क्या कोई भारतीय नेता कभी युद्ध में शहीद हुआ है?
वह "मंत्री" जो युद्ध में शहीद शहीद हो गया
19 दिसम्बर 1965 को एक भारतीय राजनेता और गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री "बलवंत राय मेहता" को पाकिस्तानी फाइटर प्लेन ने मार गिराया था। 1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के बारे में कई ऐसी बातें हैं जो चौंका देनी वाली है चाहे वो भारतीय सैनिकों का लाहौर कूच हो या शास्त्री जी कि आकस्मिक मृत्यु।
आजादी के आन्दोलन में अपनी सक्रीय भूमिका निभाई
ऐसी ही एक कहानी है बलवंत राय मेहता की। बलवंत राय मेहता कांग्रेस के एक कद्दावर नेता और गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री थे, 19 फरवरी 1900 में जन्मे बलवंत राय मेहता ने आजादी के आन्दोलन में अपनी सक्रीय भूमिका निभाई थी, आजादी के बाद वे गुजरात सरकार के दुसरे मुख्यमंत्री बने, भारत में सामुदायिक विकास के कार्यक्रमों की जांच के लिए, बनाई गई कमिटी की अध्यक्षता करने के लिए इन्हें "पंचायती राज व्यवस्था का भीष्म पितामह" भी कहा जाता है।
विमान को उड़ाने की जिम्मेदारी जहाँगीर की थी
ये बात उस समय की है जब 1965 का युद्ध चरम पर था। गुजरात के मुख्यंत्री बलवंत राय मेहता अहमदाबाद में एन.सी.सी के एक कार्यक्रम में भाग लेकर एक बीचक्राफ्ट मॉडल 18 विमान में सवार होकर मीठापुर की ओर जा रहे थे, मीठापुर द्वारका के पास स्थित है। ये इलाका कच्छ के रण में हैं और भारत पाकिस्तान सीमा के काफी करीब भी। इस विमान में उनके साथ सात अन्य लोग भी सवार थे जिसे उड़ाने की जिम्मेदारी भारतीय वायु सेना के पूर्व पायलट और गुजरात सरकार के मुख्य पायलट जहाँगीर इंजिनियर निभा रहे थे।
तभी हुक्म आया कि जहाज़ को शूट कर दें
इसी दौरान करीब शाम के 3:00 बजे पाकिस्तानी वायु सेना का एक पायलट कराची के पास बने मेरापुर एयरबेस में अपनी उड़ान की तैयारी कर रहा था, इस पायलट का नाम था "कैस मज़हर हुसैन।" अपनी उस उड़ान को याद करते हुए वे कहते हैं, “स्क्रैंबल का सायरन बजने के तीन मिनट बाद मैंने जहाज़ स्टार्ट किया मेरे बदीन रडार स्टेशन ने मुझे सलाह दी कि मैं बीस हज़ार फ़ुट की ऊंचाई पर उड़ूं। उसी ऊंचाई पर मैंने भारत की सीमा भी पार की। तीन चार मिनट बाद उन्होंने मुझे नीचे आने के लिए कहा। तीन हज़ार फ़ुट की ऊंचाई पर मुझे ये भारतीय जहाज़ दिखाई दिया जो भुज की तरफ़ जा रहा था। मैंने उसे मिठाली गांव के ऊपर इंटरसेप्ट किया। जब मैंने देखा कि ये सिविलियन जहाज़ है तो मैंने उस पर छूटते ही फ़ायरिंग शुरू नहीं की। मैंने अपने कंट्रोलर को रिपोर्ट किया कि ये असैनिक जहाज़ है।
मैं उस जहाज़ के इतने करीब गया कि मैं उसका नंबर भी पढ़ सकता था। मैंने कंट्रोलर को बताया कि इस पर विक्टर टैंगो लिखा हुआ है। ये आठ सीटर जहाज़ है। बताइए इसका क्या करना है?
उन्होंने मुझसे कहा कि आप वहीं रहें और हमारे निर्देश का इंतज़ार करें। इंतज़ार करते-करते तीन चार मिनट गुज़र गए। मैं काफ़ी नीचे उड़ रहा था, इसलिए मुझे फ़िक्र हो रही थी कि वापस जाते समय मेरा ईंधन न ख़त्म हो जाए लेकिन तभी मेरे पास हुक्म आया कि आप इस जहाज़ को शूट कर दें।”
जहाँगीर की बेटी से मांगी थी माफ़ी
कैस हुसैन कहते हैं कि इससे ज्यादा लाचार उन्होंने कभी महसूस नहीं किया था, वे जानते थे कि ये विमान एक सिविलियन जहाज है लेकिन वो उसे शूट करने को मजबूर थे, ट्रेनिंग के दौरान उन्हें सिखाया जाता है की आदेशों का पालन करते समय उन्हें सोचने समझने की इज़ाज़त नहीं होती है। वो बताते हैं की कंट्रोल रूम में बैठे उनके साथियों ने बताया की उन्हें संदेह था की ये विमान सीमावर्ती इलाकों की तस्वीर ले रहा है।
इस घटना के कई वर्ष बीत जाने के बाद कैस हुसैन ने उस विमान को उड़ा रहे पायलट जहाँगीर इंजिनियर की बेटी फरीदा सिंह से ईमेल के माध्यम से संपर्क किया और उनसे इस घटना के लिए क्षमा मांगी लेकिन जो हो चुका है, उसे बदला भी नहीं जा सकता है।