कोई अभाव आपको सता रहा है तो देर किस बात की बस इन्हे पुकारिए
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कोई अभाव आपको सता रहा है तो देर किस बात की बस इन्हे पुकारिए


Image may contain: textभक्ति के महाद्वार हैं यह
  विश्व-साहित्य में हनुमान के सदृश पात्र कोई और नहीं है। हनुमान एक ऐसे चरित्र हैं जो सर्वगुण निधान हैं। अप्रतिम शारीरिक क्षमता ही नहीं, मानसिक दक्षता तथा सर्वविधचारित्रिक ऊंचाइयों के भी यह उत्तुंग शिखर हैं। इनके सदृश मित्र, सेवक, सखा, कृपालु एवं भक्तिपरायण को ढूंढना असंभव है। हनुमान जी के प्रकाश से वाल्मीकि एवं तुलसीकृतरामायण जगमग हो गई।
हनुमान के रहते कौन सा कार्य व्यक्ति के लिए कठिन हो सकता है?
“दुर्गम काज जगत के जेते।
सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते॥”
    अगर किसी कष्ट से ग्रस्त हैं, किसी समस्या से पीड़ित हैं, कोई अभाव आपको सता रहा है तो देर किस बात की! हनुमान जी को पुकारिए, सुंदर कांड का पाठ कीजिए, वह कठिन लगे तो हनुमान-चालीसा का ही परायण कीजिए और आप्तकाम हो जाइए। हनुमान जी की प्रमुख विशेषताओं को प्रातः स्मरणीय पूज्यपाद बाबा गोस्वामी जी ने इन चार पंक्तियों में समेटने का प्रयास किया है :~
अतुलित बलधामं हेमशैलाभ देहंदनुज वन कृशानुं ज्ञानिनाम ग्रगण्यम्।
सकल गुण निधानं वानरणाम धीशंरघुपति प्रियभक्तं वात जातं नमामि।।
     सदृश विशाल कान्तिमान् शरीर, दैत्य (दुष्ट) रूपी वन के लिए अग्नि-समान, ज्ञानियों में अग्रगण्य, सम्पूर्ण गुणों के खान, वानराधिपति,राम के प्रिय भक्त पवनसुत हनुमान का मैं नमन करता हूं। अब ढूंढिए ऐसे चरित्र को जिसमें एक साथ इतनी विशेषताएं हों। जिसका शरीर भी कनक भूधराकार हो, जो सर्वगुणोंसे सम्पन्न भी हो, दुष्टों के लिए दावानल भी हो और राम का अनन्य भक्त भी हो। कनक भूधराकार की बात कोई अतिशयोक्ति नहीं, हनुमान जी के संबंध में यह यत्र-तत्र-सर्वत्र आई है।
आंज नेयं अति पाटला ननम्कांचना द्रिकम नीय विग्रहम्।
पारिजात तरुमूल वासिनम्भावयामि पवन नन्दनम्॥
    अंजना पुत्र, अत्यन्त गुलाबी मुख-कान्ति तथा स्वर्ण पर्वत के सदृश सुंदर शरीर, कल्प वृक्ष के नीचे वास करने वाले पवन पुत्र का मैं ध्यान करता हूं। पारिजात वृक्ष मनोवांछित फल प्रदान करता है। अत:उसके नीचे वास करने वाले हनुमान स्वत: भक्तों की सभी मनोकामनाओं की पूर्ति के कारक बन जाते हैं। आदमी तो आदमी स्वयं परमेश्वरावतार पुरुषोत्तम राम जी के लिए हनुमान जी ऐसे महापुरुष सिद्ध हुए कि प्रथम रामकथा-गायक वाल्मीकि ने राम के मुख से कहलवा दिया कि तुम्हारे उपकारों का मैं इतना ऋणी हूं कि एक-एक उपकार के लिए मैं अपने प्राण दे सकता हूं, फिर भी तुम्हारे उपकारों से मैं उऋण कहां हो पाउंगा?
एकै कस्यो पकार स्यप्राणान्दा स्यामि तेकपे।
शेष स्येहो पकाराणां भवाम ऋणि नोवयम्।।
    उस समय तो राम के उद्गार सभी सीमाओं को पार कर गए जब हनुमान जी के लंका से लौटने पर उन्होंने कहा कि हनुमान ने ऐसा कठिन कार्य किया है कि भूतल पर ऐसा कार्य सम्पादित करना कठिन है, इस भूमंडल पर अन्य कोई तो ऐसा करने की बात मन में सोच भी नहीं सकता।
"कृतं हनूमता कार्य सुमह द्भुवि दुलर्भम्।
मनसा पिय दन्ये नन शक्यं धरणी तले॥"
     बाबा गोस्वामी जी हनुमान जी के सबसे बड़े भक्त थे। महर्षि वाल्मीकि के हनुमान जी की विशेषताओं को देखकर वह पूरी तरह उनके हो गए। हनुमान के माध्यम से उन्होंने राम की भक्ति ही नहीं प्राप्त की, राम के दर्शन भी कर लिए। हनुमान ने गोस्वामी की निष्ठा से प्रसन्न होकर उन्हें वाराणसी में दर्शन दिए और वर मांगने को कहा। तुलसी को अपने राम के दर्शन के अतिरिक्त और क्या मांगना था? हनुमान ने वचन दे दिया।
    राम और लक्ष्मण घोड़ेे पर सवार, तुलसी के सामने से निकल गए। हनुमान ने देखा उनका यह प्रयास व्यर्थ गया। तुलसी उन्हें पहचान ही नहीं पाए। हनुमान जी ने दूसरा प्रयास किया। चित्रकूट के घाट पर वह चंदन घिस रहे थे कि राम ने एक सुंदर बालक के रूप में उनके पास पहुंच कर तिलक लगाने को कहा। तुलसीदास फिर न चूक जाएं अत:हनुमान को तोते का रूप धारण कर ये प्रसिद्ध पंक्तियां कहनी पड़ी।
"चित्रकूट के घाट पर भई संतनकी भीर।
तुलसीदास चन्दन घिसें तिलक देत रघुबीर॥"
    हनुमान जी ने मात्र तुलसी को ही राम के समीप नहीं पहुंचाया। जिस किसी को भी राम की भक्ति करनी है, उसे प्रथम हनुमान जी की भक्ति करनी होगी। राम हनुमान से इतने उपकृत हैं कि जो उनको प्रसन्न किए बिना ही राम को पाना चाहते हैं उन्हें राम कभी नहीं अपनाते। गोस्वामी जी ने ठीक ही लिखा है ;~
"राम दुआरे तुम रखवारे।
होत न आज्ञा बिनुपैसारे॥"
अत:हनुमान भक्ति के महाद्वार हैं।
    राम की ही नहीं कृष्ण की भी भक्ति करनी हो तो पहले हनुमान जी को अपनाना होगा। यह इसलिए कि भक्ति का मार्ग कठिन है। हनुमान जी इस कठिन मार्ग को आसान कर देते हैं, अत:सर्वप्रथम उनका शरणागत होना पड़ता है।
     भारत में कई ऐसे संत व साधक हुए हैं जिन्होंने हनुमान जी की कृपा से अमरत्व को प्राप्त कर लिया। रामायण में राम और सीता के पश्चात सर्वाधिक लोकप्रिय चरित्र हैं हनुमान जिनके मंदिर भारत ही नहीं भारत के बाहर भी अनगिनत संख्या में निर्मित हैं। धरती तो धरती तीनों लोकों में इनकी ख्याति है :~
"जय हनुमान ज्ञान गुण सागर।
जय कपीसतिहूंलोक उजागर॥"
"हनुमान बाहुक तुलसीदास जी के द्वारा रचित एक स्तोत्र है जो आरोग्यता प्रदान करता है।"
इसे रचने के पीछे की कहानी यह है :~
    ये घटना तब की है जब तुलसीदास जी लंका काण्ड की रचना कर चुके थे उसके बाद वो बहुत बीमार हो गए अपने आप को किसी असाध्य रोग से पीड़ित जान कर उन्होंने हनुमानजी की स्तुति की और मौन वृत आवाज़ में जो बोल उनके मुह से निकले वो हनुमान बाहुक के रूप में जाने जाते हैं, कोई भी बीमार या उसका सम्बन्धी इस स्तोत्र का पाठ करे तो वो रोगी आरोगी हो जाता है कई असाध्य रोगों में भी इसकी उपयोगिता देखी गई है।
हनुमान जी ने एक बार माता सीता को सिंदूर लगाते हुए देखा और कहा की माता आप ये क्या कर रही हैं..????
तो माता सीता ने उनसे कहा की सिंदूर लगा रही हूँ, तब हनुमान जी ने कहा की इसके लगाने से क्या होता है??
तब माता सीता ने कहा की श्री राम प्रसन्न होते हैं।
      तब हनुमान जी ने कहा की माता ने तो बस एक अपने मस्तक पर ही लगाया है मै तो पूरे शरीर पर लगा लूँगा और प्रभु मुझसे कितना प्रसन्न हो जायेंगे उन्होंने अपने शरीर पर सिंदूर ही सिंदूर लगा लिया और राम दरबार में पहुंच गए, उनकी हालत देख कर सब दरबारी हंसने लगे जब श्री राम जी को सारी बात पता चली तो उन्होंने कहा कि मैं तुम्हारे इस अगाध प्रेम को स्वीकार कर के ये वरदान देता हूँ कि जो भी तुम्हे सिंदूर अर्पण करेगा वो सदैव मेरी कृपा का पात्र रहेगा।
     हनुमान जी के नाम स्मरण मात्र से भूत प्रेत की बाधा तो छूटती ही है अपितु भगवान हनुमान जी को श्रीराम ने वरदान दिया कि जब तलक चन्द्र सूरज जमी पे रहें, तब तलक तुम अमर हो पवन के सुवन। हमारे शास्त्र कहते हैं कि कुछ महाविभूति अब भी इस जमी पर हैं जो की अमर हैं। कई भाग्य शाली इंसानों को उनके दर्शन भी हुए हैं। जो अमर हैं उनके नाम हैं :~
इस श्लोक के माध्यम से हम जानते हैं की कौन हैं ये सात चिरंजीवी :~
"अश्वत्थामा बलिव्र्यासो हनूमांश्च विभीषण:।
कृप: परशुरामश्च सप्तएतै चिरजीविन:॥
सप्तैतान् संस्मरेन्नित्यं मार्कण्डेयमथाष्टमम्।
जीवेद्वर्षशतं सोपि सर्वव्याधिविवर्जित।।
अर्थात इन आठ लोगों (अश्वथामा, दैत्यराज बलि, वेद व्यास, हनुमान, विभीषण, कृपाचार्य, परशुराम और मार्कण्डेय ऋषि) का स्मरण सुबह-सुबह करने से सारी बीमारियां समाप्त होती हैं और मनुष्य 100 वर्ष की आयु को प्राप्त करता है।
!! जय जय सियाराम जी !!
ll हरी ॐ पवनसुत हनुमान की जय हरी ॐ ll
ll हरी ॐ वीर बजरंग बलि की जय हरी ॐ ll

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