राष्ट्रधर्म सर्वोपरि : राष्ट्र को सर्वोपरि मानकर करें कार्य - महंत हरिओमदासजी
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राष्ट्रधर्म सर्वोपरि : राष्ट्र को सर्वोपरि मानकर करें कार्य - महंत हरिओमदासजी

पूर्व जन्मों के करोड़ पुण्य होने पर ही हमें भागवत कथा को सुनने का लाभ मिलता है - पंडित अनिलकृष्ण महाराज
भागवत सुनने से सात दिनों में मोक्ष की प्राप्ति - पंडित अनिलकृष्ण
चित्र नहीं चरित्र के उपासक बने - महामण्डलेश्वर हरिओमदासजी महाराज
Laliwav Math Hariomdas ji Maharaj
लालीवाव मठ में 7 दिवसीय श्रीमद्भागवत कथा शुरु 
  बांसवाड़ा/राजस्थान।। शहर के ऐतिहासिक तपोभूमि लालीवाव मठ में गुरुपूर्णिमा महोत्सव के तहत प. पू. महामण्डलेश्वर हरिओमदासजी महाराज के सानिध्य में चल रही सात दिवसीय श्रीमद भागवत कथा ज्ञान यज्ञ के प्रथम दिन भागवत प्रवक्ता पण्डित अनिल कृष्ण जी महाराज ने कथा का महत्व बताते हुए कहा कि वेदों का सार युगों-युगों से मानव जाति तक पहुंचता रहा है। ‘भागवत महापुराण’ यह उसी सनातन ज्ञान का सागर है, जो वेदों से बहकर चली आ रही है। जो हमारे जड़वत जीवन में चेतन्यता का संचार करती है और जो हमारे जीवन को सुंदर बनाती है, वो श्रीमद् भागवत कथा है।
Bhagwat Katha in Laliwav Math for Bhagwat Katha
मनुष्य प्रभु को भूल कर इस संसार को अपना समझ बेठा है
   पण्डित अनिल कृष्णजी महाराज ने कहा कि यह एक ऐसी अमृत कथा है, जो देवताओं के लिए भी दुर्लभ है। कथामृत का पान करने से संपूर्ण पापों का नाश होता है। मानव प्रभु की उत्कृष्ट रचना है। लेकिन आज मनुष्य उसी प्रभु को भूल कर इस संसार को अपना समझ बेठा है। चौरासी लाख योनियों में उत्थान दिलवाने वाली यह मानव देह ही कल्याणकारी है। जो हमें ईश्वर से मिलाती है। यह मिलन ही उत्थान है। आत्मदेव जीवात्मा का प्रतीक है, जिस का लक्ष्य मोह, आसक्ति के बंधनों को तोड़ कर उस परम तत्व से मिलना है। हमारे पूर्व जन्मों के करोड़ पुण्य उदय होने पर ही हम श्रीमद् भागवत कथा का सुनने का लाभ मिलता है।
Bhagwat Katha in Laliwav Math
   मठ के प्रधान मंदिर भगवान पद्मनाभ से कथा पण्डाल तक भागवत पौथी यात्रा निकाली गई एवं कथा के आरंभ में कथा वाचक बालव्यास श्री अनिल कृष्णजी महाराज ने सभी मठ के सभी देवी-देवताओं एवं अपने गुरुदेव का पूजन अर्चन कर भागवत कथा प्रारंभ हुई। पण्डित मुकेशजी आचार्य के आचार्यत्व में विधी विधान पौथी का पूजन किया गया। व्यासपीठ का माल्यार्पण सियारामदास महाराज, महेश राणा, डॉ. विश्वास बंगाली, दीपक तेली, मांगीलाल धाकड़, मनोहर मेहता, गोपालसिंह, कृष्णा, राज सोलंकी आदि लालीवाव मठ भक्त परिवार द्वारा किया गया। 
गुरु एवं भगवान की कृपा के बिना हम कथा का लाभ नहीं ले सकते
    कथा व्यास पण्डित अनिल कृष्णजी महाराज ने कथा में बताया कि गुरु एवं भगवान की कृपा के बिना हम कथा श्रवण का लाभ नहीं ले सकते - ‘‘गुरु गोविन्द दोने खड़े, काके लागु पाय। बलिहारी गुरु आपने गोविन्द दियो बताय।’’ कथा सुनकर ह्नदय में उतारना चाहिए। मनुष्य जीवन को सार्थक बनाने में सत्संग प्रमुख साधन है। हमारा मस्तक सदैव संतों के चरणों में झुकना चाहिए।
मनुष्य जीवन का उद्देश्य भगवान के चरणों की प्राप्ति
 शहर के ऐतिहासिक तपोभूमि लालीवाव मठ में गुरुपूर्णिमा महोत्सव के तहत प.पू. महामण्डलेश्वर हरिओमदासजी महाराज के सानिध्य में चल रही श्रीमद भागवत कथा में भागवत प्रवक्ता पण्डित अनिलकृष्णजी महाराज ने कहा कि मनुष्य जीवन का उद्देश्य भगवान के चरणों की प्राप्ति है। भगवान के चरणों तक उनकी भक्ति के माध्यम से ही पहुंचा जा सकता है।
Bhagwat Katha in Laliwav Math
निःस्वार्थ प्रेम परमात्मा के समीप ले जाता है
   उन्होंने कहा कि इस भक्ति की अलख हृदय में तब जगती है जब उन्हें कान्हा से प्रेम हो जाए। कान्हा से प्रेम उनकी लीलाओं की कथा के श्रवण से होता है। श्रीमद् भागवत भगवान की अद्भुत लीलाओं का सार है। कहा कि पापी इस कथा को नहीं सुन सकता। जिन पर घट-घट में बसने वाले भगवान की कृपा होती है। वहीं इस कथा को सुन पाते है। कहा कि जब हम स्वार्थी दुनिया से अलग भगवान से अलग रिश्ता बना लेते हैं तो वह हर संकट में उनके साथ खड़े होते है। जीव को भगवान से प्रेम इस तरह करना चाहिए जेसा कि एक अबोध बालक अपनी माता से प्रेम करता है। उनका निःस्वार्थ प्रेम उन्हे परमात्मा के समीप ले जाता है। इस के साथ कथा को यहीं विश्राम दिया गया।
   इसके पश्चात् भागवतजी की आरती ‘‘भागवत भगवान की है आरती पापियों को पाप से है तारती और ओम जय शिव ओमकारो उतारी गई एवं प्रसाद वितरण किया गया।
Hariomdas ji Maharaj in Laliwav Math
द्वितीय दिवस -
   शहर के ऐतिहासिक तपोभूमि लालीवाव मठ में गुरुपूर्णिमा महोत्सव के तहत प.पू. महामण्डलेश्वर हरिओमदासजी महाराज के सानिध्य में चल रही श्रीमद् भागवत कथा के दूसरे दिन गुरुवार को पहले व्यासपीठ का पूजन ओर आरती हुई। श्रीमद् भागवत भगवान की आरती पापियों को पाप से है तारती....। जैसे ही यह आरती शुरु हुई पण्डाल में उपस्थित श्रद्धालु अपने अपने स्थान पर खड़े होकर गाने लगे। कथा के आंरभ में सियारामदासजी, नारायणदास महाराज पटवारी, महेश राणा, डॉ. विश्वास बंगाली,, शांतिलाल भावसार, दीपक तेली, मनोहर मेहता, पुजारी गिरीश पोखरिया, अश्विन जोशी, दिशांत, हर्ष, राज, कृष्णा आदि द्वारा व्यासपीठ पर माल्यार्पण किया गया। इसके बाद बाल व्यास पण्डित अनिल कृष्णजी महाराज ने जोर से बोलना पड़ेगा.... राधे-राधे.... दूसरे दिन कथा शुरु की।
भागवत सुनने से सात दिनों में मोक्ष की प्राप्ति
   भागवत का श्रद्धा पूर्वक श्रवण करने से मात्र सात दिनों में ही मोक्ष की प्राप्ति हो सकती है, लेकिन कथा का श्रवण नियम पूर्वक हो, आपके संकल्प को जो सफल बनाने वाला परमात्मा है, उनकी शरणागत होकर भजन करें, अपने जीवन का सुख-दुख, राग-विराग सबकुछ उन्हें सौंपकर सर्वात्म समर्पण भाव से यदि आप भागवत को अपने आपमें उतार लेंगे को मोक्ष की प्राप्ति तय हैं।
Bhagwat Katha in Laliwav Math
असार और झूठे संसार का सबसे बड़ा सत्य मृत्यु 
   शहर के ऐतिहासिक तपोभूमि लालीवाव मठ में गुरुपूर्णिमा महोत्सव के तहत प.पू. महामण्डलेश्वर हरिओमदासजी महाराज के सानिध्य में चल रही श्रीमद भागवत कथा में भागवत प्रवक्ता पण्डित अनिलकृष्णजी महाराज ने कहा कि वाणी और क्रोध पर संयम रखना चाहिए। राजा परिक्षित ने कलियुग के प्रभाववश संत का अपमान कर दिया जिसके फलस्वरुप उन्हें सात दिनों में मृत्यु का श्राप मिला। उन्होंने कहा यह संसार सबसे बड़ा झूठा है और इसका सबसे बड़ा सत्य मृत्यु है । प्रत्येक जीव को मरना है लेकिन मोह का बंधन इस सत्य को मानने से बचता है। उन्होंने कहा समय के साथ वृद्ध होता शरीर मृत्यु निकट आने के कई संकेत देने लगता है लेकिन मानव इन संकेतों को भी नहीं समझता और सांसारिक माया में फंसा रहता है। बच्चों को धर्म, संस्कारों की शिक्षा देने की बात कहते हुए कहा कि आजकल माता-पिता अपने बच्चों को केवल खाना, कमाना सिखाते हैं। वे बच्चों को धर्म और भगवान से दूर रखते हैं, उनकी जिम्मेदारियों से दूर रखते है, जो कि गलत है। ऐसा नहीं होना चाहिए।
Bhagwat Katha in Laliwav Math
बच्चों को शिक्षा व अच्छा संस्कार दें 
   अनिलकृष्णजी ने कहा कि हमें अपने बच्चों को संस्कार और अच्छी शिक्षा अवश्य देना चाहिए। बच्चे शिक्षा तो प्राप्त कर रहे हैं, लेकिन संस्कार भूल रहे हैं। संस्कारवान नई पीढ़ी ही अपने जीवन को सफल और सार्थक कर सकती है । लोक कल्याण ही परम धर्म है। इससे जीवन आनंदित होता है। सभी को आनंदित करना ही सच्चा धर्म है।
ईश्वर दर्शन को अपनाएं सात सूत्र
  कथा व्यास पं. अनिलकृष्ण महाराज ने बताया कि ईश्वर प्राप्ति के लिए यदि आप 7 सूत्र अपनाकर उसका अमल करें तो निश्चित रूप से आप लक्ष्य को प्राप्त कर लेंगे, इसके लिए पुरुषार्थ, हिम्मत, धैर्य, सावधानी, मधुरवाणी, आहार में शुद्धता और अहर्निश प्रभु चिंतन आवश्यक है, उन्होंने कहा इस कलिकाल में लोग गलत कर्म से लोग दुखी है।
Bhagwat Katha in Laliwav Math
पार्वती सो गई और शुक ने सुनी कथा
   पं. अनिलकृष्णजी महाराज ने कहा कि एक बार पार्वतीजी ने भोलेनाथ से गुप्त अमर कथा सुनाने की जिद की। शिवजी ने आस-पास देखकर निश्चित होने के लिए कहा कि कोई और तो नहीं सुन रहा है। पार्वती जी ने आस-पास देखकर शिवजी को आश्वस्त कर दिया कि कोई नहीं है। लेकिन वहां शुक जी मौजूद थे। शिवजी पार्वती को कथा सुनाने लगे। कथा सुनते-सुनते पार्वतीजी को नीद आ गई। उनके सोने पर वहां मौजूद शुक जी हुंकार भरने लगे। पार्वती जी की जब नींद टूटी तो उन्होंने शिवजी को नींद आने की बात बतायी। भगवान ने अपनी अंतर्दृष्टि से देखकर शुक जी की उपस्थिति का पता लगा लिया। उन्होंने शुकजी का वध करने के लिए त्रिशुल उठाया। शुकजी भागकर व्यासजी की पत्नी के गर्भ में छिप गए। शिवजी वध के लिए 12 वर्ष तक उनके गर्भ से निकलने का इंतजार करते रहे। बाद में व्यासजी ने शिवजी को शुकजी को क्षमा करने के लिए मना लिया। इसके साथ राजा परिक्षित को श्राप, सृष्टि निर्माण, शिव पार्वती का पुनः विवाह आदि प्रसंग सुनाए गए।
  इसके पश्चात् भागवतजी की आरती ‘‘भागवत भगवान की है आरती पापियों को पाप से है तारती उतारी गई। उसके पश्चात प्रसाद वितरण किया गया
तृतीय दिवस-
  शहर के ऐतिहासिक तपोभूमि लालीवाव मठ में गुरुपूर्णिमा महोत्सव के तहत प.पू. महामण्डलेश्वर हरिओमदासजी महाराज के सानिध्य में चल रही श्रीमद् भागवत कथा के तृतीय दिन शुक्रवार को पहले व्यासपीठ का पूजन और आरती हुई । श्रीमद् भागवत भगवान की आरती पापियों को पाप से है तारती। जैसे ही यह आरती शुरु हुई पण्डाल में उपस्थित श्रद्धालु अपने अपने स्थान पर खड़े होकर गाने लगे। कथा के आंरभ में सियारामदास महाराज, नारायणदासजी महाराज पटवारी, महेश राणा, डॉ. विश्वास बंगाली, मांगीलाल धाकड़, मनोहर मेहता, दीपक तेली, अरविन्द खेरावत, राज, कृष्णा, पुजारी गिरीश आदि द्वारा व्यासपीठ पर माल्यार्पण किया गया। इसके बाद बाल व्यास पण्डित अनिल कृष्णजी महाराज ने जोर से बोलना पड़ेगा.... राधे-राधे.... तिसरे दिन कथा शुरु की।
घमण्ड ज्यादा देर तक नहीं टिकता
   शहर के ऐतिहासिक तपोभूमि लालीवाव मठ में गुरुपूर्णिमा महोत्सव के तहत चल रही श्रीमद् भागवत कथा में तीसरे दिन पण्डित अनिकृष्ण महाराज ने कहा जो विनम्र रहते है वे भगवान की कृपा के पात्र बनते है और जिन पर अभिमान की छाया पड़ जाती है उनका नाश निश्चित हो जाता है। बल, धन और ऐश्वर्य पर किया गया घमण्ड ज्यादा दिनों तक टिकता नहीं है। जब तक भगवान की कृपा रहती है व्यक्ति के कार्य फलीभूत होते है। भगवान की इस कृपा को पाने के लिए दया और विनम्रता को जीवन में उतारना ही होगा। उन्होने सुख-दुख में समभाव रखने की शिक्षा देते हुए उन्होने कहा कि समय सुख का हो या दुख का हमेशा एक सा नहीं रहता।
Ramswaroop Maharaj
   कथा वाचन श्री अनिलकृष्णजी महाराज ने श्रीमद् भागवत कथा के मर्म पर विस्तार से प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि ईश्वर में ध्यान लगाकर मन के भटकाव को रोका जा सकता है। यह तभी संभव होगा, जब मनुष्य भक्ति में लीन हो जाएगा।
   पण्डित अनिलकृष्ण महाराज ने कहा है कि ईश्वर का अपने हृदय में निवास स्थिर करने के लिए ईश्वरीय गुणों को आत्मसात करना जरूरी है। भूतकाल को भूलकर वर्तमान पर ध्यान देना चाहिए-सृष्टि में बदलाव लाना चाहिए-जैसा भाव होगा वैसी दृष्टि बनेगी, ब्रह्म दृष्टि बनने पर सभी में ईश्वर दिखता है। भगवान से हमें मुक्ति का पद मांगना चाहिए। संसार में सभी जीव परमात्मा के अंश है । सभी में परमात्मा को देखने वाला विद्वान होता है। जिसकी दृष्टि में शुद्धता नहीं होती है वह इस संसार में पूजा नहीं जाता है अर्थात् शुद्धता से ही सबका प्रिय बना जा सकता है। मनुष्य की सभी वासनाएँ परिपूर्ण नहीं होती है। भगवान को प्राप्त होने से प्राणी तृप्त हो जाता है।अश्वत्थामा की कथा का उद्धरण देते हुए महाराजश्री ने कहा कि पाण्डवों के पुत्रों का वध तक कर देने वाले अश्वत्थामा को द्रौपदी ने ब्राह्मण पुत्र एवं गुरु पुत्र हो जाने से क्षमा कर दिया और दया को अपनाया, इसीलये भगवान की वह कृपा पात्र बनी रही।
   उन्होंने कहा कि जीवन के प्रत्येक क्षण में भगवान का स्मरण बना रहना चाहिए तभी जीवनयात्रा की सफलता संभव है। दुःखों में ही भगवान को याद करने और सुखों में भूल जाने की प्रवृत्ति ही वह कारक है जिसकी वजह से आत्मीय आनंद छीन जाता है। कुंती ने इसीलिए भगवान श्रीकृष्ण से मांगा कि जीवन में सदैव दुःख ही दुःख मिलें ताकि भगवान का स्मरण दिन-रात बना रहे।
  पापकर्म में रत और पापी व्यक्ति के अन्न को त्यागने पर बल देते हुए बालव्यास पण्डित अनिल कृष्णजी महाराज ने पितामह भीष्म और द्रौपदी के संवाद का उदाहरण दिया और कहा कि स्वयं पितामह ने स्पष्ट किया था कि पापी दुर्योधन का अन्न खाने से उनकी मति भ्रष्ट हो गई थी। इसलिए जो व्यक्ति दुष्ट है, पापी है उससे संबंध होने का अर्थ है भगवान से दूरी, ज्ञान और विवेक से दूरी। ऐसे दुष्ट व्यक्तियों का संग किसी को भी, कभी भी डूबो दे सकता है। सज्जनों को चाहिए कि दुष्ट व्यक्तियों के संग और व्यवहार से दूरी बनाए रखे।
   पण्डित अनिलकृष्णजी महाराज ने कहा कि ‘पापियों के संग में मुफ्त में खाने-पीने से लेकर सारी सुविधाएं तक अच्छी लगती हैं लेकिन जीवन के लक्ष्य से मनुष्य भटक जाता है और यह विवेक तग जगता है जब संसार से विदा होने का समय आता है। इसलिए अभी से सचेत हो जाओ और दुष्टों-पापियों से दूर रहकर अच्छे काम करो, ईश्वर का चिंतन करो।’
   इस दौरान उन्होंने कहा कि सच्चे भक्त भगवान से सिवाय भक्ति के और कुछ नहीं मांगते। भक्ति ही उनके लिए पर्याप्त होती है। वे इसे ही सबसे बड़ा धन मानकर चलते हैं और भवसागर को पार करते हैं।
सद्गुरु दिखाते हैं मुक्ति का मार्ग 
   कथा के बिज में अनिलकृष्णजी महाराज ने इस बात पर विशेष जोर देकर बोला कि मुक्ति का मार्ग सद्गुरु दिखाता है । इसलिए हमें मुक्ति चाहिए तो सद्गुरु की शरण में जाना चाहिए। परन्तु सद्गुरु की शरण में जाने से पहले उस सद्गुरु के बारे में जानकारी लेना आवश्यक है कि वह किन सम्प्रदाय से है व उनकी गादी की वंश परम्परा क्या है तथा उनका उद्देश्य क्या है। यदि उनका उद्देश्य परमात्मा प्राप्ति नहीं है तो उन सद्गुरु के चरणों में नहीं जाना चाहिए। सच्चा सद्गुरु यदि जीवन में बनाना हो तो भीड़ देखकर नहीं बनाना, उनके हृदय में भगवान के प्रतिप्रेम, उनका उद्देश्य भगवान प्राप्ति एवं जीव मात्र के प्रति दया का भाव रखते हो।
Ramswaroop Maharaj
शक्ति व समय का करें सदुपयोग
   शक्ति सम्पत्ति और समय का सदुपयोग करें। मेरा और तेरा इसी का नाम माया है। पूरा संसार ही इस माया के वषीभूत है। उन्होंने बताया कि मानव जीवन प्रभु की प्रापित के लिए मिला है। लेकिन हम इस जीवन को प्रभु प्राप्ति के मार्ग में न लगाकर माया के वशीभूत होकर भौतिक संसाधनों को पानें में लगे रहते हैं।
   इसके साथ धु्रव चरित्र पृथु चरित्र, जड़ भरत चरित्र अजामिल उपाख्यान, प्रहलाद चरित्र, नृसिंह अवतार आदि प्रसंग सुनाए गए। आज की कथा में रामस्वरुपजी महाराज भारत माता मंदिर का आशीर्वचन प्राप्त हुआ एवं लालीवाव मठ शिष्य परिवार द्वारा श्रीफल और शॉल औढ़ाकर स्वागत सत्कार किया गया। इसके पश्चात् भागवतजी एवं पार्थिव शिवजी की आरती ‘‘भागवत भगवान की है आरती पापियों को पाप से है तारती और ओम जय शिव ओमकारा सामुहिक उतारी गई। उसके पश्चात प्रसाद वितरण किया गया।
चतुर्थ दिवस -
नंद के आनंद भयो जय कन्हैया लाल की.....
   शहर के ऐतिहासिक तपोभूमि लालीवाव मठ में गुरुपूर्णिमा महोत्सव के तहत प.पू. महामण्डलेश्वर हरिओमदासजी महाराज के सानिध्य में चल रही श्रीमद् भागवत कथा के चौथे दिन शनिवार को पहले व्यासपीठ का पूजन और आरती हुई। श्रीमद् भागवत भगवान की आरती पापियों को पाप से है तारती....। जैसे ही यह आरती शुरु हुई पण्डाल में उपस्थित श्रद्धालु अपने अपने स्थान पर खड़े होकर गाने लगे। कथा के आंरभ में सियारामदास महाराज, विमल भद्द, महेश राणा, राजु सोनी, शांतिलाल भावसार, दीपक तेली, शांतिलाल खेरावत, प्रवीण गुप्ता, मोहित चंचावत, टिनु भाई, हर्ष, दिशांत, कृष्णा आदि द्वारा व्यासपीठ पर माल्यार्पण किया गया। इसके बाद बाल व्यास पण्डित अनिल कृष्णजी महाराज ने जोर से बोलना पड़ेगा.... राधे-राधे.... चतुर्थ दिन कथा शुरु की।
Bhagwat Katha in Laliwav Math for Bhagwat Katha
साधु के आशीर्वाद से यशोदा को मिला मातृत्व सुख
   नंद-यशोदा प्रसंग की चर्चा करते हुए कथा व्यास ने एक कथा सुनायी, उन्होंने बताया कि पूर्व जन्म में नंद व यशोदा दोनों ब्राह्मण-ब्राह्मणी थी, दोनों कमाकर जीवन-यापन करते थे और प्रतिदिन अतिथि को खिलाकर ही भोजन करते थे, क्योंकि उनकी धारणा थी कि अतिथि वेश में कभी भी भगवान आ सकते हैं, एक दिन दोपहर का भोजन ग्रहण कर ब्राह्मण शाम की व्यवस्था में बाहर गये इसी बीच एक साधु उनके घर पहुंचकर भोजन की इच्छा जतायी, ब्राह्मणी भोजन बनाकर संत के सामने रखा तो संत ने उस घर के छोटे बच्चे के साथ भोजन करने का आग्रह किया संत के बार-बार आग्रह करने पर ब्राह्मणी रो पड़ी, उन्होंने बताया कि आप जब मेरे घर पहुंचे, उस समय घर में कुछ भी नहीं था तो वह पुत्र को गिरवी रखकर अनाज लायी, जिससे भोजन बनाकर आपका सत्कार कर रही हूँ, संत ने उस ब्राह्मणी को वचन दिया कि एक दिन ईश्वर स्वयं आपके घर आकर साढ़े ग्यारह वर्षो तक आपके सानिध्य में रहेंगे, अगले जन्म में वहीं ब्राह्मण नंद व ब्राह्मणी यशोदा बनकर संत के उस आशीर्वाद से परम आनंद सुख की प्राप्ति की।
कान्हा की लीलाओं में भाव विभोर हुए भक्तगण
   शनिवार को श्रीमद्भागवत कथा के अन्तर्गत श्रीकृष्ण जन्मोत्सव एवं बाल लीलाओं ने श्रद्धालुओं को आनंद रसों की बारिश से नहला दिया। बड़ी संख्या में उमड़े श्रद्धालु नर-नारी कान्हा की लीलाओं पर मंत्र मुग्ध हो उठे। श्री कृष्ण जन्मोत्सव के उल्लास में श्रद्धालुओं ने जमकर भजन-कीर्तनों पर झूमते हुए नृत्य का आनंद लिया।
   घण्टे भर से अधिक समय तक श्री कृष्ण जन्मोल्लास में बधाइयां गायी गई और महिलाओं ने मंगल गीतों के साथ भगवान के अवतरण पर प्रसन्नता व्यक्त की। जैसे ही श्रीकृष्ण जन्म की कथा आरंभ हुई, जन्मोत्सव की बाल लीलाएं साकार हो उठी और पूरा पाण्डाल ‘‘नंद के आनंद भयो, जय कन्हैयालाल की, हाथी घोड़ा पालकी, जय कन्हैयालाल की’’ से गूंज उठा।
 
  चौथे दिन बालव्यास श्री अनिलकृष्णजी महाराज ने श्रीकृष्ण जन्म आख्यान का परिचय दिया और भगवान श्रीकृष्ण को जगत का गुरु तथा भगवान श्री शिव को जगत का नाथ कहा गया है। इनके आराधन-भजन से वह सब कुछ प्राप्त हो सकता है जो एक मनुष्य पाना चाहता है।
   उन्होंने कहा कि प्रभु की प्राप्ति किसी भी अवस्था में हो सकती है। इसके लिए जात-पात, नर-नारी, उम्र आदि का कोई भेद नहीं है। उमर इसमें कहीं आड़े नहीं आती। इसके लिए कथा और सत्संग सहज सुलभ मार्ग हैं। कथा का उद्देश्य हमेशा प्रभु को प्राप्त करना होता है।
  भगवान को पाने के लिए आसक्ति के परित्याग पर जोर देते हुए पण्डित अनिलकृष्ण ने कहा कि आसक्ति छोड़कर परमात्मा में मन लगाना चाहिए।
  पण्डित अनिलकृष्णजी महाराज ने जन्म-मरण के बंधन से मुक्ति के लिए कर्मों के क्षय को अनिवार्य शर्त बताते हुए कहा कि जब तक कर्म है, तब तक आवागमन का चक्र बना रहता है। कर्म को समाप्त करने पर ही जन्म-मरण का बंधन समाप्त हो सकता है।
Bhagwat Katha in Laliwav Math for Bhagwat Katha
  पण्डित अनिलकृष्णजी ने कहा कि ईश्वरीय विधान को नहीं मानने वाले, उल्लंघन व विरोध करने वाले लोग दूसरे जन्म में कष्ट पाते हैं ओर नरक की योनि भुगतनी पड़ती है। पूजा करने वक्त क्रोध नहीं करना चाहिए क्रोध से नैतिक मूल्य नष्ट हो जाते है। अजामील का हृदय परिवर्तन संतो के समागम से उसके पुत्र का नाम नारायण रखकर अंतीम समय में उसका उद्धार हुआ। गुरु के मागदर्शन से ही देवताओं ने नारायण कवच धारण कर वापस अपना राज्य स्थापित किया। गुरुआज्ञा का पालन प्रत्येक प्राणी को अपने जीवन में करना चाहिए।
  भक्त प्रह्लाद का उदाहरण देते हुए पण्डित अनिलकृष्णजी ने कहा कि उसे माँ के गर्भ से ही ईश्वरीय संस्कारों का बोध था और इसीलिये उसने पिता को भी सर्वव्यापी प्रभु के बारे में बताया। यही सर्वव्यापी ईश्वर पत्थर के खंभे से प्रकट हुआ।
Bhagwat Katha in Laliwav Math for Bhagwat Katha
समुद्र मंथन वर्णन - विष का पान भगवान ने शंकर ने अपना मुंह खोल रा शब्दा का उच्चारण कर जहर को मुंह में डाला एवं म बोलकर मुँह को बंद कर दिया अर्थात राम की अपने हृदय में आस्था को धारणकर जहर पी लिया एवं निलकण्ठेश्वर महादेव कहलाए।
  लालीवाव मठ व्यास पीठ से अपने उद्बोधन में कहा कि संसार भर में भारतभूमि सर्वश्रेष्ठ है। यह धर्म भूमि, कर्मभूमि है जहाँ ऋषि-मुनियों ने जन्म लेकर अपनी तपस्या, सद्कर्मों, जन एवं ईश्वर स्मरण कर मोक्ष प्राप्त किया। इसी भूमि पर अवतरण के लिए देवता भी लालालित रहते हैं।
पुण्यार्जन बहुत जरुरी - ज्ञानार्जन और धनार्जन के साथ पुण्यार्जन को जरुरी बताते हुए उन्होंने कहा कि पुण्य मूल पूंजी है । माता-पिता की सेवा, अतिथि सत्कार और जरुरतमंद की मदद आदि से भी पुण्य मिलता है।
 इसके पश्चात् भागवतजी की आरती ‘‘भागवत भगवान की है आरती पापियों को पाप से है तारती और ओम जय शिव ओमकारा, सामूहिक उतारी गई। उसके पश्चात प्रसाद वितरण किया गया।
चार महीने सोने से पहले सजाए देव
Bhagwan Padmnabh
  शहर के ऐतिहासिक लालीवाव मठ में चल रहे धार्मिक अनुष्ठान के तहत देवशयनी एकादशी के अवसर पर भगवान पद्मनाभ का विशेष श्रृंगार किया गया। भगवान के दर्शन कर हर कोई भाव विभोर हो रहा है। महामण्डलेश्वर हरिओमदासजी महाराज ने बताया की भगवान पद्मनाभ का हर उत्सव पर अलग अगल श्रृंगार किया जाता है। महाराजश्री ने बताया की भगवानकी की झांकी व श्रृंगार लालीवाव मठ के दीपक तेली द्वारा किया गया।
Bhagwan Padmnabh
  शहर के देवालयों में देवशयनी एकादशी के उपलक्ष्य में पूजा-अर्चना, भजन-कीर्तन आरती हुई। पीपली चौक, रुपचतुर्भुजराय, सत्यनारायण मंदिर, बोरखेड़ी के विट्ठलदेव मंदिर मोटागांव के समीप श्री रणछोड़राय, छींछ के ब्रह्मधाम मंदिर और लालीवाव मठ के पद्मनाभजी भगवान के मंदिर में धार्मिक आयोजन हुए।
Bhagwan Padmnabh
  सनातन धर्म की मान्यता के अनुसार अब देवशयनी एकादशी से लेकर देवउठनी एकादशी तक शुभ काम नहीं किए जा सकेंगे।
पंचम दिवस -
 शहर के ऐतिहासिक तपोभूमि लालीवाव मठ में गुरुपूर्णिमा महोत्सव के तहत प.पू. महामण्डलेश्वर हरिओमदासजी महाराज के सानिध्य में चल रही श्रीमद् भागवत कथा के 5वें दिन रविवार को पहले व्यासपीठ का पूजन और आरती हुई। श्रीमद् भागवत भगवान की आरती पापियों को पाप से है तारती...। जैसे ही यह आरती शुरु हुई पण्डाल में उपस्थित श्रद्धालु अपने अपने स्थान पर खड़े होकर गाने लगे। कथा के आंरभ में विमल भट्ट, सुभाष अग्रवाल, राजु सोनी, डॉ. विश्वास बंगाली, महेश राणा, शांतिलाल भावसार, दीपक तेली, शांतिलाल खेरावत, दिलीप पंचाल, अरविन्द खेरावत, मनोहर मेहता, गिरीश पोखरिया, कृष्णा, हर्ष, विनायक, दिशांत आदि भक्तों द्वारा माल्यार्पण किया गया। इसके बाद बाल व्यास पण्डित अनिल कृष्णजी महाराज ने जोर से बोलना पड़ेगा.. राधे-राधे.. पंचम दिन कथा शुरु की।
Bhagwat Katha in Laliwav Math
भागवत के सभी प्रसंग शिक्षाप्रद
   श्रीमद् भागवत के सभी प्रसंग शिक्षाप्रद हैं। उन प्रसंगों के द्वारा परिवार, समाज व राष्ट्र का कल्याण हो सकता है। यह बात रविवार को तपोभूमि लालीवाव मठ में चल रहीं श्रीमद् भागवत कथा के पांचवे दिन कथा व्यास बाल कृष्ण अनिल कृष्ण महाराज ने कही। उन्होंने कहा कि जो लोग मागंने के लिए भक्ति करते हैं वह सच्चे भक्त नहीं, वो तो व्यापारी हैं। आध्यात्म भी मनुष्य के अन्दर भी भोजन का कार्य करता है यह आध्यात्मक मनुष्य के अंदर की तृप्ति को पूरा करता है यह आध्यात्म ही वैराग्य है। मनुष्य एक अनुकरणशील प्राणी है। जिसमें नकल करने का भी एक स्वाभाव है भक्ति योग, ज्ञान योग, कर्म योग, ये तीन योग मनुष्य को मिल जाये तो मनुष्य का जीवन सार्थक हो जाता है। मनुष्य यदि सत्य का ही अनुसरण करे तो यह सारे योग मनुष्य में समा जाते है। उन्होंने कहा कि भक्ति करो तो मीराबाई की तरह करो मेरो तो गिरधर गोपाल दूसरो न कोय जब भक्ति करो तो उस समय सिर्फ परमात्मा के सिवा कुछ याद न करो।
Bhagwat Katha in Laliwav Math
   मानव सांसारिक वस्तुओं में सुन्दरता ढूंढता है। सुंदर और भोग प्रदान करने वाली वस्तुओं को एकत्रित कर प्रसन्न होता है। भगवद्प्रेमी अपने आराध्य के स्वरूप चिंतन में ही आनंदि होता है। तपोभूमि लालीवाव मठ द्वारा आयोजित सात दिवसीय भागवत कथा के पांचवे दिन रविवार को कथा सुनाते ये बातें कही। कहा भगवान सवर्त्र व्याप्त हैं लेकिन उन्हें इन भौतिक आँखों से देखा नहीं जा सकता। उन्हें देखने के लिए स्वच्छ हृदय और पवित्र मानसिक आँखे चाहिए। भगवान के स्वरुप के चिंतन के बाद किसी की आवश्यकता नहीं रह जाती। कहा मानव स्वार्थ को इंगित करते हुए कहा कि हम भगवान को सिर्फ मुसीबत में याद करते हैं। हमें सुख व दुख दोनों समय कन्हैया का स्मरण करना चाहिए। पण्डित अनिलकृष्ण ने कहा की हम भगवान से जैसा सम्बंध जोड़ते हैं वे उसी रूप में हमें मिलते हैं। भक्तवत्सल भगवान अपने भक्तों की पुकार पर मदद के लिए दौड़े चले आते है। अपने प्रेमियों के दुख हरने में भगवान को प्रसन्नता होती है।
   पण्डित अनिलकृष्णजी भागवत कथा रस का पान कराते हुए विभिन्न उद्धरणों से कृष्ण की लीलाओं के महत्व का ज्ञान कराया और कथाओं के माध्यम से जीवन में भक्ति रस संचार की आवश्यकता और इसके प्रभावों को समझाया।
  देवताओं की प्रार्थना, गौमाताओं की प्रार्थनाओं को परिपूर्ण करने, यमुना माँ की इच्छा पूर्ण करने भगवान श्री कृष्ण गौकुल, मथुरा, वृन्दावन में अपनी लिलाएँ की है।
  वेद शास्त्रों में चरण पूजनीय है क्योंकि पूरी शक्ति चरणों पर केन्द्रित होती है। मस्तक चरणों में टेकने से हमारी ज्ञान शक्ति जागृत होती है।
  कथा व्यापक होती है - भगवान का अवतार सबको जोड़ने के लिए, मनुष्य को उनके आर्दशों को अपनाकर मानव जीवन सार्थक बनाने के लिए होता है। सभी मनुष्य एक हो जाए।
Bhagwat Katha in Laliwav Math
  पूतनावध, भगवान श्री कृष्ण ने आंख बंद करते हुए भगवान शंकर को याद कर जहर पी लीया अर्थात भगवान हर चीज प्रत्येक भावना, इच्छा को भी स्वीकार कर लेती है।
  उन्होंने संतों और गुरुओं के सान्निध्य में पहुंच कर साधना एवं अभ्यास सीखने का आह्वान प्राणीमात्र से किया और कहा कि इसी से भवसागर से व्यक्ति तर सकता है।
  पण्डित अनिलकृष्ण ने कहा कि ब्रह्माजी ने सृष्टि निर्माण से पूर्व पहले ‘काल’ अर्थात समय का निर्माण किया और उसके बाद ही मानसिक सृष्टि को उत्पन्न किया तथा ऋषियों को जन्म दिया।
  ज्ञान को सदैव प्राप्त करने लायक बताते हुए उन्होंने कहा कि ज्ञान किसी से भी प्राप्त हो, ग्रहण कर लेना चाहिए। चाहे ज्ञान देने वाला अपने से छोटा हो या बड़ा। इसी प्रकार जीवन भर अच्छाइयों को ही ग्रहण करना चाहिए। मनुष्य को अपने या किसी दूसरे के बारे में भी कहीं कोई बुराई सुनने मिले तो उसे पूरी तरह भूल जाना चाहिए।
Bhagwat Katha in Laliwav Math
  इसके साथ नामकरण, पूतना वध, गौचारण, माखन चोरी, अधासुर, बकासुर, शकटासुर, तृणावर्त आदि दैत्यों का उद्धार, कालिया नाग का उद्धार, चीरहरण व गोवर्धन पूजा आदि प्रसंग सुनाए गए। इसके साथ ही सायं 6 बजे भागवतजी की आरती उतारी गई एवं प्रसाद वितरण किया गया। व्यासपीठ से सूचना दी गई की श्री गोवर्धन पूजा, छप्पन भोग व कृष्ण-रुकमणी उत्सव सोमवार को मनाया जायेगा।
तुलसी विवाह के प्रसंगों ने बिखेरी मंगल लहरियां
  गुरु पूर्णिमा के उपलक्ष्य में बांसवाड़ा के लालीवाव मठ में चल रही श्रीमद्भागवत कथा की पूर्णाहुति 12 जुलाई मंगलवार को शाम छह बजे होगी।
   इससे पूर्व दोपहर एक से पांच बजे तक पण्डित अनिलकृष्णजी महाराज द्वारा कथा की जाएगी। इसके उपरान्त रुद्राभिषेक एवं आरती होगी। इन सारे अनुष्ठानों के बाद शाम छह बजे श्रीमद्भागवत पूर्णाहुति यज्ञ होगा। 
राम सबमें समाया है, जग में पराया कोई नहीं
   हम में राम तुम में राम सब में राम समाया है जग में कोई नहीं पराया.... पण्डित अनिलकृष्णजी ने कथा के क्रम में कहा कि गीता कहने से हम ज्ञानी नहीं हो जाते है। गीता की मानें तब ज्ञानी। माँ-बाप की मानें तब हमारा कल्याण होता है। दुनिया की नजरों में अच्छे बनने से क्या? हमारे कन्हैया की नज़र में अच्छे बन जाओ तो दोनों लोक सुधर जाएगा।
भगवान तो भाव के भूखे होत है
   भगवान श्रीकृष्ण की लीलाओं और रहस्यों को साधारण मनुष्य कभी नहीं समझ सकता है। वे तो भाव के भूखे हैं।
गुरू महिमाः-पण्डित अनिलकृष्णजी महराज ने अपने प्रवचन में बताया कि गुरू शब्द का अभिप्राय अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाना है। जिस व्यक्ति का कोई गुरू नहीं होता है वह सही मार्ग पर नहीं चल सकता है। अतः प्रत्येक को जीवन में गुरू अवश्य बनाना चाहिए।
Bhagwat Katha in Lalliwav Math
  पण्डित अनिलकृष्ण महाराज ने बताया कि महाराज भीष्म अपनी पुत्री रुक्मणी का विवाह श्रीकृष्ण से करना चाहते थे, परन्तु रुक्मणी राजी नहीं थी। वह रुक्मिणी का विवाह शिशुपाल से करना चाहता था। रुक्मणी इसके लिए राजी नहीं थीं। विवाह की रस्म के अनुसार जब रुक्मिणी माता पूजन के लिए आईं तब श्रीकृष्णजी उन्हें अपने रथ में बिठा कर ले गए। तत्पश्चात रुक्मणी का विवाह श्रीकृष्ण के साथ हुआ। ऐसी लीला भगवान के सिवाय दुनिया में कोई नहीं कर सकता। यह कथा रविवार को तपोभूमि लालीवाव मठ में चल रही भागवत कथा में पण्डित अनिलकृष्णजी महाराज ने कही। 
    उन्होंने कहा कि भागवत कथा ऐसा शास्त्र है। जिसके प्रत्येक पद से रस की वर्षा होती है। इस शास्त्र को शुकदेव मुनि राजा परीक्षित को सुनाते हैं। राजा परीक्षित इसे सुनकर मरते नहीं बल्कि अमर हो जाते हैं। प्रभु की प्रत्येक लीला रास है। हमारे अंदर प्रति क्षण रास हो रहा है, सांस चल रही है तो रास भी चल रहा है, यही रास महारास है इसके द्वारा रस स्वरूप परमात्मा को नचाने के लिए एवं स्वयं नाचने के लिए प्रस्तुत करना पड़ेगा, उसके लिए परीक्षित होना पड़ेगा। जैसे गोपियां परीक्षित हो गईं।
Bhagwat Katha in Lalliwav Math
   सोमवार को भागवत कथा में तुलसी और रुक्मणी विवाह के मनोहारी प्रसंगों ने आनंद रसों का ज्वार उमड़ा दिया। बड़ी संख्या में मौजूद भक्तों ने भजन-कीर्तनों पर झूम-झूमकर नृत्य का आनंद लिया।
   श्रद्धालु महिलाओं ने विवाह गीत और मंगल गीत गाकर विवाह रस्मों का दिग्दर्शन कराते हुए मंत्र मुग्ध कर दिया।दुल्हे के रूप में भगवान श्रीकृष्ण की सजी-धजी बारात श्री पद्मनाथ मन्दिर से निकली और भागवत कथा स्थल पर विवाह मण्डप पहुंची जहां दुल्हन के रूप में तुलसी मैया के वधू पक्ष के लोगों ने अक्षतोें की बरसात कर वेवण-वैवाइयों और बारात का जमकर स्वागत सत्कार किया।
   जाने-माने कर्मकाण्डी पं. मुकेश जोशी के आचार्यत्व में तुलसी विवाह विधि-विधान से पूरा हुआ। भगवान के बारातियों के रूप में लालीवाव पीठाधीश्वर हरिओमदासजी महाराज एवं लालीवाव की शिष्य परम्परा के प्रमुख भक्तों विमल भट्ट, सुभाष अग्रवाल, मुन्ना भाई, राजु सोनी, महेश राणा, डॉ. विश्वास बंगाली, दीपक तेली, गोपाल भाई, शांतिलाल खेरावत, शांतिलाल भावसार, अरविन्द खेरावत, राज सोलंकी, हर्ष, दिशांत, विनायक, आदि ने भगवान श्री कृष्ण को कांधे पर बिठाकर विवाह मण्डप लाए। तुलसी मैया की ओर से आयोजक परिवार ने सभी का स्वागत किया।
चित्र नहीं चरित्र के उपासक बने - महामण्डलेश्वर हरिओमदासजी महाराज
   तपोभूमि लालीवाव मठ में चल रही श्रीमद् भागवत कथा के दौरान आशीर्वचन के रूप में महामण्डलेश्वर हरिओमदासजी महाराज ने कहा कि हम चित्र नहीं चरित्र के उपासक बनें। भक्ति और सत्संग से ज्ञान आता है और ज्ञान से चरित्र का निर्माण होता है। अच्छे काम बार-बार करें, लगातार करें, तब तक करें, जब तक वह आदत न बन जाए। महाराज श्री ने कहा कि मदिरा संबंधों में शुचिता को छीनती है। इसके सेवन से मन व प्राण का संतुलन बिगड़ता है। धन का अधिक होना अपव्यय की प्रवृति बढ़ाता है। धन को भोगें, पर पात्र लोगों में उसे बांटे। दान की यहीं सही विधि है।
Hariomdas ji Maharaj in Laliwav Math
श्रीमद् भागवत सप्ताह की पूर्णाहूति मंगलवार को
  तपोभूमि लालीवाव मठ में भागवत पुर्णाहुति महायज्ञ मंगलवार को प्रातः 9 बजे से महायज्ञ प्रारंभ होगा। प्रतिदिन के भांति भागवत कथा दोपहर 1 बजे से इसके साथ ही भागवत कथा की पूर्णाहूति।
गुरुपूर्णिमा महोत्सव 13 जुलाई को लालीवाव मठ में
  गुरुपूर्णिमा प्रातः 5 बजे से गुरुपूर्णिमा महामहोत्सव मनाया जायेगा। इस अवसर पर गुरुगादी पूजन-प्रातः 5 बजे से, महाप्रसादी भण्डारा-11 से गुरुदीक्षा-प्रातः 12 से 3 बजे, महाआरती रात्रि 8 बजे, जिसमें आप सभी धर्मप्रेमी सादर प्रार्थनीय है। तैयारियों को लेकर तपोभूमि लालीवाव मठ में सभी को जिम्मेदारी सौंपी गई।
क्यों इतना इतराए रे ओ माटी के पुतले...
   राधे-राधे... जोर से बोलो राधे राधे, बालव्यास श्री अनिलकृष्णजी महाराज के श्री मुख से तपोभूमि लालीवाव में चल रही श्रीमद्भागवत कथा का मंगलवार को विश्राम हो गया। कथा के आखिरी दिवस पर बालव्यास पण्डित अनिलकृष्ण महाराज ने अपनी मधुर आवाज में कई भजन सुनाएं जिन्हें सुनकर श्रद्धालु भावविभोर हो गए थे। विदाई की वेला में भागवत कथा वाचक के संग श्रद्धालु श्रोता भी भावुक हो गए थे। अनिलकृष्णजी महाराज ने कथा का समापन इस भजन से किया .... क्यों इतना इतराए रे ओ माटी के पुतले..। उन्होने कहा कि भौतिकवादी समय में सभी लोग धर्म को झुठला देना चाहते हैं। माया की आंधी में सभी बहे जा रहे हैं।
तपोभूमि लालीवाव मठ में यज्ञ पूर्णाहुति से सम्पन्न भागवत कथा सप्ताह
   शहर के ऐतिहासिक तपोभूमि लालीवाव मठ में सात दिनों से चली आ रही श्रीमद्भागवत कथा मंगलवार को सायं यज्ञ पूर्णाहुति के साथ सम्पन्न हो गई। 
  तपोभूमि लालीवाव मठ परिसर में वैदिक ऋचाओं और पौराणिक मंत्रों के साथ लालीवाव पीठाधीश्वर महंत हरिओमशरणदास महाराज के सान्निध्य तथा कर्मकाण्डी पण्डित विमलजी आचार्य एवं टीम के आचार्यत्व में भागवत यज्ञ हुआ। इसमें श्रीफल से पूर्णाहुति अर्पित की। इस पूर्व व्यासपीठ का माल्यार्पण लालीवाव मठ भक्तों द्वारा व्यासपीठ का पूजन किया।
  भगवान श्री कृष्ण सभी जानते है फिर भी उनका कहना कि जो होना होता है वही हो के रहता है ‘होनी को कोई टाल नहीं सकता है’’ प्रत्येक मनुष्य का जन्म एवं मरण निश्चित है एवं समय भी निश्चित है।
   भगवान ने जामवंतजी से कहा कि मरेे पर ‘‘मणी’’ चुराने का कलंक लगा हुआ है - जामवंतजी ने कहा मणी के साथ एक ग्वाह के अप में ‘‘अपनी पुत्री’’ सत्यभामा को स्वीकारन किया एवं जामवंत जी के पुत्री जामवंती से भी विवाह हो गया। भगवान की लिलाए देखने के लिए अनुसरण के लिए नहीं है। शिशुपाल की 99 गालीयां तो माफ कर दी परंतु 100वीं गाली पर सुदर्शन चक्र से गला काट दिया।
   कलयुग में केवल कथा ही मुक्ति का मार्ग है। राजा परिक्षित की मृत्यु का वृतांत सुनाया। भगवान श्रीकृष्ण को सारे विश्व में भगवान के साथ साथ विश्व का जगत-गुरु के नाम से जाना जाता है।
मृत्यु एक अटल सत्य:- पण्डित अनिलकृष्णजी ने कथा के मध्य में तोता के दृष्टान्त द्वारा बताया कि मृत्यु एक अटल सत्य है। जिसे कभी टाला नहीं जा सकता। महाराज जी ने कहा कि तोता जो कि श्री कृष्ण के महल में रहता था उससे उसकी पत्नी बहुत प्रेम करती थी। एक दिन रूकमणी तोते को दाना चुगा रही थी तो श्री कृष्ण भगवान ने कहा कि आज ओर इस तोते को दाना चुगा लो कल यह मर जायेगा। रूकमणी बहुत दुःखी हुई और उसने उसकी मृत्यू का कारण भगवान श्री कृष्ण से पूछा। श्री कृष्ण ने बताया की सॉप के ढ़सने से इसकी मृत्यू होगी। रूकमणी ने तोते को बचाने के लिये गरूड़ को तोते का रक्षक बनाया। लेकिन गरूड़ उसकी रक्षा नहीं कर सका। क्योकि उसकी मृत्यू निश्चित थी। इस प्रकार रूकमणी ने श्री कृष्ण भगवान से कहां कि आपने सत्य कहां कि मृत्यू एक अटल सत्य है।
Bhagwat Katha in Laliwav Math
दुष्ट व्यक्ति स्वयं दुःखी होकर दूसरे को दुःख देता है
   अनिलकृष्णजी ने बताया कि दुष्ट व्यक्ति दूसरे के दुःख से कभी परेशान नहीं होता बल्कि दूसरे के सुख से परेशान होता है। इसी को महाराज जी ने शतराजित यादव नामक श्री कृष्ण बन्धु के प्रसंग के द्वारा व्यक्त किया। उन्होने कहां कि शतराजित ने सूर्य तप करके एक मणी प्राप्त की थी जो सभी सुख देने वाली होती है। एक दिन शतराजित भगवान श्री कृष्ण की सभा में आये ओर किसी मन्त्री ने शतराजित से कहां कि यह मणी उग्रसेन जी को दे दो क्योकि वो इसके उचित हकदार है। लेकिन उसने देने से इन्कार कर दिया ओर अपने घर जाकर रख दिया। उसका भाई जंगल में खेलते हुये मणी को खो देता है। जिससे जामवन्त ने ले लिया। मणी की चोरी का ईल्जाम भगवान श्री कृष्ण पर लगा इसलिए भगवान उसे खोजने के लिये गये तो एक गुफा में एक लड़की उस मणी से खेल रही थी जैसे ही श्री कृष्ण वहां पहूंचे जामन्त ने यु करना शुरू कर दिया। बाद में पता लगा कि वो भगवान श्री विष्णु है तो उन्होने क्षमा याचना की। मणी लाने के बाद शतराजित ने अपनी पुत्री सत्यभामा की शादी श्री कृष्ण से करने का प्रस्ताव रखा जो कि सभी रानियों में सबसे सुन्दर रानी थी।
Bhagwat Katha in Laliwav Math
पुरूषार्थ से ही श्रेष्ठ भाग्य का निर्माण
   महाराजश्री ने कहा कि निस्वार्थ भाव से कार्य करते रहना चाहिए। व्यक्ति पुरुषार्थ से हि अपने श्रेष्ठ भाग्य का निर्माण कर पाता है । वर्तमान में किए जाने वाला पुरूषार्थ ही हमारे अगले जीवन के अच्छे भाग्य का निर्माण करते है।
मित्रता का महत्व:- बालव्यास पण्डित अनिलकृष्णजी ने बताया कि श्री कृष्ण की मित्रता सुदामा नामक एक दरिद्र ब्राहम्ण से गुरूकुल में हुई। उन्होने साथ-साथ शिक्षा प्राप्त की। एक दिन सुदामा कृष्ण के हिस्से के चावल खा गये। इससे वे ओर ज्यादा दरिद्र हो गये। भगवान श्री कृष्ण द्वारकापुरी में रहते थे। लेकिन अपने मित्र को हमेशा याद करते थे। एक दिन सुदामा की पत्नी ने एक पोटली भात बांधकर जो कि पड़ोसी से मांग कर लाया गया को सुदामा को दिया ओर कहां कि आप द्वारका जाकर अपने मित्र से मिलकर के आओं। वे तुम्हारी कुछ सहायता कर सकते है। सुदामा द्वारका पुरी पहूंचते है। जिनके पेरो में चप्पल नहीं थी, वस्त्र फटे हुये थे श्री कृष्ण के द्वारपालो ने उनको अन्दर जाने से रोका ओर उनमे से एक श्री कृष्ण के पास गया और सुदामा के बारे में बताया जैसे ही श्री कृष्ण भगवान ने सुदामा का नाम सुना वे भी नंगे पाव दौड़ गये और अपने मित्र से गले मिल गये। उन्हे अपने महल में लाकर उनके चरण धोये और उनकी पूरी सेवा की। उसकी पत्नी द्वारा दिये गये भात को भी बड़े प्रेम से ग्रहण किया और उन्हे सुख समृ(ि का वरदान भी दिया। इस प्रकार पण्डित अनिलकृष्ण महाराज जी ने इस कथा के माध्यम से बताया कि गरीबी-अमीरी, जात-पात, धर्म आदि को ध्यान में नहीं रखकर श्रेष्ठ व्यक्ति से मित्रता करनी चाहिए। कृष्ण सुदामा की आकर्षक झांकी सभी भक्तगणों को मंत्रमुग्ध कर दिया।
   उन्होने बताया कि इस प्रकार सुखदेव जी ने जब भागवत कथा का सम्पूर्ण कथन किया तदुपरान्त परीक्षित ने प्राणो को सहसुचकसार में स्थापित किया तो तक्षक नाग ने राजा के शरीर को डस कर श्रंगी ऋषि के श्राप को सत्य किया।
भक्ति की कोई उम्र नहीं - महामण्डलेश्वर हरिओमदासजी
   तपोभूमि लालीवाव मठ में चल रही श्रीमद्भागवत कथा के दौरान आशीवर्चन के रुप में महामण्डलेश्वर हरिओमदासजी महाराज ने कहा भक्ति के लिए कोई आयु निश्चित नहीं होती है । जिस तरह ध्रुव ने बाल्यावस्था में भजन करके प्रभु को पा लिया, हमें भी वेसी लगन करने की जरुरत है । भजन के लिए बुढ़ापे की प्रतीक्षा मत करो, बुढ़ापे में देह सेवा हो सकती है, देव सेवा नहीं।
Bhagwat Katha in Laliwav Math
   महाराज श्री ने कहा कि संसार सागर में भक्ति एक नौका की तरह है नौका के बिना भव सागर से पार नहीं उतरा जा सकता है उसी तरह भक्ति के बिना मनुष्य जीवन पटरी पर नहीं चल सकता है। इस मौके पर महाराजश्री ने कहा कि ईश्वर भक्ति का मार्ग अपना कर मनुष्य को मोक्ष का मार्ग पर चलना चाहिए। ईश्वर भक्ति के बिना मनुष्य शरीर का कल्याण संभव नहीं होगा।
भागवत कथा में उमड़ा श्रद्धा का ज्वार
  तपोभूमि लालीवाव मठ में श्रीमद्भागवत कथा की पूर्णाहुति के अवसर पर श्रद्धालुओं का ज्वार उमड़ आया और विभिन्न कथाओं को सुनते हुए श्रद्धालु कई-कई बार कीर्तनों पर झूम उठे।
तपोभूमि लालीवाव मठ में गुरुपूर्णिमा महोत्सव आज
   शहर के ऐतिहासिक तपोभूमि लालीवाव मठ में गुरुपूर्णिमा के अवसर पर गुरुगादी पूजन-प्रातः 5 बजे से, महाप्रसादी भण्डारा-12 बजे से, गुरुदीक्षा-प्रातः 12 से 3 बजे, महाआरती रात्रि 8 बजे, जिसमें आप सभी धर्मप्रेमी सादर प्रार्थनीय है।
राष्ट्रधर्म सर्वोपरि : राष्ट्र को सर्वोपरि मानकर कार्य करें
   इस मौके पर शिष्यों को अपने वार्षिक प्रवचन में लालीवाव पीठाधीश्वर महंत हरिओमदासजी ने कहा कि राष्ट्र को सर्वोपरि मानकर कार्य करें। समाज-जीवन के जिस किसी भी क्षेत्र में कार्यरत हों वहां देशभक्ति और देश के विकास की भावना को सामने रखकर दिव्य जीवन व्यवहार के साथ कार्य करें और ईश्वर द्वारा प्रदत्त क्षमताओं का भरपूर उपयोग मानवता के हित में और मनुष्य जीवन के चरम लक्ष्य की प्राप्ति में करें। महाभारत, ब्रह्मसूत्र, श्रीमद् भागवत आदि के रचयिता महापुरुश वेदव्यासजी के ज्ञान का मनुष्यमात्र लाभ ले, इसलिए गुरुपूजन को देवताओं ने वरदानों से सुसज्जित कर दिया कि ‘जो सत्शिष्य सद्गुरु के द्वार जायेगा, उनके उपदेशों के अनुसार चलेगा उसे 12 महीनों के व्रत-उपवास करने का फल इस पूनम के व्रत-उपवास मात्र से हो जायेगा।’
   ब्रह्मवेताओं के हम ऋणी हैं, उनके प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने के लिए तथा उनकी शिक्षाओं का स्मरण करे उन पर चलने की प्रतिज्ञा करने के लिए हम इस पवित्र पर्व ‘गुरुपूर्णिमा’ को मनाते है। गुरुपूर्णिमा को हर शिष्य को अपने गुरुदेव के दर्शन करना चाहिए। प्रत्यक्ष दर्शन न कर पाये तो गुरुआश्रम में जाकर जप-ध्यान, सत्संग, सेवा का लाभ अवश्य लेना चाहिए। इस दिन मन-ही-मन अपने दिव्य भावों के अनुसार सद्गुरुदेव का मानस पूजन विशेष फलदायी है।
   महंत हरिओमदासजी ने कहा कि महाभारत, ब्रह्मसूत्र, श्रीमद् भागवत आदि के रचयिता महापुरुष वेदव्यासजी के ज्ञान का मनुष्यमात्र लाभ ले, इसलिए गुरुपूजन को देवताओं ने वरदानों से सुसज्जित कर दिया कि ‘जो सत्शिष्य सद्गुरु के द्वार जायेगा, उनके उपदेशों के अनुसार चलेगा उसे 12 महीनों के व्रत-उपवास करने का फल इस पूनम के व्रत-उपवास मात्र से हो जायेगा। ब्रह्मवेताओं के हम ऋणी हैं, उनके प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने के लिए तथा उनकी शिक्षाओं का स्मरण करे उन पर चलने की प्रतिज्ञा करने के लिए हम इस पवित्र पर्व ‘गुरुपूर्णिमा’ को मनाते है।
Hariomdas ji Maharaj in Laliwav Math
तपोभूमि लालीवाव मठ में गुरुपूर्णिमा महोत्सव धूमधाम से मना, 
  गुरु पूर्णिमा महोत्सव ऐतिहासिक लालीवाव मठ में बुधवार को धूमधाम से मनाया गया। भोर में गुरु पादुका पूजन अनुष्ठान हुआ। इसमें लालीवाव पीठाधीश्वर महंत हरिओमदास महाराज ने मठ के पूर्ववर्ती महंतों की छत्री, चरणपादुकाओं तथा मूर्तियों का पूजन किया और आशीर्वाद प्राप्त किया।
   महंत नारायणदास महाराज की छतरी पर गुरु पादुकापूजन कार्यक्रम में लालीवाव की शिष्य परम्परा के बड़ी संख्या में अनुयायियों और भक्तों ने हिस्सा लिया और विविध उपचारों के साथ गुरु पूजन किया। लालीवाव मठ में बुधवार को प्रातः 5 से दोपहर तक भारी भीड़ लगी रही। भक्तों ने लालीवाव के महंत हरिओमशरणदास महाराज को पुष्पहार पहनाकर पूजन किया तथा आशीर्वाद प्राप्त किया।
   प्रातः 5 से 11 गुरुगादी पूजन एवं महाप्रासादी प्रातः 11 से, दोपहर 12 से 3 बजे दीक्षा महोत्सव हुआ। इसमें बड़ी संख्या में नव दीक्षार्थियों ने दीक्षा विधान के साथ लालीवाव महंत से दीक्षा प्राप्त की और नवजीवन का संकल्प ग्रहण किया। तीन घण्टे चले इस दीक्षा महोत्सव में दीक्षार्थियों का तांता बंधा रहा। शिष्यों ने पीठाधीश्वर की आरती उतारी और आशीर्वाद प्राप्त किया।
   रात्रि तक लालीवाव धाम पर भजन-कीर्तनों की धूम बनी रही। लालीवाव धाम के प्रधान मन्दिर पद्मनाभ में भगवान के श्रीविग्रहों का मनोहारी श्रृंगार किया गया। भगवान के दर्शन के लिए श्रद्धालुओं का जमघट लगा रहा।
रात्रि 8 बजे महाआरती तक भण्डारे में हजारों लोगों ने महाप्रसादी के साथ महामहोत्सव का समापन हुआ।
आत्मकल्याण के लिए सद्गुरु जरुरी
   गुरु मंत्र में अद्भुत शक्ति होती है। साधक को इसका नित्य जाप करना चाहिए। यदि इस मंत्र का जाप विशेश पर्वों पर वर्ष में आठ बार किया जाए तो मंत्र सिद्ध हो जाता है और जीवन में सुख समृद्धि के साथ आत्मशांति की प्राप्ति होती है तथा इसके साथ ही सिद्ध हुआ मंत्र साधक परम लक्ष्य पर जोर दिया। महाराजजी ने गुरु शब्द को परिभाषित करते हुए कहा कि गु यानी अधंकार और रु यानी प्रकाश जो अंधकार में प्रकाश प्रदान करे वह गुरु है।
   व्यास पूजा का पुण्य पर्व महर्षि व्यासदेव के अध्यात्मिक उपकारों के लिए उनके श्री चरणों में श्रद्धा-सुमन अर्पित करने का दिवस है। उनके अमर संदेश को प्रत्येक भक्त जीवन में उतारें - मैं और मेरे बंधन का कारण, तू और तेरा मुक्ति का साधन। आज जगद्गुरु परमेश्वर के पूजन का पर्व है। महाराज जी के अनुसार आज का यह मांगलिक दिन आध्यात्मिक सम्बंध स्मरण करने के लिए नियत है अर्थात् गुरु अथवा मार्ग-दर्शक एवं शिष्य के अपने-अपने कर्तव्य को याद करने का दिवस है।
  जब तक सोना सुनार के पास, लोहा लौहार के पास, कपड़ा दर्जी के पास न जाये, उसे आकार नहीं मिलता। तद्वत शिष्य जब तक अपने आपको गुरु को समर्पित नहीं कर देता, तब तक वह कृपा पात्र नहीं बनता।

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