नई दिल्ली।। पिछले कुछ महीनों में कम से कम तीन मामले एम्स में और तीन श्री गंगा राम हॉस्पिटल में दर्ज हुए है जो कि 'सेल्फीसाइड' से पीड़ित हैं। यह एक कम्पलसीज डिसऑर्डर है जिसमें मोबाइल फोन के सामने लगातार और बार-बार पोज दिया जाता है और लोगों के फीडबैक के लिए तस्वीरें शेयर की जाती है। एम्स में ये तीनों मरीज अपने बॉडी पोश्चर्स को लेकर जानना चाहते थे और उनमें 'बॉडी डिस्मॉर्फिक डिसऑडर' विकसित हो गया था।इस डिसऑर्डर से पीड़ित व्यक्ति हरदम मिरर में देखता रहता है या खुद की तस्वीरें लेता रहता है। इन युवाओं के माता-पिता ने कहा कि उनके बच्चों में एक असामान्य व्यवहार देखने को मिला जब उन्हें सेल्फी क्लिक करने और उन्हें सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर शेयर करने से रोका गया।
इंडिया टुडे के मुताबिक एक लड़की का केस को हैंडल कर रहे एम्स मनोरोग ईकाई के डॉ. नंद कुमार ने कहा 'सेल्फीसाइड से पीड़ित लड़की यह आश्वासन चाहती थी कि वह पूरे दिन सुंदर दिखें और उसके लिए वह इंस्टाग्राम और फेसबुक जैसी सोशल नेटवर्किंग वेबसाइट्स पर अपनी तस्वीरें पोस्ट करती रहती है ताकि लोगों का व्यू मिल सके। उसने अपने कॉलेज का समय भी बहुत व्यर्थ किया और यहां तक कि खाना भी। वह अनहेल्दी लाइफस्टाइल जीने लगी।'
चिकित्सा विशेषज्ञों का कहना है कि ऐसे डिसऑर्डर के लक्षम इतने सूक्ष्म हैं कि कई यूजर्स को तनाव के कारण का पता नहीं चलता। अमेरिकन साइकोलॉजिकल एसोसिएशन के अनुसार लगभग 60 प्रतिशत महिलाएं 'सेल्फीसाइड' से पीड़ित हैं और उन्हें यह पता ही नहीं।
श्री गंगा राम हॉस्पिटल के मनोचिकित्सक डॉ. राजीव मेहता के मुताबिक इस जुनून का कानूनी या आपराधिक प्रतिघात भी हो सकता है। उनके मुताबिक 'एक दोस्त ने फिगर की तारीफ क्या कर दी एक मरीज नग्न अवस्था में खुद के पोज क्लिक करने लगी। इस नग्न सेल्फी को उसने अपने बॉयफ्रेंड के साथ शेयर किया जिसका उसने मिसयूज किया। इसके चलते वह डिप्रेशन में आ गई और उसके माता-पिता को इलाज के लिए लाना पड़ा।'
डॉ. मेहता के मुताबिक ' मैं कम से कम चार महिला मरीज देखीं हैं जो कि इस डिसऑर्डर से पीड़ित हैं। पहले लोग मिरर के सामने खड़े रहते थे। आज वे खुद को कहीं भी सेल्फी के जरिए देख पाते हैं।'
