आज बहुत से हिन्दू और खाश तौर पर सिन्धी ही उन बहादुर और महान हिन्दू सिन्धी राजा को नहीं जानते जिनका नाम था "राजा दाहिर" है। हालांकि कुछ सिंधी अभी भी आभार के साथ उन्हें याद करते हैं और 20 जून को चच राजवंश के धार्मिक राजा दाहिर की याद में मनाते हैं। राजा दाहिर पश्चिम में एक कहावत है कि “पहले दुश्मन को बुरा नाम दो और फिर उसे मार दो।" ऐसा कुछ ही मुस्लिम इतिहासकारों ने इनके साथ किया।
उन्होंने सिंध के आखिरी हिन्दू राजा को बदनाम करने में कोई कसर नही छोड़ी, क्यूंकि उस हिन्दू राजा ने 32 साल तक उनको आगे नहीं बढ़ने दिया था। उन्होंने पुष्करणा ब्राह्मण राजा को बदनाम करने के लिए अपनी ही बहन से विवाह करने के मनगढंत किस्से लिखने शुरू किये। अब अगर कोई हिन्दू धर्म को समझता है तो वो समझ सकता है कि अपनी ही बहन से विवाह करना हिन्दू धर्म में ही नही बल्कि मुस्लिम धर्म की प्रथा है और ये मुस्लिम इतिहासकारों का सफेद झूठ था उनको आने वाले समय में बदनाम करने के लिए।
उन इतिहासकारों ने एक और झूठ फैलाया कि ये महान हिन्दू राजा हर रात को एक नवयौवना (कुंवारी लड़की) का बलात्कार करता था और 32 साल तक राजधर्म का पालन करने वाले राजा के बारे में ये भी महज़ एक झूठ ही था।
हिन्दू इतिहास पर गौर किया जाए तो पुण्य सलिला सिंध भूमि वैदिक काल से ही वीरों की भूमि रही है। वेदों की ऋचाओं की रचना इस पवित्र भूमि पर बहने वाली सिंधु नदी के किनारों पर हुई। इसी पवित्र भूमि पर पौराणिक काल में कई वीरों व वीरांगनाओं को जन्म दिया है। जिनमें त्रेता युग में महाराज दशरथ की पत्नी कैकेयी और द्वापर युग में महाराजा जयदरथ का नाम भी शामिल है। महाराजा दाहिर को 7 राज्य की सत्ता संभालते समय ही कई प्रकार के विरोधों का सामना करना पड़ा था। उस समय गुर्जर, जाट और लोहाणा समाज उनके पिता द्वारा किए गए शासन से नाराज थे तो ब्राह्मण समाज बौद्ध धर्म को राजधर्म घोषित करने के कारण नाराज थे।
मगर राजा दाहिर ने सभी समाजों को अपने साथ लेकर चलने का संकल्प लिया था। आगे चलकर महाराजा दाहिर ने सिंध का राजधर्म सनातन हिन्दू धर्म को घोषित कर ब्राह्मण समाज की भी नाराजगी दूर कर दूरदर्शिता का परिचय दिया। दाहिर की पत्नी ने कई दूसरी औरतों के साथ जौहर (गुप्तांग जलाने के लिए) कर लिया ताकि कोई भी अरबी उनके मृत शरीर से भी बलात्कार न कर सके। पाकिस्तानी मुस्लिम सिंधी को भी राजा दाहिर के बारे में मालुम होना चाहिए और शुक्रगुजार भी होना चाहिए कि उन्होंने पैगम्बर मोहम्मद के भागे हुए परिवार को खतरनाक उमायादों से बचाते हुए अपने पास रहने को जगह दी थी। राजा दाहिर ने अपने महल में इमाम हुसैन के अनुयायी मुहम्मद बिन अल्लाफी को रहने की भी जगह दी थी।
उस समय अल्लाफी को उमायाद जान से मार देने के लिए तलाश रहे थे, क्योंकि अल्लाफी अहल-ए-बैत (पैगम्बर मोहम्मद का सीधा खून) का आखिरी वंशज था। यही नही राजा दाहिर ने पैगम्बर मोहम्मद के पौते हुसैन को भी शरण देने की पेशकश की थी। मगर जब हुसैन शरण के लिए बढ़ रहा था, उसे कर्बला इराक में बंदी बना लिया गया और बाद में कड़ी यातनाएं देते हुए मार दिया गया। राजा दाहिर एक महान हिन्दू शासक थे जिहोने युद्ध क्षेत्र में लड़ते हुए प्राण न्योछावर किये। उनकी मौत के बाद में उनकी सुंदर बेटियों को इस्लामी परंपरा के तहत युद्ध में लूट के रूप में कब्जा लिया गया। मुहम्मद बिन कासिम ने उनकी बेटियों को उस समय के खलीफा सुलेमान बिन अब्द अल मलिक के सामने उपहार के रूप में भेजा गया।
अंत में उनकी ही बेटियों ने पहले सूझ-बुझ और अक्लमंदी से खलीफा के हाथों मुहम्मद बिन कासिम को मरवा कर अपना बदला लिया और बाद में खुद को खलीफा से बचाते हुए एक दुसरे को ही मार दिया। राजा और उनकी बेटियों के बलिदानों से प्रेरित होकर ही सिंधी लेखक ने यह पंक्तियां लिखी हैं- “हीउ मुहिजो वतन मुहिजो वतन मुहिजो वतन, माखीअ खां मिठिड़ो, मिसरीअ खां मिठिड़ो, संसार जे सभिनी देशनि खां सुठेरो। कुर्बान तंहि वतन तां कयां पहिंजो तन बदन, हीउ मुंहिजो वतन मुहिजों वतन मुहिजो वतन।"


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