हार गया तो सौ दो सौ करोड़ फेकूंगा राज्यसभा से मनोनीत होकर आऊंगा
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हार गया तो सौ दो सौ करोड़ फेकूंगा राज्यसभा से मनोनीत होकर आऊंगा

   बस्ती।। विधानसभा चुनाव के पाचवें चरण का मतदान 27 फरवरी को है। प्रत्याशियों ने अपने अपने तरीकों से मतदाताओं को सहेजने में कोई कसर नही छोड़ा। किसी ने पैसों के दम पर रिझाने की कोशिश की तो कोई इमानदारी और मुद्दों के प्रति अपनी संवेदनशीलता की दुहाई देता रहा। बस्ती सदर विधानसभा से एक निर्दल प्रत्याशी हैं राकेश श्रीवास्तव। इन्होने मतदाताओं में पैठ बनाने और उनका ध्यान अपनी ओर खींचने के लिये साम दाम दण्ड भेद में कोई तरीका नही छोड़ा।
      मतदाता उस वक्त हतप्रभ रह गये जब राकेश और उनके समर्थकों ने भाजपा के राज्यसभा सांसद आरके सिन्हा को एक कार्यक्रम में जाते समय बीच रास्ते में रोककर माला पहनाने के बहाने उन्हे अपमानित किया, उनके खिलाफ नारे लगाये, उनके समर्थक गाड़ी के सामने लेट गये, इससे भी मन नही भरा तो पत्थरबाजी कर उनकी गाड़ी क्षतिग्रस्त कर दी। बेहद सरल और सौम्य व्यक्तित्व के धनी राज्यसभा सांसद इतने भयभीत हो गये कि उन्होने अपनी गाडि़यों को वापस घुमा लिया, शहर में कहीं नही रूके, करीब 20 किमी. दूर जाकर उन्होने तहरीर लिखा और पुलिस अधीक्षक को भेजकर कार्यवाही की मांग की।
      उनकी बूढ़ी आखें थोड़ा धोखा गयीं, तहरीर मेें उन्होने राकेश का हुलिया गलत लिख दिया, राकेश ने इसका फायदा उठाया और मीडिया में खबरें छपवाकर मतदाताओं में लोकप्रियता बटोरते रहे। राकेश को गिरफ्तार करने के लिये पुलिस ढूढ़ रही थी इसलिये झूठ को सच साबित करनके लिये उन्होने अपनी मां को मीडिया के सामने किया। उन्हे जैसा राकेश ने बताया वैसा उन्होने मीडिया को बयान दिया। खबरें छपी तो थोड़ा डैमेज कण्ट्रोल हुआ। उनका आरोप था कि राज्यसभा सांसद कार्यस्थ बिरादरी का वोट डिस्टर्ब करने आ रहे हैं। इसलिये उन्होने योजनाबद्ध तरीके से ऐसे हालात पैदा किये जिससे वे बिना कार्यक्रम में हिस्सा लिये ही वापस चलें जायें। हालांकि वे अपने मकसद में कायमयाब भी रहे। फिलहाल राकेश खुद चुनाव लड़े रहे हैं तो दूसरी पार्टी के नेता को बीच रास्ते में रोककर माला पहनाना का क्या औचत्य था। जनता तो इसे मूर्खता करार दे रही है। इस बीच बात बिगड़ता देख उन्होने मीडिया संस्थानों से सम्पर्क किया, सभी को खरीदने की बात करते रहे।
पैसों के दम पर किसी को नीचा दिखाना, मुख्य धारा में आने में फेल होने पर शार्टकट अपनाना तो कोई राकेश से सीखे। कहते हैं हार के आगे जीत होती है लेकिन वे किसी कीमत पर हारने को तैयार नही हैं और उनका अहंकार उन्हे किसी कीमत पर जीतने नही देगा। अब शार्टकट ही एक उपाय बचता है। इसके बारे में वे कई बार कह भी चुके हैं कि बात नही बनी तो सौ दो सौ करोड़ देकर राज्यसभा के जरिये आ जाऊंगा। सभव है, राजनीति तो ही वह प्लेटफार्म है जहां अपने पास अकूत दौलत हो तो शोहरत खरीदी जा सकती है।
        दरअसल बस्ती की राजनीति में धूमकेतु की तरह आये राकेश ने पहले हर वर्ग के मतदाताओं में अपनी पैठ बनाने का प्रयास किया, उनका अमीरी वाला अंदाज और आसानी से उनके चेहरे पर पढ़ा जाने वाला अहंकार किसी को अच्छा नही लगा। फिर वे कायस्थ मतदाताओं को अपने पक्ष में करके अपना सम्मान बचाने का प्रयास करने लगे। मतदान से दो दिन पहले कायस्थों ने भी उनका साथ छोड़ दिया, अब उनके साथ जो मुट्ठी भर लोग बंचे हैं वे उन्हे छोड़कर नही जायेंगे, क्योंकि वे कहीं न कहीं रिश्तों के डोर से बंधे हैं। पूरे घटनाक्रम मं राकेश कुछ मजे हुये नेताओं की कठपुतली बनकर रह गये। चर्चा है कि एक भाजपा सांसद यहां से अपने पुत्र का टिकट मांग रहे, पार्टी ने टिकट नही दिया तो भितरघात पर आमादा हो गये। उन्होने अपने गुर्गों को राकेश के साथ लगा दिया। मकसद था भाजपा उम्मीदवार दयाराम चोधरी का वोट काटना। एक और नेताजी थे जो टिकट न मिलने से नाराज थे, उन्होने ीाी राकेश को इस्तेमाल किया। यहां उनके लिये अपनी बिरादरी में वोट मांगते थे और गैर जनपदों में भाजपा का प्रचार कर रहे थे।
        एक और घटना प्रकाश में आयी है जिससे आप राकेश श्रीवास्तव के व्यक्तित्व का अंदाजा लगा सकते हैं। उनकी एक प्रमुख अखबार से कुछ अनबन हो गयी। राकेश ने उसे नीचा दिखाने का मन बना लिया। मीडिया संस्थानों में प्रतिद्वन्दिता किसी से नही छिपी नही है। इसका फायदा उठाते हुये उन्होने प्रतिद्वन्दी अखबार का सहारा लिया। उसमें बड़े बड़े इश्तहार छपवाये। और पांच हजार अतिरिक्त प्रतियां छपवाकर जिस अखबार को चिढ़ाना चाहते थे उसी के साथ उसे फ्री में बंटवा दिया।
       भाजपा के लोग चुनाव परिणाम आने के बाद राकेश से राज्यसभा सासंद के अपमान का बदला लेने की तैयारी में हैं लेकिन मतदाता तो अपना काम 27 फरवरी को ही कर देंगे। लोग यह चर्चा कर रहे हैं देखना गलती से कहीं इस अहंकारी को न वोट चला जाये। अपने कृत्य और भीतर छिपे व्यक्तित्व को बाहर लाकर राकेश ने उन वोटों को भी गंवा दिया जो उनके अपने कहे जाते थे। चर्चा है वे क्वाण्टम ग्रुप के चेयरमैन हैं। कम्पनी का 800 करोड़ से ज्यादा का टर्नओवर हैं। लेकिन बिजनेस क्या है कोई नही जानता। कहते हैं बस्ती की बेरोजगारी देर करेंगे, युवाओं का पलायन राकेंगे। 800 करोड़ के अपने कारोबार में उन्होने रिश्तेदारों को छोड़ दें तो कितने लोगों को रोजगार दिये हैं यह एक बड़ा सवाल है। खैर भाजपा उनके सारे रहस्य खोलने वाली है। फिलहाल उनको मिलने वाले वोटों की संख्या चार अंको से ऊपर जाये यह उनके लिये दिवास्वप्न से कम नही होगा।

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