डिलीट गांधी – पेस्ट मोदी, कुछ लोगों के पेट में क्यों मरोड़े उठने लगे
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डिलीट गांधी – पेस्ट मोदी, कुछ लोगों के पेट में क्यों मरोड़े उठने लगे

Image result for delete mohandas karamchand gandhi past modi     खादी ग्रामोद्योग के कलेंडर – डायरी से गांधी जी की फोटो डिलीट कर मोदी जी की फोटो पेस्ट कर देने मात्र से न जाने कुछ लोगों के पेट में क्यों मरोड़े उठने लगे हैं। समय बड़ी तेज़ी से बदल रहा है। इतने लंबे अरसे तक गांधी जी को चरखे पर सूत कातने की ड्यूटी संभलवाई गई थी, क्या वे अपनी ड्यूटी सही ढंग से निभा पाये? क्या उन्होने देश के लिए जरूरत के मुताबिक सूत काता ? नहीं न ? जो व्यक्ति इतने सालों तक सूत कातने का उपक्रम करता रहा, वो अपना ही तन आज तक नहीं ढाँप पाया, वो भला कैसे आम आदमी को वस्त्र दे पाएगा ?गांधी जी ने चरखे की गति बड़ी ही धीमी रखी है, यह भी अलग से जांच का विषय है, हम इस पर भी सोचेंगे। इसमे भी किसी राजनैतिक दल की चाल परिलक्षित हो रही है। आज भी कुछ दल चाहते हैं कि गांधी जी के चरखे की गति धीमी रहे और आम आदमी यों ही नंग धड़ंग फिरता रहे। परंतु भाइयो और बहनों, आज युग परिवर्तन का दौर है, हमे पुराने खादी वस्त्रों की जगह नए दस दस लाख वाले वस्त्र चाहिए। विदेशों में हमारी साख का सवाल है। अब तुम ही बताओ, जिस व्यक्ति ने कभी दस लाख का सूट देखा ही नहीं वो भला कैसे कात पाएगा चरखे पर उस सूट का धागा ? नहीं न ?
     अब गांधी जी के हाथ ढीले पड़ चुके हैं। पता है क्यों ? क्योंकि असली हाथ – किसी और के साथ। अब नकली हाथों के सहारे कब तक चलेगा चरखा ? अतः अब गांधी जी को विश्राम की जरूरत है। क्या भला यह अच्छा लगता है कि डेढ़ सौ वर्ष की इस उम्र में भी हम अपने पूजनीय पूर्वज से सूत कतवायेँ ? नहीं न मित्रों ? यह तो सरासर अन्याय है, हमारी संस्कृति के खिलाफ है। यह जरूर किसी 70 साल तक राज करने वाली पार्टी की हमारी संस्कृति का क्षरण करने की साजिश है। परंतु मित्रों हम यह नहीं होने देंगे। एक “बापू” इस वृद्धावस्था में भी चरखा चलाने को विवश हो और औलाद हाथ पर हाथ धरे देखती रहे, यह हमसे सहन नहीं होगा। भले ही हमें खुद ही चरखा क्यों न चलाना पड़े। वैसे भी हमने गांधी जी के चश्मे को तो पहले ही स्वच्छ भारत की निगरानी के लिए डेप्यूट कर दिया है, अब भला बिना चश्मे के गांधी जी कैसे कात पाएंगे सूत ?
     विरोधी पार्टियां हो सकता है हम पर आरोप लगाएँ कि हमें चरखा नहीं चलाना आएगा। हमने पुराने चरखे को हटाकर नया चरखा लगाया है, जो कि ऑटोमैटिक है, हमें तो केवल इसके पास बैठकर फोटो खिंचवाना है। हमने तो पुराने ढर्रे के नोटों को एक ही झटके में प्रचलन से बाहर करके दुनियाँ को दिखा दिया है कि हम सारे घर के पर्दे बदल सकते हैं। लोग नोटबन्दी के बाद छपे कुछ नए नोटों पर भी गांधी जी की तस्वीर न छपी होने का राग अलापते रहे हैं। हमने सब को लाइन में लगा दिया है। भाइयो बहनों पुराने विचारों को त्यागिये और नवयुग में प्रवेश कीजिये। आपको नोटों का करना ही क्या है ? कैश लेस हो जाइये। न रहेगा बांस, न बजेगी बांसुरी। हम हमारी वसुधैव कुटुंबकम की नीति का अनुसरण कर रहे हैं। जिस पड़ौसी देश का हमारे साथ सदैव कटुता पूर्ण व्यवहार रहता था, आज वो ही हमें पेटीएम दे रहा है। है न अचरजपूर्ण बदलाव। युग बदल रहा ,जग बदल रहा, फिर तुम बदलो क्या नई बात। भाइयो बहनों हमने ऐसी ताली बजाई है कि देखते जाओ सारी विदेशी कंपनियाँ आपकी गलियों में आपके आगे नतमस्तक हो जाएंगी। बस चरखे की कताई देखो, कातने वाले को नहीं। हम हर नागरिक को चरखा चलाने का अधिकार देना चाहते है और वो भी अपनी सेल्फी के साथ। 


जग मोहन ठाकन
(वरिष्ठ पत्रकार एवं लेखक)

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