राजस्थान के एक महाराजा जो देश की रक्षा के लिए सेना में भर्ती हो गए
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राजस्थान के एक महाराजा जो देश की रक्षा के लिए सेना में भर्ती हो गए

ब्रिगेडियर महाराजा सवाई भवानी सिंह जयपुर
ब्रिगेडियर भवानी सिंह जी जैसा कोई दूसरा उदाहरण नहीं 
अरबों - खरबों की संम्पत्ति होने के बाबजूद भी मातृभूमि की रक्षा के लिए इन्होंने सेना ज्वाईन किया था ...!!
   ब्रिगेडियर महाराजा सवाई भवानी सिंह जी जयपुर के कच्छवाहा कुशवाहा वंश के महाराजा थे, जिन्होंने भारत पाक युद्ध में सन 1971 ई० में बाग्लादेश युद्ध में अपनी वीरता का परिचय देते हुए सन 1972 ई० में सम्मान स्वरूप महावीर चक्र से सम्मानित हुए थे ...!
   पाकिस्तान की सीमा में सैकड़ों किलोमीटर दूर तक दूश्मन के हौसले पस्त कर देने और कई शहरों को कब्जे में कर लेने के बाद छुट्टी मनाने जब जयपुर के पुर्व नरेश सवाई भवानी सिंह जब जयपुर लौटे तब सारा शहर उन्हें धन्यवाद देने के लिए खड़ा हो गया था .. पहुचने के बाद इन्होंने पहला काम शिलादेवी के मंदिर में धन्य प्रार्थना कर आशिर्वाद प्राप्त किया था ..जैसा कुशवाहा राजपूतों की परम्परा रही है।  
   वे तब लैफ्टिनेंट कर्नल पद पर थे .. वर्ष 1971 में भारत ने पुर्वी पाकिस्तान आज के बाग्लादेश को स्वतंत्र कराने में अभुतपूर्व सैन्य सहायता प्रदान कर विश्व को चौंका दिया था ..पश्चिमी सीमा पर पाकिस्तान ने पंजाब तथा राजस्थान के कई राज्यों में आक्रमण किए जिनका माकुम जाबाब देकर उन्हें ध्वस्त किया .. भारतीय सेना दूश्मन के इलाकों में घुसती गई.!!
   बहुत कम लोगों को पता होगा ..कि पाँच महिनों से रेगिस्तानी क्षेत्रों में हवाई जहाजो से छताधारी लड़ाकू यौद्धाओं ( पैरा ट्रुपर सैनिक ) को कुदाया जा रहा था और ऐसे प्रशिक्षण दिए जा रहे थे ..की वे अंधेरे में पाकिस्तान के इलाकों में कब्जा कर ले .. भवानी सिंह तब भारतीय सेना के दशवीं पैरा रेजीमेंट के शिर्ष अधिकारी थे और इस प्रशिक्षण का नैतृत्व कर रहे थे। 
   सेना प्रमुख एस. एच. एफ जे. मानकशा कि अगुवाई में इन्होंने छताधारी सैनिकों कि अगुवाई कर उस (डेजर्ट आपरेशन ) की अगुवाई की और पाकिस्तान की सीमा में छाछरो नामक नगर पर आधी रात में ही कब्जा कर लिया "एल्फा" और "चारली" नमक दो अलग अलग तुकडियों के जमीन पर कुदते ही सेना की ''जौंगा" जीपें" खड़ी मिलती जिनमें गोला बारूद एवं खाने का सामान रखना था ..पाँच दिन में इन सभी ने छाछरो के बाद वीरावाह .. स्लामकोट .. नगरपारक और अन्त में लुनियों नामक नगरों पर तिरंगा झंडा फहराया था ..यह इलाके बाडमेर के दक्षिण पश्चिम में थे ..और करिब 60 - 90 किलोमीटर की दूरी पर इस करवाई में पाक के 36 सैनिक मारे गए और 22 को युद्ध बन्दी बनाया गया।  
    रोचित सम्मान देने के लिए पुरा देश ऊन दिनों युद्ध से लौटने वाले सैनिकों के लिए पलकें बिछाए हुए था। जयपुर में लैफ्टीनैंट कर्नल भवानी सिंह को दोह तरफा आदर मिला ..एक तो वे यहाँ के महाराजा थे .. दूसरे एक ऐसे सैन्य अधिकारी जिन्होंने छताधारी सैनिकों का नेतृत्व किया था और पाकिस्तान के कई शहरों को फतह किया था।
स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद सवाई भवानी सिंह ही एक मात्र नरेश थे जिन्होंने भारतीय सेना में सेकेंड लैफ्टीनैंट के पद से सेवा आरम्भ की और बटालियन के कमाण्डर पद से स्वतः सेवानिवृत्ति प्राप्त की .. इस लडाई में शौर्य प्राक्रम एवं नेतृत्व की श्रेष्ठता के लिए इन्हें सरकार ने महावीर चक्र से सुशोभित किया 22 अक्टूबर 1931 को जन्मे इस पैराट्रू पर फौजी अफसर को ब्रिगेडियर का ओहदा भी सरकार ने प्रदान किया .. इनका देहान्त 17 अप्रैल 2011 को हुआ। 

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