अलाउद्दीन खिलजी की बेटी एक हिंदू राजकुमार के लिए क्यों हो गई थी सती
अलाउद्दीन खिलजी की बेटी फ़िरोज़ा ने एक बार जालौर के राजा कान्हदेव के पुत्र वीरमदेव को देखा तो वह उसे देखते ही उस पर मोहित हो गई। जब फिरोजा वीरमदेव से मिली तो उसे तुरंत उससे प्यार हो गया, यह बहुत स्पष्ट था क्योंकि वीरमदेव चौहान उस समय के सबसे सुंदर और आकर्षक राजकुमार के रूप में जाने जाते थे।
फिरोजा ने अपने पिता अलाउद्दीन खिलजी से वीरमदेव चौहान से शादी करने के लिए कहा और खिलजी उसकी इच्छा को पूरा करने के लिए सहमत हो गया। उन्होंने अपनी बेटी की शादी का प्रस्ताव जालोर भेजा और उन्हें भारी मात्रा में दहेज और जमीन देने की भी पेशकश की, लेकिन वीरमदेव ने अलाउद्दीन खिलजी को उसकी बेटी से शादी करने के प्रस्ताव को यह कहते हुए ठुकरा दिया कि "वह अपने पैतृक पक्ष से मिले अपने महान चौहान नाम को एक तुर्क महिला से शादी करके उसका अपमान नहीं कर सकते।"
जब खिलजी को यह जवाब मिला तो उसने अपना आपा खो दिया और वीरमदेव के राज्य जालोर पर हमला कर दिया। युद्ध में धोखे से खिलजी ने वीरमदेव को हरा दिया और उसके शव के धड़ वाले हिस्से को जला दिया और खिलजी ने वीरमदेव का सिर अपनी बेटी फिरोजा के पास भेज दिया। वही वीरमदेव के प्यार में आसक्त हुई फ़िरोज़ा ने वीरमदेव का कटा हुआ सिर ले लिया और खुद को वीरमदेव के सिर के साथ जला दिया। फ़िरोज़ा ने वीरमदेव के सिर के साथ खुद को भी उसकी पत्नी मानते हुए सती कर लिया। बताया जाता है की फ़िरोज़ा ने वीरमदेव को अपने दिल से अपने पति के रूप में स्वीकार किया था। यही कारण है कि उसे आज तक लोक कथाओं में सती माता फिरोजा देवी के रूप में संबोधित किया जाता है। वैसे भारत वासियो के लिए यह सबसे बड़ा आश्चर्य है कि भारतीय फिल्म निर्माताओं ने इस खूबसूरत और दिल को छूने वाली प्रेम कहानी पर एक भी फिल्म आज तक क्यों नहीं बनाई?