीन खिलजी ने लगाई थी मुद्राओ पर रोक

     कौशंबी।। देश में पीएम मोदी के 1000-500 के नोट बंद करने की चर्चा है अगर इतिहास कारों की माने तो 20 अक्टूबर 1296 (720 साल पहले) दिल्ली की गद्दी पर बैठने वाला अनपढ़ बादशाह अलाउद्दीन खिलजी ने बाजार नियंत्रण और महगाई पर काबू पाकर इतिहास में एक मिसाल कायम की थी | अलाउद्दीन ने पुरानी मुद्राओ को बाजार से हटवाकर नए मुद्राओ को लाया था |अलाउद्दीन साल 1296 से 1316 तक 20 वर्षो तक गद्दी पर था | उससे पहले वो कड़ा-मानिकपुर का सूबेदार था |अलाउद्दीन ने बाजार नियंत्रण के लिए पहले की मुद्राओ को बंद करा दिया और विशेष मुहर वाली मुद्राओ को लाया था उसका मकसद था,सभी अवैध टकसालों पर चढ़ाई करना |ख़िलजी के समय कुल 28 तरह के कर से सालभर में 30 लाख ज्यादा का राजस्व इकठ्ठा किया जाता था |उस समय खाद्यान का दाम बढ़ाना और जमाखोरी गम्भीर अपराध थे ऐसे में आपको जानकर हैरानी होगी कि खिलजी वंश के दूसरे शासक अलाउद्दीन खिलजी की नीतियों की वजह से 112 साल तक महंगाई काबू में थी। इस अनपढ़ राजा के शासनकाल में चीजों के दाम नहीं बढ़े थे। बीएचयू इतिहास विभाग के युवा इतिहासकार डॉ. राजीव श्रीवास्तव ने अलाउद्दीन खिलजी की बाजार व्यवस्था और महंगाई नियत्रंण के तरीकों पर रिसर्च किया है। उन्होंने बताया कि खिलजी महंगाई नियत्रंण के बेजोड़ बादशाह थे। उन्होंने दिल्ली की गद्दी पर 20 साल तक राज किया। उनके राज्य में बेहतर बाजार नीति की बदौलत चीजों की कीमतें स्थिर रही। उनकी मौत के बाद साल 1388 में फिरोजशाह तुगलक दिल्ली की गद्दी पर बैठे थे। इन्होंने अलाउद्दीन खिलजी की नीतियों को जारी रखा। इस तरह कुल 112 साल तक मंहगाई काबू में रही। बाजार में उतार-चढ़ाव नहीं आया।क्या थी अलाउद्दीन खिलजी की नीतियां डॉ. राजीव श्रीवास्तव बताते हैं कि अलाउद्दीन खिलजी की प्रमुख दो नीतियां थी। पहला, कीमतों का निर्धारण बाजार नहीं बादशाह करेगा। दूसरा, बाजार मूल्य बढ़ाने वाले लोगों पर ज्यादा टैक्स लगाना। कई जानकार भी मानते हैं कि वायदा कारोबार (फ्यूचर ट्रेडिंग) की चाल पकड़नी होगी, तभी महंगाई पर नियंत्रण पाया जा सकता हैं।व श्रीवास्तव बताते हैं कि अलाउद्दीन खिलजी के समय में कुल 28 तरह के टैक्स लगाए गए थे। इनसे 30 लाख रुपए से ज्यादा का राजस्व इकट्ठा होता था। आपदा प्रबंधन से निपटने के लिए अलाउद्दीन खिलजी ने कई अनाज भंडारण गृह भी बनवाए थे। उनके गद्दी पर बैठने के ठीक एक साल बाद राज्य में सूखा पड़ा था। तब उन्होंने मुफ्त में अन्न बांटा था। इस वक्त व्यक्तिगत भंडारण बंद कर दिया गया था। अलाउद्दीन खिलजी के समय में अनाजों का दाम बढ़ाना, बनावटी कमी दिखाना और जमाखोरी गंभीर अपराध थे। महंगाई को काबू में रखने के लिए रईसों के संसाधन और आय पर टैक्स लगाया जाता था। इससे काफी राजस्व इकट्ठा होता था। इसका इस्तेमाल जनकल्याण के काम में किया जाता था अलाउद्दीन खिलजी ने अपने शासन काल में मिट्टी और तांबे के सिक्के जारी किए थे। इन्हे जीतल कहा जाता था। चीजों की कीमत का निर्धारण इसके आधार पर ही किया जाता था। एक जीतल का मूल्य 1/64 हिस्सा यानि एक रुपए का 64 वा भाग होता था।लाउद्दीन अनपढ़ व्य क्ति था। अकबर की तरह टोडरमल या अबुल फजल जैसे काबिल सलाहकार भी उसके पास नहीं थे। अतः अलाउद्दीन ने जो भी सफलता प्राप्तअ की वह उसे अपनी सामान्य जानकारी के बदौलत ही मिली। इस योजना को मदद पहुंचानेवाले किसी वृहत ढांचे, तकनीकी दक्षतायुक्तज निरीक्षण, तकनीकी सलाह और संगठित प्रशासनिक कुशलता के बिना ही, सिर्फ अपनी इच्छा् शक्ति के बल पर उसने अल्पाक‍वधि में ही चिरस्थातई प्रभाव पैदा किए।

(विपिन कुमार सिराथू)