जब कमजोरी पुरुष को अनुभव हुई तो गाली स्त्री को क्यों पड़ी?
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जब कमजोरी पुरुष को अनुभव हुई तो गाली स्त्री को क्यों पड़ी?

― अरुंधती रॉय ने कश्मीर पे कुछ कहा, तो भक्तों ने उसको “रंडी” कहना शुरू कर दिया!
― शहला राशिद ने भाजपा के विरोध में लिखा तो उसको भी “रंडी” शब्द से अलंकृत किया गया!
― कुछ साल पहले की बात है मारिया शारापोवा को “रंडी” सिर्फ़ इसलिए कहा गया क्योंकि वह सचिन तेंदुलकर को नहीं जानती थीं!
― सोना महापात्रा “रंडी” हो गयीं क्योंकि वो सलमान ख़ान की रिहाई सही नहीं मानती थीं!
― बरखा दत्त से लेकर निधि राजदान तक वे सभी औरतें जो आपकी “अंध-भक्ति” का विरोध करती हैं, वो “रंडी” हैं!
― सानिया मिर्ज़ा से लेकर करीना कपूर तक हर वो सेलेब्रिटी “रंडी” है जिसके प्रेम ने मुल्क और मज़हब की दकियानूसी दीवारों को लांघा!
― वह चौदह साल की लड़की भी उस दिन आपके लिए “रंडी” हो जाती है जिस दिन वह आपका प्रपोज़ल ठुकरा देती है और अगर कोई लड़की आपके प्रेम जाल में फंस गयी तो वह भी ब्रेक-अप के बाद “रंडी” हो जाती है!
― जीन्स पहनने वाली लड़की से लेकर साड़ी पहनने वाली महिला तक सबका चरित्र आपने सिर्फ़ “रंडी” शब्द से परिभाषित किया है!
बोल्ड और सोशल साइट पर लिखने वाली महिलाओं को अपना विरोध या गुस्सा दिखाने के लिए कुछ लोग फ़ेसबुक पर इन (रंडी वैश्या छिनाल) शब्द को सरेआम लिख/बोल रहे हैं। परंतु..... 
रंडी शब्द ना तो आपका विरोध दिखाता है, ना ही आपका गुस्सा। ये सिर्फ़ एक चीज़ दिखाता है, वह है आपकी घटिया मानसिकता और नामर्दानगी।
मगर क्यों??
    क्योंकि कहीं ना कहीं आपको लगता है कि औरतें आपसे कमतर हैं, और जब यही औरतें आपको चुनौती देती हैं तब आप बौखला जाते हैं और जब आप किसी औरत से हार जाते हैं तब आप बौखलाहट में अपना गुस्सा या विरोध दिखाने के लिए औरत को गाली देते हैं, उसे “रंडी” कहते हैं ! मगर “रंडी” शब्द ना तो आपका विरोध दिखाता है ना ही आपका गुस्सा, ये सिर्फ़ एक चीज़ दिखाता है, वह है आपकी “घटिया मानसिकता” सबसे आसान है औरत को वेश्या कहना। उससे भी आसान उसके मन को छलनी करना। आजकल सबसे आसान है उसे जीवन से पहले मृत्यु देना या थोड़ा-सा आसान यह भी कि मार देना ऑनर-किलिंग कहकर !
    सुनो अरे समाज के ताकथित संभ्रांत-सूत्रधारों। ये वेश्या जिस दिन कोठे से उतर जाएंगी, तुम नंगे हो जाओगे अपनी ही बहु-बेटियों के सामने। तुम यह नहीं जानते जब तुम कमजोर पड़ते हो या तो वेश्या की गोद में जाते हो या फिर उसे रंडी कहकर अपनी कुंठा शांत करते हो। हर हालत में तुम उस रंडी के ही अधीन हो। और मुझे लगता है वेश्या आम औरतों से ज़्यादा ताकतवर है। जो हर हाल में तुम्हारी औकात बता देती है!
रंडी-वेश्या कहकर हमें अपमानित करने की लालसा रखने वाले ऐ कमअक्लों, एक पेशे को गाली बना देने की तुम्हारी फूहड़ कोशिश से तो हम पर कोई गाज़ गिरी नहीं। पर अपनी चिल्ला-पों और पोथी-लिखाई से छानकर क्या तुमने इतनी सदियों में कोई शब्द, कोई नाम ढूंढ़ निकाला ?
■ अब बात करती हूँ आपकी मर्दानगी की औकात की :-
सुबह अखबार खोलो तो बलात्कार, कत्ल, दहेज हत्या सनसनीखेज खबरों से रूबरू होते ही आगे बढते हैं कि विज्ञापनों का अम्बार।
“पौरुष शक्ति कैसे बढाएं या प्यार के पल कैसे बढ़ें या जो अपनी बीबी से करते हैं प्यार जापानी तेल से कैसे करें इन्कार या फिर चार्ज हो जाओ खुशियों की नयी ऊंचाई के लिए .”....वगैरह वगैरह।
एक-एक पेज पर चार-चार विज्ञापन। रोचक बात यह कि एक भी विज्ञापन महिलाओं की कामशक्ति बढ़ाने का नहीं। “कामसूत्र” ग्रंथ भी पुरुषों के लिए लिखा गया। पुरुष की शक्तिहीनता का परिचय विज्ञापनों से पता लगता है। फिर भी “नारी नरक का द्वार है” या स्त्री के लिए सम्मानसूचक शब्द समाज ने दिये – “वैश्या, रण्डी, छिनाल, कलंकिनी” और भी न जाने क्या क्या। 
   कमजोरी पुरुष को अनुभव हुई गाली स्त्री को पड़ी। नपुंसक पुरुष हुआ बांझ स्त्री को कहा गया। सारे विज्ञापन सारे ग्रन्थ पुरुषों के लिए और स्त्री के हक में ? क्या स्त्री को ऐसे काम ग्रन्थो की जरूरत नहीं होती ? फिर भी समाज की सारी सीमा रेखाएं स्त्री के लिए और सारी वासनाएं पुरुष के लिए। ये असन्तुलन ही समाज को विकृति की ओर ले जाता है।
    सुबह-सुबह ऐसे विज्ञापन न जाने कितने जापानी तेलों की बिक्री बढ़ाते हैं और कितने ही अपनी मर्दानगी को आजमाने के लिए बच्चियों और बूढ़ी महिलाओं तक को अपनी हवस का शिकार बना देते हैं। इसी पुरुष ने अपनी हवस को पूरा करने के लिए स्त्री को नगरवधू बना कोठे पर बिठाया और इसी पुरुष ने “नारी निकेतन” बना अपनी मस्ती और मर्दानगी को आजमाने का अड्डा बनाया।
■ एक सवाल सारी पुरुष जाति से :- अपराधी अगर स्त्री-पुरुष दोनों हैं तो स्त्री को नारी निकेतन और पुरुष को छुट्टा आजादी क्यों ? मैने तो यही सुना था कि पुरुष वह जो स्त्री की आंखों में आंसू न आने दे। ऐसा पुरुष कहां पाया जाता है मुझे उसका पता चाहिए। ऐसे विज्ञापन देख एक सवाल तो रोज उठता है कि जब पुरुष प्रधान समाज में ऐसे विज्ञापनों की भरमार होगी तो पता नहीं अभी कितनी अरुणाएं, कितनी निर्भयाएं, कितनी ही मासूम बच्चियां आबरू लुटा संसार से विदा होंगी।
    काश कोई इस समाज को समझा सके कि पुरुष का पौरुष संयम और सदाचार से बढ़ता है। तुम हमें रंडी, वेश्या कहते हो, हमारा बलात्कार करते हो, हमारे शरीर को गंदी निगाहों से देखते हो, हमें पेट में ही मार देते हो, सरेआम हमारे कपड़े फाड़ते हो… मत भूलना ये अस्तित्व हमीं से मयस्सर है तुम्हें।
क्या कभी देखा है किसी रंडी को तुम्हारे घर पर कुंडी खड़का कर स्नेहिल निमंत्रण देते हुए ?? नहीं न !!! ….वो तुम नीच नामर्द ही होते हो, जो उस रंडी के दरबार में स्वर्ग तलाशने जाते हो!!

(Usha Yadav)

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